
PM Modi’s governance model highlights reforms in minority welfare—triple talaq law, Waqf amendments, scholarships, and cultural preservation.
मोदी सरकार का सुशासन मॉडल और अल्पसंख्यक कल्याण पर फोकस
अल्पसंख्यकों के लिए मोदी सरकार की योजनाएँ और सुधार
भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में “सुशासन” (Good Governance) की अवधारणा महज़ एक नारा नहीं बल्कि एक ऐसा प्रशासनिक ढांचा है जो समाज के हर तबके तक पहुंचने की कोशिश करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले ग्यारह वर्षों में यह साबित करने की कोशिश की है कि अल्पसंख्यक समुदायों का सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास राष्ट्रीय प्रगति का एक अहम हिस्सा है।
तीन तलाक कानून से लेकर वक्फ संशोधन अधिनियम, पीएम-विकास योजना, मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप, हज सुविधाओं के विस्तार और बौद्ध-सिख-जैन-पारसी समाज के सांस्कृतिक संरक्षण तक—केंद्र सरकार ने कई नीतियाँ और कार्यक्रम लागू किए। सवाल यह है कि इन पहलों ने अल्पसंख्यकों की ज़िंदगी में किस हद तक बदलाव लाया? और क्या यह नीतियाँ महज़ राजनीतिक रणनीति हैं या वाक़ई समावेशी विकास का मार्ग?
तीन तलाक और मुस्लिम महिला अधिकार दिवस
1 अगस्त 2019 को संसद में पास हुआ तीन तलाक निषेध कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ। इस कानून ने एक ऐसी प्रथा को गैरकानूनी ठहराया जिसे दशकों से ‘शरीअत’ के नाम पर सही ठहराया जाता रहा।
इससे पहले 1986 के शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित किया था, लेकिन तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में बहुमत का इस्तेमाल कर इस फैसले को निष्प्रभावी बना दिया।
मोदी सरकार का दावा है कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए साहसिक कदम उठाया, जिससे करोड़ों औरतों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिला।
यह पहल “Gender Justice” की दिशा में एक अहम सुधार मानी जाती है। आलोचक इसे राजनीतिकरण भी कहते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर इसका सकारात्मक असर पड़ा है।
वक्फ संशोधन अधिनियम और ‘उम्मीद’ पोर्टल
अल्पसंख्यक संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी बनाने के लिए 2025 में वक्फ संशोधन अधिनियम पारित किया गया।
इसके तहत वक्फ बोर्डों की जवाबदेही तय की गई और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ‘उम्मीद’ की शुरुआत की गई।
अब वक्फ संपत्तियों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग संभव है, जिससे भ्रष्टाचार और दुरुपयोग पर रोक लगेगी।
यह कदम मुस्लिम समाज के लिए बेहद अहम है क्योंकि भारत में लगभग 6 लाख से ज़्यादा वक्फ संपत्तियाँ हैं, जिनकी सही मैनेजमेंट से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिए संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
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शिक्षा और छात्रवृत्ति योजनाएँ
सरकार का मानना है कि शिक्षा ही empowerment की असली कुंजी है। इसी दिशा में कई स्कॉलरशिप और फेलोशिप योजनाएँ शुरू की गईं।
मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फेलोशिप (MANF) ने अल्पसंख्यक छात्रों को M.Phil और PhD में मदद दी।
बेगम हज़रत महल छात्रवृत्ति से लाखों लड़कियों को पढ़ाई जारी रखने का अवसर मिला।
