मन्नतें मांगने और निशान ‘नेजा ‘ चढ़ाने मेला गुघाल में दूर-दराज से आते हैं लाखों लोग
ज़िया अब्बास ज़ैदी
Saharanpur,( शाह टाइम्स) । सहारनपुर से करीब 5 किमी दूर सहारनपुर – गंगोह मार्ग पर एक गांव है मानकमऊ, जो शहर से मिला हुआ है, जहां पराक्रमी गुग्गावीर की समाधि बनी हुई है जो म्हाड़ी के नाम से विख्यात है।मन्नतें मांगने और निशान ‘नेजा ‘ चढ़ाने मेला गुघाल में दूर-दराज से लाखों लोग आते हैं।
हर वर्ष भादो शुक्ल दशमी को सैकड़ों वर्षों से गुग्गावीर की स्मृति में मेला गुघाल नाम से भव्य मेला लगता चला आ रहा है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं और मन्नतें मांगते हैं और निशान चढ़ाते हैं। लंबे बांस पर कपड़ा लिपटा हुआ यह निशान गुग्गावीर की विजय पताका का प्रतीक माना जाता है। इस मेले का सबसे अधिक महत्व यह है कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में गुग्गा के राष्ट्र वेदी पर हुए बलिदान व उनके प्रति सभी धर्मावलंबियों की मान्यता होने के कारण उनकी स्मृति में लगने वाला यह मेला हिन्दू मुस्लिम राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन गया है। इस मेले की पूरी व्यवस्था नगर निगम सहारनपुर करती है और नगर वासियों तथा बाहर से आए नागरिकों की सुविधा के लिए गंगोह मार्ग रेलवे फाटक ईदगाह के आसपास भव्य बाजार सजाए जाते हैं, जिसमें दूसरे जनपदों के व्यापारी आकर अपनी दुकानें सजाते हैं।
गोगावीर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जाहरवीर दीवान को लेकर क्षेत्र में अनेक किवदंतियां हैं। कहा जाता है कि सिरसा पारत राजस्थान के राजा कुंवरपाल की दो लड़कियां थीं। बाछल व काछल, बाछल ने गुरु गोरखनाथ गोरख की वर्षों प्रार्थना कर जब संतान का वरदान चाहा तो उनकी बहन काछल ने रात्रि में गुरु गोरखनाथ के पास पहुंचकर पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना की एक रानी बाछल व काछल के हमशक्ल होने की वजह से गुरु गोरखनाथ ने काछल को रानी बाछल समझ कर दो पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। काछल के लौटने के बाद जब रानी बाछल के पास पहुंची तब तक उनका डेरा उखड़ चुका था। रानी बाछल ने गुरु गोरखनाथ का पीछा कर उन्हें गद्दी पर पा लिया तथा गुरु से अपनी सेवा का हल चाहा। शिव का अवतार समझे जाने वाले गुरु गोरखनाथ ने जब रानी बाछल से कहा कि बीती रात तुम्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे चुका हूं तो रानी बाछल ने उत्तेजित होकर उन्हें झूठा करार दिया। इस पर गुरु ने शिव का ध्यान किया तो बाछल रानी काछल के वेश में उनकी छोटी बहन उन्हें चकमा दे गई।
रानी बाछल की मनोकामना पूरी करने के लिए गुरु गोरखनाथ अपनी योगिक शक्तियों के सहारे झूमने लगे आखिर उन्हें भगवान शिव के पास गुग्गल मिली। गुरु गोरखनाथ ने रानी बाछल को गुग्गल देकर कहा कि तुम इसको धूप देना जिससे पुत्र प्राप्त होगा तथा तुम्हारी बहन ने धोखा देकर पुत्र प्राप्त किए हैं उनका वध नहीं करेगा। गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से बाछल ने गुग्गा व काछल ने अर्जन व सर्जन को जन्म दिया। संपत्ति और धन के बंटवारे को लेकर हुए युद्ध में अर्जन सर्जन मारे गए। बाछल का पुत्र गुग्गा युद्ध समाप्ति पर अर्जन व सर्जन का सिर लेकर अपनी मां रानी बाछल के पास पहुंचा। अर्जन और सर्जन की मौत का समाच. ार सुनकर रानी बाछल अचंभित रह गईं तथा उसने अपने पुत्र गुग्गा का मुंह न देखने का प्रण लिया। अपनी मां के प्रण को निभाने के लिए गुग्गा जंगल में चला गया, लेकिन रात्रि में छुपकर अपनी पत्नी के पास आया जाया करता था । गुग्गा की पत्नी के श्रंगार को देखकर जब रानी बाछल ने गुग्गा के बारे में पूछा तो उसकी पत्नी ने कहा कि रात में आते हैं लेकिन आते समय नहीं दिखाऊंगी जाते समय दिखाऊंगी।
