अदालतें कानून नहीं बनातीं, लेकिन कानूनों की समीक्षा कर सकती हैं: डीवाई चंद्रचूड़
दुनिया के 34 देशों में समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया गया
दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है और इसे संसद पर डाल दिया है। सीजेआई ने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है।
हालाँकि, कोर्ट ने समलैंगिकों के पक्ष में उनके अधिकारों को लेकर कई अहम टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा- हर किसी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud), संजय किशन कौल (Sanjay Kishan Kaul), रवींद्र भट्ट (Ravindra Bhatt), हिमा कोहली (Hima Kohli) और पीएस नरसिम्हा (PS Narasimha) की पांच सदस्यीय पीठ ने मौलिक अधिकारों पर विचार किया है।
संविधान के अनुसार न्यायिक समीक्षा उचित, मौलिक अधिकारों पर विचार
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने कहा, ‘इस मामले में अलग-अलग विषयों पर कुल 4 फैसले हैं। कुछ में सहमति है तो कुछ में असहमति। उन्होंने कहा, ‘अदालतें कानून नहीं बनातीं, लेकिन कानूनों की समीक्षा कर सकती हैं। संविधान के अनुसार न्यायिक समीक्षा उचित है। हमने मौलिक अधिकारों के मामले पर विचार किया है।
आपको बता दें कि 5 साल पहले समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद 11 मई को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दुनिया के 34 देशों में समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया गया है।
सभी व्यक्तियों को अपना साथी चुनने का अधिकार
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘जीवनसाथी चुनना जीवन का अहम हिस्सा है। एक साथी चुनने और उस साथी के साथ जीवन जीने की क्षमता जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आती है। जीवन के अधिकार में जीवन साथी चुनने का अधिकार भी शामिल है। LGBTQ+ समुदाय सहित सभी व्यक्तियों को अपना साथी चुनने का अधिकार है।
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‘शादी बदल गई है और ये अटल सत्य है‘
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘कोर्ट इतिहासकारों का काम नहीं ले रहा है। विवाह संस्था बदल गई है, जो संस्था की विशेषता है। विवाह का स्वरूप सती और विधवा पुनर्विवाह से बदलकर अंतरधार्मिक विवाह हो गया है। शादी बदल गई है और ये अटल सत्य है और ऐसे कई बदलाव संसद से आए हैं।
उन्होंने कहा, ‘यदि राज्य पर सकारात्मक दायित्व नहीं थोपे गए तो संविधान में दिए गए अधिकार एक मृत अक्षर होंगे। समानता की विशेषता वाले व्यक्तिगत संबंधों में, अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को प्रधानता प्राप्त होती है। अनुच्छेद 245 और 246 के तहत, सत्ता में मौजूद संसद ने विवाह संस्था में बदलाव लाने वाले कानून बनाए हैं।
समलैंगिकता सिर्फ एक शहरी अवधारणा नहीं है
इससे पहले चीफ जस्टिस ने कहा, ‘यह कहना सही नहीं है कि समलैंगिकता एक शहरी अवधारणा है। ऐसा नहीं है कि समलैंगिकता केवल शहरी अभिजात वर्ग तक ही सीमित है। ये अंग्रेजी बोलने वाले सफेदपोश लोग नहीं हैं जो समलैंगिक होने का दावा कर सकें। किसी गाँव की किसान महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है।