
गाज़ा में मौत का साया,विस्थापितों का दर्द और गहरा
फिलिस्तीन में बढ़ा मानवीय संकट,अस्पतालों में शवों का अंबार
गाज़ा युद्ध पर दुनिया में निंदा संयुक्त राष्ट्र ने जताई चिंता
इजराइल ने गाज़ा सिटी पर हवाई हमला कर 14 मंज़िला टावर ढहा दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 30 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए।
Gaza,(Shah Times)। गाज़ा की ज़मीं एक बार फिर ख़ून और बारूद से रंग गई है। इजराइल और हमास के बीच लगातार बढ़ते टकराव ने हालात को न केवल फिलिस्तीनी अवाम बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय बना दिया है। शुक्रवार को इजरायली सेना ने गाज़ा सिटी में एक ऊंची इमारत, मुश्ताहा टावर, को निशाना बनाकर जमींदोज़ कर दिया। यह टावर रिमल इलाके में था, जहां युद्ध से भागकर आए सैकड़ों लोगों ने शरण ली थी। गवाहों का कहना है कि धुंआ, चीखें और मलबे के नीचे दबे लोगों की आवाज़ें हर तरफ़ गूंज रही थीं।
30 फ़लस्तीनी नागरिकों की मौत
गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस हमले में कम से कम 30 फ़लस्तीनी नागरिकों की मौत हुई है, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। वहीं, इजराइल का दावा है कि इमारत का इस्तेमाल हमास निगरानी और हमलों की तैयारी के लिए कर रहा था। सवाल यह है कि क्या यह हमला वास्तव में आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए था या यह निर्दोष नागरिकों के ख़ून से लथपथ एक और अध्याय बन गया?
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हालात का विश्लेषण
इजरायली सेना ने हमले को “सटीक और लक्षित ऑपरेशन” बताया है। सेना का कहना है कि हमास ने गाज़ा सिटी की ऊंची इमारतों को कमांड सेंटर, निगरानी पोस्ट और सुरंग नेटवर्क का हिस्सा बना लिया है।
मगर दूसरी तरफ़, उपग्रह से ली गई तस्वीरें और चश्मदीद गवाह बताते हैं कि उस इमारत के आसपास बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे। तंबुओं में रह रहे वे लोग पहले ही युद्ध से विस्थापित होकर यहां पहुंचे थे।
गाज़ा के शिफ़ा अस्पताल ने पुष्टि की है कि सिर्फ़ शुक्रवार को ही 27 से ज़्यादा लोग मारे गए, जिनमें एक ही परिवार के छह सदस्य शामिल हैं। अस्पतालों में लाशों और घायलों का अंबार है, डॉक्टरों की कमी है, और बिजली व दवाओं का गंभीर संकट जारी है।
इजराइल की रणनीति
रिज़र्व सैनिकों की भारी तैनाती
उत्तरी गाज़ा को “रेड ज़ोन” घोषित करना
नागरिकों से निकासी की चेतावनी
अगले चरण में ज़मीनी आक्रमण की संभावना
गाज़ा की त्रासदी
90% आबादी पहले ही विस्थापित
भोजन, पानी, बिजली का गंभीर संकट
महिलाओं और बच्चों की मौत का अनुपात बढ़ता हुआ
युद्ध का असर पड़ोसी देशों तक फैलने की आशंका
काउंटरपॉइंट्स
इजराइल का तर्क है कि “हम केवल उग्रवादियों को निशाना बना रहे हैं, नागरिक मौतों के लिए हमास ज़िम्मेदार है।” लेकिन यह दलील अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के दायरे में सवालों से घिरी है।
नागरिकों की सुरक्षा: अगर एक इमारत में नागरिक मौजूद हैं, तो क्या उस पर हमला करना “क़ानूनी” या “न्यायसंगत” कहा जा सकता है?
मानवीय संकट: जब 60 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी पहले ही मारे जा चुके हों, तो किसी भी हमले को महज़ “सैन्य कार्रवाई” कहना कितना उचित है?
बंधकों का मुद्दा: इजराइल की जनता भी सवाल उठा रही है कि लगातार हमलों से गाज़ा में कैद इजराइली बंधकों की ज़िंदगी को ख़तरा क्यों बढ़ाया जा रहा है?
दूसरी ओर, हमास पर भी गंभीर आरोप हैं—
घनी आबादी वाले इलाक़ों से हमले करना
नागरिक ढाल का इस्तेमाल
बंधकों को प्रचार के हथियार की तरह पेश करना
यानी एक तरफ़ इजराइल का अति-आक्रामक रवैया है, तो दूसरी तरफ़ हमास की रणनीति नागरिकों को दांव पर लगाने वाली। नतीजा वही है—निर्दोष इंसानों की मौत, तबाही और विस्थापन।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र ने इस हमले पर गहरी चिंता जताई और तुरंत युद्धविराम की अपील की।
अमेरिका ने इजराइल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया, लेकिन नागरिक मौतों पर सवाल उठाए।
यूरोपीय संघ ने इसे “मानवीय तबाही” कहा और तत्काल राहत पहुंचाने की मांग की।
अरब जगत में गुस्सा और विरोध बढ़ रहा है, मिस्र और जॉर्डन ने इजराइल को “सीमाओं से बाहर” की कार्रवाई करार दिया।
निष्कर्ष
गाज़ा की ज़मीं बार-बार ख़ून से रंगी जाती है, मगर शांति कहीं नज़र नहीं आती। इजराइल का सुरक्षा का दावा और हमास की प्रतिरोध की नीति दोनों ही आम जनता को मौत की घाटी में धकेल रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या वैश्विक शक्तियाँ सिर्फ़ बयानबाज़ी से आगे बढ़ेंगी या वाकई एक स्थायी समाधान की कोशिश करेंगी? जब तक यह युद्ध राजनीतिक उद्देश्यों और सामरिक रणनीतियों से ऊपर उठकर इंसानियत के नज़रिए से नहीं देखा जाएगा, तब तक न गाज़ा में सुकून आएगा, न इजराइल में अमन।