
India-China tension over Dalai Lama successor dispute, read full report on Shah Times
भारत ने ठुकराया चीन का दावा: दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर नई कूटनीतिक जंग!
दलाई लामा उत्तराधिकारी पर भारत ने दिखाया मजबूत रुख
भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन का दावा खारिज किया। क्या इससे भारत-चीन संबंधों में नई तल्खी आएगी? जानिए पूरा विश्लेषण।
Shah Times Religion News
भारत की आध्यात्मिक दृढ़ता बनाम चीन की राजनीतिक मंशा
दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत और चीन के बीच टकराव अब वैश्विक कूटनीति का एक नया केंद्र बन गया है।
भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि दलाई लामा की परंपरा और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुरूप ही उत्तराधिकारी तय होगा – न कि चीन की राजनीतिक मंशा से।
भारत का दो-टूक रुख
भारत सरकार के प्रतिनिधि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने चीन के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें वह खुद को दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन का निर्णायक मानता है। रिजिजू ने स्पष्ट कहा कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक मामला है, न कि कोई राजनीतिक सौदेबाज़ी।
भारत का यह रुख दर्शाता है कि वह न केवल तिब्बती बौद्ध परंपराओं के साथ खड़ा है, बल्कि चीन की आक्रामकता का शांतिपूर्वक विरोध भी कर रहा है।
दलाई लामा और तिब्बत: भारत के लिए क्यों अहम है ये मुद्दा?
दलाई लामा केवल तिब्बतियों के धर्मगुरु नहीं हैं, बल्कि भारत-चीन संबंधों की वह कड़ी हैं, जो अतीत से लेकर वर्तमान तक विवाद का कारण रही है।
- 1959 में भारत में शरण लेने के बाद से दलाई लामा चीन की आंखों की किरकिरी बन गए।
- भारत ने उन्हें और उनके अनुयायियों को शरण देकर एक मजबूत मानवीय संदेश दिया।
- यह भारत की रणनीतिक संतुलन नीति का हिस्सा रहा है—सीमाओं पर संयम और आध्यात्मिकता में समर्थन।
पुनर्जन्म विवाद और बीजिंग की योजना
तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है। लेकिन चीन 2007 में लाए गए State Religious Affairs Bureau Order No. 5 के तहत कहता है कि उसका अनुमोदन जरूरी है।
❝14वें दलाई लामा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका उत्तराधिकारी चीन से नहीं, भारत या किसी स्वतंत्र राष्ट्र से चुना जाएगा।❞
इससे चीन को डर है कि दलाई लामा का भारत में चुना जाना उसके तिब्बत पर नियंत्रण को कमजोर कर देगा।
भारत-चीन संबंधों में बढ़ती तल्खी
- गलवान संघर्ष (2020) के बाद से ही रिश्ते तनाव में हैं।
- भारत ने अरुणाचल प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया, जिससे चीन चिढ़ गया।
- अब दलाई लामा उत्तराधिकार विवाद से यह संघर्ष और बढ़ सकता है।
चीन को डर है कि भारत अगर निर्वासित तिब्बती समुदाय द्वारा चुने गए दलाई लामा को मान्यता देता है तो:
- लद्दाख और अरुणाचल में चीन-विरोधी भावना बढ़ेगी।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन की छवि को नुकसान होगा।
- भारत ताइवान, हांगकांग जैसे मुद्दों पर मुखर हो सकता है।
भारत की रणनीतिक मजबूती
भारत ने अब तक तिब्बत की स्वतंत्रता की औपचारिक मांग नहीं की है, लेकिन दलाई लामा और उनके उत्तराधिकार के समर्थन से वह चीन को एक स्पष्ट संदेश दे रहा है:
❝धार्मिक मामलों में राजनीतिक दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।❞
यह रुख केवल कूटनीति नहीं, बल्कि भारत की नैतिक शक्ति और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।
गेलुग परंपरा और गदेन फोडरंग ट्रस्ट
90 वर्षीय दलाई लामा ने साफ किया है कि उनका उत्तराधिकारी गदेन फोडरंग ट्रस्ट के माध्यम से तय होगा।
यह फैसला तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के परंपरागत ढांचे के अनुरूप होगा – जो चीन की इच्छा से बिल्कुल विपरीत है।
निष्कर्ष: भारत ने जो रेखा खींची, वह साफ है
दलाई लामा के उत्तराधिकारी का सवाल सिर्फ एक धार्मिक बहस नहीं है – यह भारत की संप्रभुता, रणनीति और आध्यात्मिक मूल्यों की परीक्षा भी है।
भारत ने एक सशक्त रुख अपनाया है – शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़।
इससे वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत होगी और यह भी स्पष्ट होगा कि चीन के आक्रामक रवैये का हर मोर्चे पर जवाब मिलेगा – शांतिपूर्वक लेकिन प्रभावी ढंग से।





