
Anand Bakshi, renowned Bollywood lyricist, known for his timeless Hindi film songs.
आनंद बख्शी: गीतों के जादूगर, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को अमर धुनें दीं
हिंदी सिनेमा के महान गीतकार आनंद बख्शी का सफर संघर्ष से सफलता तक का अनूठा उदाहरण है। उन्होंने 550 से अधिक फिल्मों में 4000 से ज्यादा गीत लिखे और चार दशकों तक संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज किया। जानिए, उनके जीवन, करियर, संघर्ष और उपलब्धियों की पूरी कहानी।
मुंबई, (Shah Times)। भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने चार दशकों तक श्रोताओं को अपने जादुई शब्दों से मंत्रमुग्ध किया। पर कम ही लोग जानते हैं कि उनका सपना गीतकार नहीं, बल्कि पार्श्वगायक बनने का था।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
21 जुलाई 1930 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे आनंद बख्शी को उनके करीबी लोग ‘नंद’ या ‘नंदू’ कहकर पुकारते थे। उनके परिवार का उपनाम ‘बख्शी’ था, जबकि उनका असली नाम आनंद प्रकाश रखा गया था। बचपन से ही उनका सपना फिल्मों में काम करने और शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने का था, लेकिन मजाक उड़ाए जाने के डर से उन्होंने अपनी यह इच्छा कभी जाहिर नहीं की।
अपने सपनों को साकार करने के लिए मात्र 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और मुंबई पहुंचे। यहां उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में दो वर्ष तक काम किया, लेकिन किसी विवाद के कारण उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने 1947 से 1956 तक भारतीय सेना में भी सेवा दी। परंतु उनका दिल हमेशा संगीत और सिनेमा के लिए धड़कता रहा।
फिल्मी दुनिया में प्रवेश
मुंबई में संघर्ष के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर अभिनेता भगवान दादा से हुई। भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘भला आदमी’ (1958) में गीतकार के रूप में पहला मौका दिया। हालांकि यह फिल्म सफल नहीं रही, लेकिन आनंद बख्शी के लिए यह फिल्म इंडस्ट्री में एक मजबूत कदम था।
इसके बाद सात वर्षों तक उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। 1965 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ ने उन्हें रातों-रात प्रसिद्ध कर दिया। इस फिल्म के गीत ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना’, ‘ये समां, समां है ये प्यार का’, ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल’ सुपरहिट हुए और आनंद बख्शी को एक सशक्त गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। उसी वर्ष आई फिल्म ‘हिमालय की गोद’ का गीत ‘चांद सी महबूबा हो मेरी’ भी बेहद लोकप्रिय हुआ।
राजेश खन्ना और आनंद बख्शी: एक यादगार जोड़ी
आनंद बख्शी के गीतों ने सुपरस्टार राजेश खन्ना के करियर को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। फिल्म ‘आराधना’ (1969) का गाना ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ आज भी लोगों की जुबां पर है। इस गाने की सफलता ने राजेश खन्ना को सुपरस्टार बना दिया, वहीं किशोर कुमार को भी नई पहचान मिली।
इसके बाद आनंद बख्शी और आरडी बर्मन की जोड़ी ने एक से बढ़कर एक सदाबहार गाने दिए। ‘शोले’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘कटी पतंग’, ‘कर्ज़’ जैसी फिल्मों में उनके गीतों ने सिनेमा प्रेमियों को वर्षों तक रोमांचित किया।
सम्मान और उपलब्धियां
आनंद बख्शी को 40 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए नामांकित किया गया, जिसमें से उन्होंने चार बार यह प्रतिष्ठित सम्मान जीता। उन्होंने एसडी बर्मन-आरडी बर्मन, चित्रगुप्त-आनंद मिलिंद, कल्याणजी-आनंदजी-विजू शाह, रोशन-राजेश रोशन जैसे दो पीढ़ियों के संगीतकारों के साथ काम किया।
गायन की अधूरी चाहत
गीतकार बनने के बावजूद आनंद बख्शी की दिली ख्वाहिश थी कि वे पार्श्वगायक बनें। उन्होंने 1970 की फिल्म ‘मोम की गुड़िया’ में ‘मैं ढूंढ रहा था सपनों में’ और ‘बागों में बहार आई’ जैसे गाने गाए, जो लोकप्रिय भी हुए। इसके अलावा, ‘चरस’ फिल्म का गीत ‘आजा तेरी याद आई’ भी उनकी गायन प्रतिभा को दर्शाता है।
आखिरी सफर
चार दशकों तक अपने गीतों से फिल्मी दुनिया पर राज करने वाले आनंद बख्शी ने 550 से अधिक फिल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे। 30 मार्च 2002 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
उनके लिखे गीत आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं। चाहे प्रेम, दर्द, जीवन की सच्चाई या देशभक्ति, हर भावना को उन्होंने अपने गीतों में जीवंत किया। आनंद बख्शी भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके लिखे अमर गीतों की गूंज सदा बनी रहेगी।