
Azam Khan waving hand outside jail after receiving bail in Rampur Quality Bar land case, with police officials in the background, Shah Times
आज़म खान को बड़ी राहत: हाईकोर्ट से ज़मानत, सियासत में नई हलचल
हाईकोर्ट ने दी आज़म खान को बैक टू बैक राहत, जेल से बाहर आने का रास्ता साफ़
New Delhi,( Shah Times)। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री आज़म खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। रामपुर के चर्चित क्वालिटी बार ज़मीन कब्ज़ा मामले में कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका मंज़ूर कर ली। यह फैसला न सिर्फ़ उनके लिए बल्कि प्रदेश की सियासत के लिए भी अहम माना जा रहा है। पिछले 9 दिनों में आज़म को लगातार 3 केसों में राहत मिली है, जिससे उनके जेल से बाहर आने की उम्मीद तेज़ हो गई है।
क्या है मामला?
रामपुर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में स्थित क्वालिटी बार पर 2008 में ज़मीन कब्ज़ा करने का आरोप लगाया गया था। 2019 में राजस्व निरीक्षक अनंगराज सिंह ने एफआईआर दर्ज कराई थी। इस केस में पहले आज़म की पत्नी डॉ. तजीन फ़ातिमा, बेटे अब्दुल्ला आज़म खान और चेयरमैन सैयद ज़फर अली जाफ़री का नाम शामिल था। बाद में विवेचना में आज़म का नाम भी जोड़ दिया गया।
अदालत की कार्यवाही
रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने पहले ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद आज़म ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उनके वकील इमरानउल्लाह ने दलील दी कि यह पूरा मामला राजनीतिक रंजिश का नतीजा है और आज़म को टार्गेट किया गया है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 21 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सुनाते हुए जमानत दे दी।
बैक टू बैक राहतों से बदलता सियासी गणित
10 सितंबर को डूंगरपुर मामले में हाईकोर्ट से बेल मिली, 16 सितंबर को छजलैट प्रकरण और रास्ता जाम केस में बरी होने के बाद अब 18 सितंबर को क्वालिटी बार केस में भी राहत।
यह सिलसिला संकेत देता है कि अदालतों ने अब तक ज़्यादातर मुकदमों में सबूतों को कमज़ोर या राजनीतिक मानकर राहत दी है।
विपक्ष की मजबूती
समाजवादी पार्टी (सपा) आज़म खान को अपनी राजनीति का मज़बूत स्तंभ मानती रही है। जेल में बंद रहने के कारण उनकी सक्रियता कम हो गई थी। अब राहत मिलने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या आज़म फिर से सियासी मैदान में सक्रिय होंगे?
एक धड़ा मानता है कि ज़मानत के बाद आज़म सपा को मुस्लिम वोटबैंक में फिर से संगठित करने में मदद करेंगे।
दूसरा धड़ा यह तर्क देता है कि लगातार मुकदमों और जेल जाने से उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता को नुक़सान हुआ है।
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भाजपा का रुख और संभावित चुनौती
भाजपा ने हमेशा आज़म खान पर क़ानून तोड़ने और अवैध कब्ज़ों का आरोप लगाया है। प्रदेश की योगी सरकार के कार्यकाल में उनके ख़िलाफ़ दर्जनों मुकदमे दर्ज हुए। भाजपा समर्थक तबका मानता है कि यह कार्रवाई क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़रूरी थी।
लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताता रहा है।
आगे की चुनौतियाँ
भले ही अदालतों से राहत मिल रही हो, लेकिन आज़म खान की मुश्किलें पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई हैं।
अभी भी कुछ मुकदमे विचाराधीन हैं।
राजनीतिक रूप से उनकी सक्रियता पर कई तरह की पाबंदियाँ हो सकती हैं।
