
Silhouetted protesters in front of burning vehicles raise flags as Trump deploys National Guard in Los -Shah Times
इमिग्रेशन बैन के खिलाफ अमेरिका में प्रदर्शन तेज,नेशनल गार्ड की तैनाती से बिगड़े हालात
अमेरिका में ट्रंप द्वारा 12 देशों पर एंट्री बैन और लॉस एंजेलिस में नेशनल गार्ड्स की तैनाती ने लोकतांत्रिक अधिकारों और संघीय संतुलन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पढ़ें पूरी संपादकीय समीक्षा।
🔹 प्रस्तावना: सुरक्षा के नाम पर लोकतांत्रिक अधिकारों की बलि?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 12 देशों के नागरिकों पर पूर्ण प्रतिबंध और 7 देशों पर आंशिक प्रतिबंध लगाने के फैसले के साथ-साथ लॉस एंजेलिस में सेना की तैनाती ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या यह कदम अमेरिका की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में है, या फिर यह एक राजनीतिक हथकंडा है जो लोकतंत्र की बुनियादी आत्मा पर प्रहार करता है?
🔹 ट्रंप का आदेश: 12 देशों पर एंट्री बैन, 7 पर आंशिक रोक
9 जून से लागू हुए आदेश के तहत 12 देशों के नागरिकों का अमेरिका में प्रवेश पूरी तरह बंद कर दिया गया है, जबकि 7 देशों के लोगों पर कुछ वीजा कैटेगरी में रोक लगाई गई है। ट्रंप ने इसे अमेरिका की “राष्ट्रीय सुरक्षा” के हित में बताया है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह फैसला सुरक्षा तथ्यों पर आधारित है या चुनावी राजनीति से प्रेरित?
🔹 लॉस एंजेलिस में विरोध: लोकतांत्रिक असहमति या अराजकता?
लॉस एंजेलिस की सड़कों पर हजारों की संख्या में लोग ट्रंप के आदेश के विरोध में उतर आए। विरोध-प्रदर्शनों में गाड़ियों को आग के हवाले किया गया, हाईवे जाम किया गया और ‘शर्म करो ट्रंप’ जैसे नारे गूंजे। ट्रंप ने इसके जवाब में नेशनल गार्ड्स की तैनाती कर दी, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।
🔹 नेशनल गार्ड की तैनाती: संघीय सत्ता बनाम राज्य अधिकार
कानून विशेषज्ञ प्रो. डेनियल उरमैन के अनुसार, ट्रंप का यह कदम “भड़काने वाला” है और इससे संघीय और राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है। अमेरिका में सेना को नागरिकों के खिलाफ बल प्रयोग करने की अनुमति नहीं होती, लेकिन ट्रंप द्वारा Insurrection Act का हवाला देकर सेना तैनात करना संविधानिक संरचना पर सवाल खड़े करता है।
🔹 विरोध की आज़ादी पर संकट
ट्रंप के इस कदम से First Amendment यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति दर्ज कराने के अधिकार पर खतरा मंडराता है। यदि हर बार विरोध को सेना से दबाया जाएगा, तो भविष्य में लोग आवाज उठाने से डरेंगे और यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी होगी।
🔹 ऐतिहासिक संदर्भ: क्या यह 1992 की पुनरावृत्ति है?
1992 के लॉस एंजेलिस दंगों में गवर्नर के अनुरोध पर नेशनल गार्ड्स तैनात किए गए थे, लेकिन इस बार ट्रंप ने बिना राज्य सरकार की सहमति के सेना भेज दी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान स्थिति उतनी गंभीर नहीं थी जितनी प्रशासन दिखाना चाह रहा है।
🔹 इमिग्रेशन बैन की राजनीति: मुस्लिम बैन की पुनरावृत्ति?
2017 में ट्रंप ने जिन मुस्लिम-बहुल देशों पर प्रतिबंध लगाया था, यह फैसला उसी की पुनरावृत्ति प्रतीत होता है। अब एक बार फिर इमिग्रेशन कानूनों के नाम पर मानवाधिकारों और वैश्विक साझेदारियों को दरकिनार किया जा रहा है।
🔹 निष्कर्ष: सुरक्षा बनाम लोकतंत्र
ट्रंप का यह दावा कि यह प्रतिबंध और सैन्य तैनाती अमेरिका को “सुरक्षित” बनाने के लिए है, संदेह के घेरे में है। जब राज्य सरकारें, कानूनी विशेषज्ञ और आम जनता इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला मानती हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि सुरक्षा के नाम पर सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है।
🔹 संपादकीय टिप्पणी:
“जब सत्ता विरोध की आवाज से डरने लगे और सेना को ढाल बना ले, तो समझिए लोकतंत्र की नींव डगमगाने लगी है। अमेरिका जैसे लोकतंत्र में यह एक चेतावनी है कि नागरिक स्वतंत्रताओं को हल्के में लेना सत्ता के लिए आसान, पर देश के लिए घातक होता है।”