
Mohan Bhagwat addressing press conference on education, family and reservation
आरएसएस चीफ़ ने कहा – हर परिवार में तीन बच्चे ज़रूरी
मोहन भागवत ने कहा – आरक्षण तब तक, जब तक ज़रूरत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शिक्षा, परिवार, संस्कृत, आरक्षण और जनसंख्या संतुलन पर अपने विचार रखे। विश्लेषण में उनके बयानों के सामाजिक व राजनीतिक मायने।
New Delhi,(Shah Times ) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में आयोजित प्रेस कॉन्फ़्रेंस और सम्मेलन में कई संवेदनशील व महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर विचार रखे। उनकी बातों का दायरा शिक्षा से लेकर आरक्षण, जनसंख्या नीति, संस्कृत, परिवार व्यवस्था और अखंड भारत की अवधारणा तक फैला हुआ था। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि शिक्षा का मक़सद सिर्फ़ साक्षरता नहीं बल्कि इंसान को वास्तविक इंसान बनाना है। साथ ही उन्होंने तीन बच्चों की वकालत करते हुए जनसंख्या संतुलन और परिवार व्यवस्था पर भी जोर दिया।
शिक्षा पर भागवत का नज़रिया
मोहन भागवत ने कहा कि नई शिक्षा केवल डिग्री और नौकरियों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि उसका मक़सद समाज को संस्कारित और इंसान को पूर्ण इंसान बनाना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि “सुशिक्षा सिर्फ़ लिटरेसी नहीं है, बल्कि वह है जो इंसान को इंसान बनाती है। ऐसी शिक्षा से मनुष्य विष को भी अमृत बना सकता है।”
उनका ज़ोर इस बात पर था कि तकनीक का इस्तेमाल इंसान की भलाई के लिए हो, न कि तकनीक इंसान की मालिक बन जाए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की पारंपरिक शिक्षा पद्धति खो चुकी है, और अंग्रेज़ी शासन ने हमारे लिए ऐसी प्रणाली बनाई थी जो हमें शासित करे, विकसित न करे।
आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
संस्कृत और परंपरा का महत्व
संघ प्रमुख ने संस्कृत को भारत की आत्मा बताया। उन्होंने कहा कि “भारत को समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन ज़रूरी है।” उन्होंने पंचकोशीय शिक्षा पर भी बात की, जिसमें योग, कला, क्रीड़ा और संगीत को शामिल करने की बात कही गई है। उनका मानना है कि परंपरा और मूल्यों की शिक्षा धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक है। जैसे माता-पिता का सम्मान करना, बड़ों की इज़्ज़त करना – ये सार्वभौमिक मूल्य हैं।
जनसंख्या और परिवार व्यवस्था
मोहन भागवत का सबसे चर्चित बयान रहा – “हर परिवार में कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए।” उनका तर्क था कि इससे देश की सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और परिवार व्यवस्था बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण और अवैध घुसपैठ से जनसंख्या का संतुलन बिगड़ा है, इसलिए समाज को भी इस मामले में जागरूक होना होगा।
अखंड भारत की बात
भागवत ने एक बार फिर अखंड भारत का समर्थन किया और कहा कि हमने विभाजन का विरोध किया था और आज भी अखंड भारत पर विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि हम सबकी पहचान एक है, हम सब हिंदू हैं।
आरक्षण पर विचार
मोहन भागवत ने आरक्षण के सवाल पर साफ़ कहा कि “जब तक आरक्षण लाभार्थियों को लगता है कि अब हम अपने बलबूते खड़े हो सकते हैं, तब तक यह रहना चाहिए।” उन्होंने कहा कि संविधान में जो आरक्षण दिया गया है, हम उसके साथ हैं। समाज में जातिगत खाई पाटने और अन्याय का इलाज करने के लिए यह आवश्यक है।
विश्लेषण
भागवत के बयान केवल संघ की विचारधारा का प्रतिबिंब नहीं बल्कि देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा पर भी गहरा असर डाल सकते हैं।
शिक्षा मॉडल – उनका ज़ोर वैल्यू-बेस्ड एजुकेशन पर है, जो नई शिक्षा नीति के तहत एक प्रमुख विषय है।
परिवार नीति – तीन बच्चों का सुझाव एक बड़ा राजनीतिक बहस का मुद्दा बन सकता है, क्योंकि यह जनसंख्या नियंत्रण नीतियों के विपरीत माना जाएगा।
आरक्षण – भागवत ने पहली बार आरक्षण पर इतनी स्पष्टता दिखाई है, जिससे संघ के सामाजिक आधार पर असर पड़ सकता है।
अखंड भारत – यह विचार राजनीतिक विमर्श में हिंदुत्व के एजेंडे को और मजबूत करता है।
प्रतिवाद
कई सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषक भागवत के विचारों से सहमत नहीं हैं।
तीन बच्चों की बात – इसे कई विशेषज्ञ जनसंख्या विस्फोट की ओर ले जाने वाला सुझाव मान रहे हैं, जबकि भारत पहले से ही जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती से जूझ रहा है।
शिक्षा में संस्कृत अनिवार्यता – आलोचकों का कहना है कि किसी भाषा को थोपना शिक्षा की विविधता को कम कर देगा।
अखंड भारत विचार – इसे पड़ोसी देशों के संदर्भ में अव्यावहारिक और विवादास्पद माना जा रहा है।
आरक्षण पर दृष्टिकोण – सामाजिक संगठनों का कहना है कि आरक्षण को खत्म करने की समयसीमा तय किए बिना इसे “फिलहाल जारी” कहना पर्याप्त नहीं है।
निष्कर्ष
मोहन भागवत के ताज़ा बयान भारतीय समाज, राजनीति और शिक्षा व्यवस्था में गहन विमर्श को जन्म दे रहे हैं। शिक्षा सुधार, परिवार व्यवस्था, जनसंख्या नीति, अखंड भारत और आरक्षण – ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जो न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन सकते हैं। यह साफ़ है कि संघ प्रमुख के बयान आने वाले समय में राजनीतिक बहस और नीतिगत फैसलों को प्रभावित करेंगे।