रामपुर और आसपास के क्षेत्रों में भाजपा की पैठ मज़बूत हो चुकी है, ऐसे में उनकी सियासी वापसी आसान नहीं होगी।
समाजवादी पार्टी में समीकरण
सपा के भीतर भी आज़म की भूमिका को लेकर काफ़ी चर्चाएँ हैं। अखिलेश यादव और आज़म खान का रिश्ता राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुज़रा है।
कुछ लोग मानते हैं कि आज़म को बाहर आने के बाद पार्टी के भीतर और अधिक सम्मान मिलेगा।
वहीं आलोचकों का कहना है कि अखिलेश यादव आज़म की “हार्डलाइन सियासत” से दूरी बनाए रख सकते हैं ताकि व्यापक जनाधार को नुकसान न पहुँचे।
आज़म खान का भविष्य – संभावनाएँ और संदेह
राजनीतिक विश्लेषकों की राय में आज़म की ज़मानत केवल व्यक्तिगत राहत नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में नई हलचल का संकेत है।
संभावनाएँ
मुस्लिम राजनीति में फिर से सक्रियता: जेल से बाहर आने के बाद आज़म यूपी के मुस्लिम समाज को फिर से सपा की ओर आकर्षित कर सकते हैं।
सपा का मज़बूत चेहरा: विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में उनकी भूमिका अहम हो सकती है।
संदेह
विश्वसनीयता पर असर: लंबे समय तक मुकदमों में उलझे रहने से उनकी छवि धूमिल हुई है।
पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन: अखिलेश और आज़म के रिश्ते सियासी समीकरण तय करेंगे।
2008 के छजलैट केस में बरी होने का महत्व
सड़क जाम और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने के मामले में बरी होना आज़म के लिए बड़ा टर्निंग प्वाइंट है। इस केस ने उनकी छवि को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया था। अदालत का यह फैसला उनके पक्ष में सियासी माहौल बनाने में मदद करेगा।
बड़ी खबर: आज़म खान की रिहाई पर नई धाराओं का असर
पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म खान की जेल से रिहाई के रास्ते में नई बाधाएं उत्पन्न हुई हैं। सूत्रों के अनुसार, हाईकोर्ट ने हाल ही में आज़म खान को जमानत दे दी थी और कोई पेंडिंग मुकदमा नहीं था, जिससे उनकी रिहाई को रोका जा सके।
लेकिन खबर यह है कि आनन-फानन में उनके खिलाफ कुछ नई धाराएँ जोड़ी गई हैं, जो उनकी रिहाई में देरी करने का प्रयास कर रही हैं। इस मामले को कस्टोडियन केस से जोड़ा जा रहा है, जिसमें अब दो नई धाराएँ जोड़ दी गई हैं।
आज़म खान के समर्थक फिलहाल आशावान हैं कि यह नई कार्रवाई उनकी रिहाई को स्थायी रूप से रोक नहीं पाएगी। समर्थकों का मानना है कि जल्द ही आज़म खान अपने परिवार और समर्थकों के बीच वापस आएंगे।
सूत्रों की मानें तो:
- हाईकोर्ट की जमानत के बावजूद नई धाराओं के चलते रिहाई में थोड़ी देरी हो रही है।
- कस्टोडियन केस में दो नई धाराएँ जोड़ी गई हैं।
- समर्थक और परिवारजन लगातार रिहाई की प्रतीक्षा में हैं।
आगे की कानूनी कार्रवाई और नई धाराओं की वजह से रिहाई पर क्या असर पड़ेगा, यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा।
जनता का नज़रिया
रामपुर और पश्चिमी यूपी में जनता की राय दो हिस्सों में बंटी हुई है।
समर्थक कहते हैं: यह सब राजनीतिक षड्यंत्र था, अदालत ने सच को साबित कर दिया।
विरोधी मानते हैं: अदालत से बेल मिलने का मतलब बरी होना नहीं होता। आज़म को अपने कृत्यों का हिसाब देना होगा।
नतीजा
आज़म खान की ज़मानत ने यूपी की सियासत को एक बार फिर गरमा दिया है। अदालत से राहत मिलने के बाद वे जेल से बाहर आते हैं तो यह समाजवादी पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम होगा। लेकिन भाजपा की मज़बूत पकड़ और आंतरिक सियासी समीकरण उनके लिए बड़ी चुनौती बने रहेंगे।