नया सवेरा और निःशुल्क कोचिंग योजना ने प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले युवाओं को मज़बूती दी।
“पढ़ो परदेस” योजना बंद किए जाने पर आलोचना हुई, मगर सरकार का तर्क था कि संसाधनों का उपयोग घरेलू शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने में होना चाहिए।
आर्थिक सशक्तिकरण और रोज़गार योजनाएँ
2014 से 2025 तक, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (NMDFC) ने लगभग 1.74 लाख लाभार्थियों को 752 करोड़ रुपये वितरित किए।
पीएम-विकास (Virasat ka Sanvardhan) कार्यक्रम के तहत हुनरमंद युवाओं और महिलाओं को कौशल विकास, उद्यमिता और लघु व्यवसाय में बढ़ावा मिला।
सरकार का दावा है कि इस स्कीम से traditional artisans को भी नई पहचान मिली।
सांस्कृतिक संरक्षण और अल्पसंख्यक धरोहर
अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को संजोने के लिए ठोस कदम उठाए:
दिल्ली यूनिवर्सिटी में गुरुमुखी अध्ययन केंद्र (सिख परंपरा)
मुंबई यूनिवर्सिटी में अवेस्ता पहलवी प्रोजेक्ट (पारसी धरोहर)
जैन धर्म के लिए इंदौर और गुजरात में अध्ययन केंद्र
बौद्ध समुदाय के लिए बौद्ध विकास योजना
यह सब बताता है कि सरकार अल्पसंख्यकों को केवल सामाजिक-आर्थिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक स्तर पर भी मज़बूत करने की दिशा में सक्रिय है।
हज सुविधाएँ और डिजिटल सुधार
2016 से हज की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को सौंप दी गई।
हज सुविधा ऐप लॉन्च हुआ।
हज वॉकथॉन जैसी पहल यात्रियों की fitness और तैयारी के लिए की गई।
2023-24 तक हज पर खर्च बढ़कर 83 करोड़ रुपये पहुँच गया।
आलोचनाएँ और विपक्षी दृष्टिकोण
किसी भी राजनीतिक पहल की तरह इन योजनाओं पर भी आलोचनाएँ होती रही हैं।
विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार की अल्पसंख्यक नीतियाँ “चुनावी राजनीति” से प्रेरित हैं।
तीन तलाक कानून को लेकर मुस्लिम समाज का एक हिस्सा मानता है कि यह धार्मिक मामलों में दखल है।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि “पढ़ो परदेस” योजना बंद करने से वैश्विक exposure पाने वाले छात्रों को नुकसान हुआ।
इसके बावजूद आंकड़े बताते हैं कि बजट में बढ़ोतरी और योजनाओं का दायरा यह संकेत देता है कि सरकार इन वर्गों को “mainstream development” में शामिल करना चाहती है।
राजनीतिक निहितार्थ
मोदी सरकार की अल्पसंख्यक नीतियाँ केवल कल्याणकारी नहीं बल्कि political messaging भी हैं।
भाजपा लंबे समय तक “pro-minority” छवि से दूर रही।
इन नीतियों के जरिए पार्टी यह दिखाना चाहती है कि वह सभी तबकों के लिए समान अवसर उपलब्ध करा रही है।
इससे Electoral Politics में भी नया संतुलन देखने को मिला है।
निष्कर्ष
मोदी सरकार की अल्पसंख्यक कल्याण नीतियाँ “Good Governance” और “Inclusive Growth” की अवधारणा पर आधारित बताई जाती हैं।
तीन तलाक कानून ने महिलाओं को न्याय दिलाया।
वक्फ अधिनियम और ‘उम्मीद’ पोर्टल ने पारदर्शिता बढ़ाई।
स्कॉलरशिप और कौशल विकास योजनाओं ने युवाओं को सशक्त किया।
सांस्कृतिक संरक्षण से विभिन्न धर्मों की धरोहर सुरक्षित हुई।
हालांकि राजनीतिक आलोचना भी जारी है, मगर सरकारी रिपोर्टें साफ़ कहती हैं कि लाखों परिवारों की ज़िंदगी में बदलाव आया है। इस तरह मोदी सरकार की “सुशासन राजनीति” केवल बहस का मुद्दा नहीं बल्कि एक वास्तविक सामाजिक-आर्थिक प्रयोग भी है, जिसने भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में नई दिशा दी है।





