
Supreme Court of India to hear Jamiat Ulema-e-Hind's petition against the closure of madrasas in Uttarakhand
सरकारी कार्रवाई को बताया असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट से मदरसों को पुनः खोलने की मांग
“उत्तराखंड में मदरसों पर सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंची। याचिका में मदरसों को पुनः खोलने और सरकारी कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग। पढ़ें पूरी खबर।”
~Shah Nazar
नई दिल्ली, (Shah Times)। उत्तराखंड में मदरसों और मकतबों के कार्यों में सरकारी अधिकारियों के अनावश्यक हस्तक्षेप और उन्हें लगातार बंद करने की कोशिशों के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। संगठन का आरोप है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) के नाम पर मदरसों को बंद करने की साजिश हो रही है।
एन.सी.पी.सी.आर. की सिफारिश पर हुई कार्रवाई
उत्तराखंड सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एन.सी.पी.सी.आर.) की सिफारिश को आधार बनाकर मदरसों पर कार्रवाई शुरू की है। आयोग ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया था कि जो मदरसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) का पालन नहीं कर रहे हैं, उन्हें बंद किया जाए। इसके समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र भी दायर किया गया, जिसमें कहा गया था कि मदरसों में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल रही है और वे एक स्वस्थ वातावरण एवं समुचित विकास के अवसरों से वंचित हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड में भी मदरसों पर कार्रवाई
उत्तर प्रदेश में इससे पहले मदरसों को नोटिस जारी कर कहा गया था कि यदि वे मान्यता प्राप्त नहीं हैं, तो उन्हें बंद कर दिया जाए और छात्रों को नजदीकी सरकारी विद्यालयों में दाखिल कराया जाए। अब यही प्रक्रिया उत्तराखंड में भी अपनाई जा रही है। इसके तहत बिना किसी पूर्व सूचना के कई मदरसों को जबरन बंद करवा दिया गया।
जमीअत उलमा-ए-हिंद की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
इस सरकारी कार्रवाई के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। संगठन ने 4 अक्तूबर 2024 को एक याचिका (W.P. (C) 000660/2024) दाखिल की थी, जिसमें सरकार द्वारा मदरसों को भेजे गए नोटिसों को चुनौती दी गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.पी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मदरसों को बंद करने वाले नोटिसों पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक अगला निर्देश जारी नहीं किया जाता, तब तक केंद्र और राज्य सरकारें इस संबंध में कोई भी नया आदेश जारी नहीं करेंगी।
अब, उत्तराखंड में भी मदरसों पर हो रही इसी तरह की कार्रवाई के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल की है।
मदरसों पर अचानक कार्रवाई, बिना नोटिस किए गए सील
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उत्तराखंड में 1 मार्च 2025 से अब तक सरकारी अधिकारी मदरसों में जाकर उन्हें बंद करने के निर्देश दे रहे हैं, लेकिन इसके लिए कोई आधिकारिक आदेश या नोटिस नहीं दिखा रहे। मौखिक रूप से कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश मदरसा एजुकेशन बोर्ड, देहरादून से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि:
- मदरसों का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है।
- मदरसे गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा संस्थान हैं, जो वर्षों से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के संचालित हो रहे हैं।
- बिना पूर्व सूचना के सरकारी अधिकारियों ने मदरसों को सील कर दिया, जिससे छात्रों की धार्मिक शिक्षा बाधित हो रही है।
- यह कार्रवाई न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना भी है।
माता-पिता और अभिभावकों में चिंता
मदरसों को बंद किए जाने के कारण छात्रों के माता-पिता और अभिभावक भी चिंतित हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चों को धार्मिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति मिले। याचिका में इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए अदालत से हस्तक्षेप की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट से की गई मांग
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित मांगें की गई हैं:
- मदरसों को तुरंत पुनः खोलने का आदेश दिया जाए।
- सरकारी अधिकारियों को मदरसों के कार्यों में हस्तक्षेप करने से रोका जाए।
- अदालत के 21 अक्तूबर 2024 के आदेश का पालन सुनिश्चित किया जाए।
याचिका को वकील ऑन रिकॉर्ड फुज़ैल अय्यूबी ने दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट में इस पर 25 मार्च को सुनवाई हो सकती है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में मदरसों पर सरकारी कार्रवाई को लेकर जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। संगठन का कहना है कि यह कार्रवाई असंवैधानिक है और यह अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाती है।