~हफीज किदवई
जो आज अयोध्यावासियों को अपशब्द कह रहें, उनसे बात कर रही हैं अयोध्या जी…
मैं अयोध्या हूँ । वह अयोध्या जिसने निर्माण और विध्वंस के हज़ार क़िस्सों को सरयू के पानी में बहते हुए देखा है। वह सरयू जिसने मेरे हर आंसू को अपने पानी से छिपाया है और मेरी हर खुशी को लहरों की उथल पुथल से प्रकट किया है।
मैं वह अयोध्या हूँ,जो कभी निराश नही हुई। मुझे साकेत कहा गया,मुझे कौशल की राजधानी बनाया गया तो मुझे अवध जागीर के फैज़ाबाद का दिल कहा गया, मगर मैं तो पहले से आख़िर तक अयोध्या ही तो हूँ।
मैं वह अयोध्या हूँ जिसके आंगन में राम ने जन्म की पहली थाप दी। मैंने कौशल्या के मां बनने की मुस्कान को देखा है। एक बालक, जिसे अपने भाई बहन से अथाह प्रेम था,उन राम को अपने आंगन में बड़ा होते देखा है।
मेरे ही पहलू में गुरु वशिष्ट के वह पाठ भी थे,जिन्होंने कितने ही ऐतिहासिक अध्याय निखारे। मेरे ही सामने तो दशरथ ने गले लगकर राम को अपना उत्तराधिकार दिया। मेरे ही सामने सीता बहु बनकर आई। मैंने अपने राम का विरह भी तो देखा।
यहां सुनो मेरे दर्द की पहली कहानी।
राम,जो मेरा मान थे। मेरे ही सीने से दूर किये जा रहे थे। जिसे हमने नाज़ों से पाला था,उसे वनवास दिया जा रहा था। मैं ही वह अयोध्या थी,जो चीख चीख कर रो रही थी। मगर राम के एक इशारे पर हमने अपना सारा दर्द सीने में दबा लिया, सारे आँसू सरयू में बहा दिए और आंखे उधर सजा दीं, जिधर से राम को वापिस आना था।
इस दुनिया में वह मिट्टी का टुकड़ा भला कौन है, जिसने खड़ाऊ के शासन को स्वीकारा। मैं वह अयोध्या थी,जो अपने राम के खड़ाऊ मात्र के सामने झुकी खड़ी खड़ी रही। हम थे वह अयोध्यावासी जिन्होंने अपने राम के बिना उस सिंघासन पर किसी दूसरे को स्वीकार नही किया। अब सुने मेरे दर्द की कहानी,हमने राम के युग को देखा है। हर उतार चढ़ाव देखे हैं मगर कभी मायूस नही हुए।
हमने वनवास के दर्द को, तो वापसी की दीवाली भी देखी है। हमने अपने राम को जन्मते देखा है, तो सरयूं में विलीन होते भी देखा है।
हम वह अयोध्या हैं जिसने बुद्ध को देखा है। बुद्ध के युग को देखा है। बुद्ध के प्रताप को देखा है। बुद्ध के ज्ञान को देखा है।
मैं वह अयोध्या हूँ जिसने महावीर जैन और तमाम तीर्थंकर को भी देखा है। जैन मुनियों के ज्ञान और विचरण को देखा है। हमने तो अपने पहलू में मुगलों को भी आते देखा है। अपने सीने पर मंदिर बनते,मंदिर टूटते देखा है। मस्जिद बनते, मस्जिद टूटते देखा है, मठ बनते,मठ टूटते देखा है, स्तूप बनते,स्तूप टूटते भी देखा है। हमने नवाबों की हुकूमत भी देखी है। हम हैं अयोध्या,जिसने इस देश की हर करवट को बहुत करीब से देखा है।
मगर जो नही देखा था,वह अब देख रहे हैं । इतना कुछ बदला, एक से एक हुक्मरान आए,धर्मगुरु आए,विचार आए और गए मगर कभी अयोध्यावासी गाली नही खाए।
कभी किसी की हिम्मत नही पड़ी की अयोध्यावासियों पर उंगली उठाकर उनके गर्व को धिक्कारे। मैं हूँ वह अयोध्या जिससे वनवास जाते राम ने पलटकर कभी एक शिकायत भी नही की। हाँ मैं हूँ वह अयोध्या, जिसका आँचल सरयू है, उस सरयू में जब राम विलीन हो रहे थे, तब भी किसी ने अयोध्यावासी को अपशब्द नही कहे। अयोध्या जो पीड़ा सहती रही है, उसका मोल आजकल की कुर्सी की दीमक क्या ही समझेंगी। अयोध्या जिस बात पर मुस्कुराती है, उसकी मुस्कुराहट नफरत से भरे दिल भला क्या ही समझेंगे।
मैं फिर कहती हूँ,मैं अयोध्या हूँ। मुझे बनने से आजतक कभी भी ऐसे अपशब्दों का सामना नही करना पड़ा,जो अब हो रहा है। आज एक अदद कुर्सी तुमसे क्या छीनी,तुम छिन्न भिन्न हो गए। तुम त्यागी अविनाशी अयोध्या को क्या ही जानोगे। सच तो यह है कि मुझे अपशब्द कहने वाले ही मेरे योग्य नही हैं, मगर मैं अयोध्या हूँ,तुम्हारे इस दुस्साहस को भी क्षमा करूंगी क्योंकि मेरा हृदय मेरे राम जैसा है।
मेरे बारे में एक बात और जान लो,मैं तुम्हारे दस रुपये की पानी की बोतल और बीस रुपये के नमकीन और चंद रुपल्ली के टूरिज़्म से जीवित नही रहती हूं । मैं अयोध्या हूँ,तुम जब नही थे,मैं तब भी गर्व से जीती थी,अब होकर भी न हो,तब भी गर्व से ही जियूंगी।
मैं और मेरी सरयूं का पानी इतना सक्षम है कि हर अयोध्यावासी को हर विपरीत स्थिति में उनका साथ निभाए। मैं कल भी अवधेश के साथ थी, आज भी हूँ,कल भी रहूँगी, तुम मेरे पर्याय को कभी नही समझोगे।तुम अपने अहंकार,कुर्सी की लालच और नफरत की आग में जलो,मगर मैं दुनिया को मर्यादा,प्रेम,सहिष्णुता,बराबरी और त्याग का संदेश देती रहूँगी।
मैं अयोध्या थी,अयोध्या हूँ और सदैव अयोध्या रहूंगी।