अगली रात्रि जब गुग्गा अपनी पत्नी के पास से लौट रहा था तो रानी बाछल उसके पीछे दौड़ पड़ी। मां को पीछे आते देख गुग्गा बागड़ देश के जंगल में जा छुपा । जंगल में प्रकट होकर गुरु गोरखनाथ ने जहां गुग्गा को पीरी दी ही पर बाद में म्हाड़ी बना दी गई। बताया जाता है कि एक बार गुग्गावीर जब घूमते हुए सहारनपुर आए तो उन्होंने गंगोह रोड पर जोहड़ से कुछ लोगों को मछली मारते हुए देखा गुग्गावीर ने जब इनसे पूछा तुम यह क्या कर रहे हो तथा झोले में क्या है उन्होंने कहा कि हम मछलियां मार रहे हैं तथा हमारे झोले में भी मछलियां ही हैं। इस पर गुग्गावीर ने उनसे कहा कि तुम्हारे झोले में मछलियां नहीं हैं झांक कर देखो, उन लोगों ने अपने झोले में झांका तो उनमें सांप ही सांप नजर आए।
गुग्गावीर के चमत्कार को देखकर उनके पैरों में गिर पड़े।
उनकी प्रार्थना से खुश होकर गुग्गावीर ने उन्हें अपना प्रतीक नेजा भेंट किया तथा प्रति वर्ष मेला आयोजित करने को कहा। संबंधित परिवारों ने जब इसमें रूचि नहीं ली तो एक घरेलू नौकर कबली भगत ने नेजे का ग्रहण कर लिया तब से प्रतीक नेजा उसके परिवार के पास ही है। सहारनपुर जनपद में बांगड़ वाला गुग्गावीर को विशेष महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि उनकी सेवा करने से संतान प्राप्ति आर्थिक समृद्धि व स्वास्थ्य लाभ होता संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होने पर लोग मकान के बाहरी भाग में दो ईंटों का नाथ बना देते हैं, इसे म्हाड़ी कहा जाता है । तिथि, त्योहार को इसमे दीप जलाया जाता है तथा गुग्गावीर को खुश करने के लिए पतल कंदूरी भी की जाती है जिसकी यहां के लोग रात्रि अखाड़ा कहते हैं। इसमें कढ़ी चावल का प्रसाद चढ़ाते हैं और रातभर गुग्गावीर का पूजन किया जाता है। गुग्गावीर का मेला इस जनपद का सबसे प्राचीन मेला माना जाता है। बताते हैं कि इसे लगते हुए करीब साढ़े तीन सौ वर्ष बीत चुके हैं। समय के साथ मेले में परिवर्तन होते रहे हैं कहा जाता है कि पहले गुग्गावीर का मेला सिर्फ म्हाड़ी पर ही लगता था जहां पर दूर से आने वाले व्यक्ति मनोकामना की पूर्ति हेतु निशान चढ़ाते थे पर अब मेला कई स्थानों पर लगता है और उनमें सबसे बड़ा मेला यहीं लगता है। अद्भुत शक्ति के कारण ही उन्हें जाहीरपीर यानि साक्षात देवता नीले घोड़े वाला और सांपों के देवता के रूप में भी मानते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग गोगावीर को पीर के रूप में मानते हैं।
ज्ञातव्य है कि रेशमी कपड़े से सजी 24 छड़ियां एक सरदार छड़ी और धातु का बना नेजा शहर की परिक्रमा करने के बाद दशमी के दिन म्हाड़ी पर पहुंचते हैं। जहां उनके मालिक उनकी विधिवत पूजा करते हैं इसके बाद मेला शुरू हो जाता है। मेला खत्म होने के बाद छड़ियां भक्तों के घर लौट जाती हैं और हर साल यही सिलसिला जारी रहता है। इस मेले में अनेक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। सहारनपुर नगर निगम के मेयर डा. अजय कुमार के अनुसार गुघाल मेला 16 सितम्बर से शुरू होकर एक पखवाड़े तक चलेगा, जबकि छड़ी का मेला 13 सितम्बर से शुरू हो जाएगा।