
लोकसभा इलेक्शन में कांग्रेस ने अपनी सीटों की तादाद लगभग दोगुनी कर खुद को ऑल इंडिया एलायंस के लीडर के तौर पर कायम करने की कोशिश कर रही थी।
नई दिल्ली,(Shah Times)। हरियाणा विधानसभा इलेक्शन में कांग्रेस की शिकस्त हुई है। फतेह की दहलीज पर पहुंचकर भी कांग्रेस हाथ मलती रह गई। भारतीय जनता पार्टी ने कुछ ही वक्त में हरियाणा फतेह कर लिया। भले ही कांग्रेस को हरियाणा से ज़ख्म मिला हो, लेकिन इसका दर्द कई जगहों पर महसूस किया जाएगा।
मंगलवार को हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही कांग्रेस ने न सिर्फ हरियाणा खो दिया, बल्कि सीटों के बटवारे को लेकर एलायंस के साथ सौदेबाजी की अपनी ताकत भी खो दी।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर तस्दीक कर दी कांग्रेस को आगे बढ़ने के लिए अभी भी बैसाखियों की जरूरत है और बीजेपी से सीधी लड़ाई में कांग्रेस अभी भी लड़खड़ाती नजर आ रही है। चुनाव नतीजों के साथ ही यह साबित हो गया कांग्रेस के लिए आगे की राह कतई आसान नहीं है।लोकसभा इलेक्शन के नतीजों के बाद भले ही राजनीतिक राह आसान लग रही थी, लेकिन हरियाणा ने कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर इलेक्शन के नतीजों का असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर जरूर पड़ेगा। इस साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा इलेक्शन हैं और अगले साल दिल्ली में भी इलेक्शन होंगे। इन चुनाव नतीजों का असर महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के इलेक्शन पर भी पड़ेगा। हरियाणा में तो हार गए, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की मेहरबानी से ही कांग्रेस सत्ता में आई है।
अगर कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में एनसी के साथ अलायन्स नहीं किया होता तो उसे कश्मीर में सत्ता से दूर रहना पड़ता। कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर इलेक्शन लड़ा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 में से 42 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 32 में से सिर्फ 6 सीटें ही मिल पाईं।
कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में अपनी अलायंस नेशनल कॉन्फ्रेंस की बदौलत ही सत्ता में साझेदारी कर पाई है। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस जूनियर साथी ही रही।
झारखंड में भी कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा की जूनियर साथी है। अपना वजूद बचाने के लिए उसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ ही रहना होगा। झारखंड में नवंबर में इलेक्शन होने हैं।
जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजों ने दिखा दिया कि कांग्रेस को अभी भी बैसाखियों की जरूरत है। वह अपने पैरों पर खड़ी होने की स्थिति में नहीं है। जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ हरियाणा ने भी कांग्रेस पार्टी को सबक सिखाया। वह यह कि कांग्रेस अभी भी बीजेपी से सीधी लड़ाई में खड़ी नहीं हो सकती। हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस सीधी लड़ाई में बीजेपी को हराने में नाकाम रही। हरियाणा की तरह मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान… ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस को सीधी लड़ाई में बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजों ने कांग्रेस की आगे की राह और कठिन कर दी है। महाराष्ट्र में इस साल नवंबर में इलेक्शन हैं। यहां कांग्रेस का उद्धव की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ एलायंस है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस बातचीत की मेज पर मजबूत पोजीशन में थी। लेकिन हरियाणा-कश्मीर के चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है।
इंडिया एलायंस के साथी दल हरियाणा और कश्मीर के पैगाम को समझ चुके हैं। इसका असर यह होगा कि कांग्रेस को अब बातचीत की मेज पर नुकसान उठाना पड़ेगा। अब वह सीट बंटवारे में सौदेबाजी करने की पोजिशन में नहीं रहेगी।
हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद यह झलक भी देखने को मिली. उद्धव ठाकरे की शिवसेना को कांग्रेस को बैकफुट पर लाने का मौका मिल गया. शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने मंगलवार को हरियाणा के चुनाव नतीजों पर कहा, ‘कांग्रेस पार्टी को भी अपनी रणनीति पर विचार करना होगा. क्योंकि जहां भी बीजेपी से सीधा मुकाबला होता है, कांग्रेस पार्टी कमजोर हो जाती है. ऐसा क्यों होता है? पूरे गठबंधन पर फिर से काम करें.’ यहां यह बताना जरूरी है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना महाराष्ट्र में कांग्रेस की साथी है ।लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस खुद को महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में देख रही थी. लेकिन अब उसे झटका लगेगा.
लोकसभा इलेक्शन में कांग्रेस ने अपनी सीटों की तादाद लगभग दोगुनी करके 99 कर ली थी। इसके बाद कांग्रेस ने खुद को ऑल इंडिया एलायंस के लीडर के तौर पर कायम करने की कोशिश की थी। कांग्रेस महाराष्ट्र में ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ने और मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनने का हक मांग रही थी। लेकिन अब ऐसा होना मुश्किल लग रहा है। हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस को शायद यह ख़ास हक ना मिल पाए। हालांकि कांग्रेस की मुश्किलें सिर्फ महाराष्ट्र तक ही महदूद नहीं हैं।
अगले साल दिल्ली विधानसभा इलेक्शन में भी उसे अरविंद केजरीवाल से सौदेबाजी में पीछे रहना पड़ेगा। इस तरह हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव कांग्रेस के लिए सबक थे। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस जोश से भरी हुई थी, लेकिन अब यह जोश ठंडा पड़ जाएगा। अब वह आगामी चुनावों में सहयोगियों से सौदेबाजी की अपनी ताकत खो चुकी है।