आखिर स्पीकर पद क्यों चाह रही है TDP, जानें कितनी पावरफुल है ये पोस्ट

Oplus_0

जब अटल बिहारी की 13 दिन की सरकार गिरी तब भी TDP के बालयोगी थे स्पीकर

Written By Nasir Rana


नई दिल्ली,(Shah Times)।आज शाम नरेंद्र दामोदर मोदी तीसरी बार बतौर भारतीय प्रधानमंत्री की शपथ लेंगे। हालांकि, अभी नई सरकार में रेलवे, डिफेंस, विदेश जैसे मंत्रालयों को बांटा जाना बाकी है। इस बीच खबर आ रही है कि मोदी 3.0 को अहम समर्थन देने वाली TDP स्वास्थय और कृषि मंत्रालय के साथ-साथ स्पीकर पद की मांग कर रही है।


TDP का लोकसभा स्पीकर का पद मांगना, कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 दिन में गिर गई थी, तब भी TDP के ही एक सांसद जीएम बालयोगी स्पीकर की कुर्सी पर थे। यह पद उन्हें वाजपेयी सरकार ने दिया था. कहते हैं कि बतौर स्पीकर जीएम बालयोगी के फैसले के कारण अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव में मात खा गई। पिछले अनुभवों को देखते हुए नरेंद्र मोदी तेलुगु देशम पार्टी को लोक सभा स्पीकर का पद नहीं देना चाहते हैं क्योंकि यदि किसी पार्टी के सांसद टूट कर किसी अन्य दल में शामिल होते हैं तो तो दल बदल एक्ट के मुताबिक सांसदों की योग्यता या अयोग्यता रहने का दारोमदार लोक सभा स्पीकर के ऊपर ही निर्भर रहता है।


पिछले मोदी सरकार के दोनों कार्यों कार्यों को अगर देखा जाए तो बीते 10 वर्षों में भाजपा ने कई क्षेत्रीय दलों में सेंध लगाकर उनके एमपी उनके सांसद और विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है था मगर इस बार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन से बन रही एनडीए सरकार नहीं चाहती कि भाजपा पहले की तरह मनमानी कर क्षेत्रीय दलों में तोड़फोड़ की राजनीति करें खासकर तेलुगू देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड में इसी खतरे को भागते हुए चंद्रबाबू नायडू चाहते हैं कि लोकसभा का स्पीकर पद उनको मिलना चाहिए जिससे कि उनकी पार्टी भविष्य में अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके।

किस तरह चुना जाता है लोकसभा स्पीकर?


नई लोकसभा के गठन से ठीक पहले यानी लोकसभा की पहली बैठक से पहले पुराने स्पीकर अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं. ऐसे में संविधान अनुच्छेद 95 (1) के तहत राष्ट्रपति एक प्रोटेम स्पीकर को नियुक्त करता है। पारंपरिक रूप से प्रोटेम स्पीकर के रूप में सदन के लिए चुनकर आए सबसे वरिष्ठ सदस्य को चुना जाता है। प्रोटेम स्पीकर ही सदन की पहली बैठक संचालित करता है और दूसरे सभी सदस्यों को शपथ दिलाता है। प्रोटेम स्पीकर की देखरेख में ही स्पीकर का चुनाव होता है।


नई लोकसभा के गठन से ठीक पहले यानी लोकसभा की पहली बैठक से पहले पुराने स्पीकर अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं. ऐसे में संविधान अनुच्छेद 95 (1) के तहत राष्ट्रपति एक प्रोटेम स्पीकर को नियुक्त करता है. पारंपरिक रूप से प्रोटेम स्पीकर के रूप में सदन के लिए चुनकर आए सबसे वरिष्ठ सदस्य को चुना जाता है. प्रोटेम स्पीकर ही सदन की पहली बैठक संचालित करता है और दूसरे सभी सदस्यों को शपथ दिलाता है. प्रोटेम स्पीकर की देखरेख में ही स्पीकर का चुनाव होता है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 93 में लोकसभा के अध्यक्ष पद का जिक्र है. गठन होने के बाद लोकसभा सांसद जल्द से जल्द अपने में से दो सांसदों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के लिए चुनते हैं। स्पीकर का कार्यकाल उनके चुनाव की तारीख से लेकर अगले प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति से ठीक पहले तक होता है।


स्पीकर, लोकसभा का अध्यक्ष होता है। उनको यह सुनिश्चित करना होता है कि सदन की बैठकों का संचालन ठीक तरह से हो रहा है. सदन में व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष की होती है और इसके लिए वह निर्धारित नियमों के तहत कार्यवाही भी कर सकता है. इसमें सदन को स्थगित करना या निलंबित करना शामिल है।

बैठक का एजेंडा क्या है, किस बिल पर कब वोटिंग होगी, कौन वोट कर सकता है जैसे तमाम मुद्दे पर अंतिम फैसला लोकसभा स्पीकर का ही होता है। विपक्ष के नेता को मान्यता देने का काम भी स्पीकर का ही है। जब सदन चल रहा होता है तो सैद्धांतिक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी पार्टी से जुड़ा न होकर बिल्कुल निष्पक्ष होता है।


लोकसभा स्पीकर के पास काफी ताकत होती है, लेकिन सिर्फ इसी वजह से BJP स्पीकर पद को TDP देने से नहीं झिझक रही है. दरअसल, साल 1999 में अटल बिहार वाजपेयी सरकार के अविश्वास प्रस्ताव हारने में TDP के स्पीकर की काफी अहम भूमिका रही थी।
17 अप्रैल, 1999 को वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था। कहा जा रहा था कि वो सदन में बहुमत साबित कर लेंगे लेकिन आखिरी समय में कांग्रेस के सांसद गिरधर गमांग ने खेल पलट दिया। गिरधर गमांग वैसे तो कांग्रेसी सांसद थे, लेकिन फरवरी 1999 में वो ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे लेकिन तब भी उन्होंने सांसद की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया था और वो 17 अप्रैल को लोकसभा में पहुंच गए. ऐसे में लोकसभा के अध्यक्ष को फैसला लेना था कि कांग्रेस सांसद को वोटिंग का अधिकार मिलेगा या नहीं।

तत्कालीन स्पीकर जीएम बालयोगी ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके रूलिंग दी कि गिरधर गमांग अपने विवेक के आधार पर वोटिंग कर सकते हैं। कांग्रेस के गमांग ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट किया और इस एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई. तब सरकार के पक्ष में 269 वोट और खिलाफ में 270 वोट पड़े थे इसलिए भाजपा पार्टी चाहेगी कि स्पीकर का पद उसी के किसी सांसद को मिले।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here