
Amitabh Bachchan Reacts to India-Pakistan Tension – Shah Times Exclusive
महानायक अमिताभ बच्चन ने भारत-पाक तनाव और पहलगाम हमले के संदर्भ में रामचरितमानस और हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियों के माध्यम से शांति और पराक्रम का संदेश दिया है। जानें उनके विचारों का गूढ़ अर्थ।
कर्मवीर की पहचान शब्दों में नहीं, युद्धभूमि में होती है – यह विचार कोई साधारण कथन नहीं, बल्कि एक गूढ़ जीवन-दर्शन है जिसे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने हाल ही में अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से साझा किया। उनके द्वारा उद्धृत तुलसीदास कृत रामचरितमानस की यह पंक्ति – “सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आप” – न केवल आज के सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक है, बल्कि यह समय को पार करता हुआ चिरस्थायी सत्य बन गया है।
पिछले कुछ दिनों से बच्चन साहब एक्स (पूर्व ट्विटर) पर रहस्यमयी ब्लैंक ट्वीट्स के कारण चर्चा में थे। ऐसे में जब भारत-पाकिस्तान तनाव और पहलगाम जैसे आतंकी हमलों के बीच उनकी चुप्पी बनी रही, तो कुछ आलोचकों ने प्रश्न उठाए। लेकिन शनिवार रात आई उनकी विचारशील प्रतिक्रिया ने न केवल उनकी गंभीरता को रेखांकित किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि वीरता का असली रूप भाषण नहीं, कर्म होता है।
अमिताभ बच्चन ने अपने पिता, साहित्य सम्राट हरिवंश राय बच्चन की कविता का भी उल्लेख किया, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई थी। यही वह दृष्टि है जो समय से पहले हालात को पहचान लेती है – और लगभग 60 वर्ष बाद भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह साहित्यिक हस्तक्षेप केवल एक व्यक्तिगत भाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का संकेत है।

आज जब सोशल मीडिया पर वीरता को ‘लाइक्स’ और ‘वायरल हैशटैग्स’ से मापा जाने लगा है, ऐसे में बच्चन जी का यह सटीक और मर्मस्पर्शी संदेश हमें यह सोचने को विवश करता है कि क्या हम वीरता को केवल शब्दों से आंक सकते हैं?
निष्कर्षतः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अमिताभ बच्चन की यह साहित्यिक प्रतिक्रिया वर्तमान भारत की जमीनी हकीकत और सांस्कृतिक बोध को जोड़ने वाला एक सेतु है। यह संदेश उन सभी के लिए भी एक चेतावनी है जो वीरता के नाम पर केवल भाषण और प्रचार करते हैं। अंततः, वीर वही होता है जो रणभूमि में अपने आचरण से अपनी पहचान बनाता है – न कि वाणी के आकर्षण से।