
Kargil Vijay Diwas
मेजर पद्मपनी आचार्य और उनकी जीवन संगिनी की पहली मुलाकात
Report by- Anuradha Singh
Kargil Vijay Diwas: कारगिल विश्व युद्ध में मिली जीत को आज पूरे 24 साल हो चुके हैं इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी, मगर इस युद्ध में भारतीय सेना को एक बहुत बड़ी ही कीमत चुकानी पड़ी थी। इस युद्ध में जहां 527 सैनिक शहीद हो गए थे वही १३०० सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे और अधूरी रही गई थी कई प्रेम कहानियां कारगिल युद्ध में शहीद होने वाली मेजर विक्रम बत्रा और डिंपल की कहानी तो सभी को पता है लेकिन इस युद्ध में शहीद होने वाले कई सैनिकों की प्रेम कहानियां अधूरी रह गई थी मगर इस बात को गलत साबित किया शहीद हुए सैनिकों की पत्नी और प्रेमिकाओ ने जो आज भी अपने पति और प्यार की खातिर जीवन बिता रही हैं और उस प्यार को आज भी संजो कर रखा हुआ है।
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जिसमें से एक कहानी है मेजर पद्मपनी आचार्य और उनकी पत्नी चारुलता की है। 21 June 1969 को हैदराबाद में जन्मे मेजर पद्मपनी उड़ीसा के रहने वाले एक परिवार से आते थे मेजर पद्मपनी ने स्नातक तक की शिक्षा हैदराबाद से ही उत्तीर्ण की उसके बाद साल 1994 में मेजर पद्मपनी भारतीय सेना में शामिल हुए ‘ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकेडमी’ मद्रास से ट्रेनिंग लेने के बाद पद्मपनी को राजपूताना राइफल्स में कमीशन मिला जिसके बाद उनकी मुलाकात हुई उनकी जीवन संगिनी चारुलाता से।

मेजर पद्मपनी की पहली मुलाकात चारुलाता से ट्रेन में हुई थी साल 1995 में चारु लता ट्रेन में अपनी आंटी के साथ सफर कर रही थी उसी दौरान उनकी नजर एक सुंदर पुरुष पर पड़ती है जो कि सिर्फ रूप रेखा में सुंदर नहीं बल्कि दिल से भी बहुत ही सुंदर इंसान था चारुलता ने जब पद्मपनी को पहली बार देखा तो उस दौरान वो ट्रेन में बाकी लोगों की मदद कर रहे थे इत्तेफाक से मेजर पद्मपनी की सीट भी चारुलता की सीट के पास ही थी मेजर पद्मपनी लता के पास आकर बैठ गए इस दौरान चारुलता की आंटी की आंख लग गई और इधर मेजर और चारुलाता की प्रेम कहानी आंखों ही आंखों में शुरू हो गई देखते ही देखते रात कट गई और इस प्रेम कहानी में सुबह कब हुई दोनों को इसका पता ही नहीं चला ।
मेजर का स्टेशन आ गया और मेजर अपने स्टेशन पर उतर गए लेकिन पद्मपनी अपनी एक किताब सीट पर ही छोड़ गए थे जिसमें मेजर ने अपना नंबर लिखा हुआ था, चारु लता ने घर जाते ही उस नंबर पर कॉल किया मेजर की मां ने फोन उठाया फोन उठाते ही चारुलता को पहचान गई मेजर की माँ ने कहा की मेजर ने घर आते ही उन्हें सब कुछ बता दिया था कि उन्हें ट्रेन में एक लड़की बेहद पसंद आई है और उसी के साथ वह अपना जीवन बिताना चाहते हैं। चारुलाता की खुशी का ठिकाना नहीं था बस फिर क्या था कुछ समय बाद ही दोनों के परिवार वालों ने मिलकर दोनों की शादी तय कर दी और दोनों शादी के बंधन में बंध गए।
चारु लता ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि मेजर बहुत ही रोमांटिक इंसान थे अक्सर छुट्टियों पर जब घर आते चारुलता को सरप्राइज करते थे दोनों हंसी खुशी अपना जीवन बिता रहे थे और जल्द ही माता-पिता भी बनने वाले थे तभी मेजर को कारगिल का बुलावा आया मेजर ने कारगिल युद्ध पर जाने से पहले चारुलता को युद्ध के बारे में कुछ नहीं बताया कि कहीं प्रेगनेंसी में उनकी सेहत पर बुरा असर ना पड़े ।
मेजर अक्सर कारगिल से चारुलता को चिट्ठियां लिखा करते थे और चारु लता मेजर की निशानी के साथ अपना दिन बिता रही थी कि तभी एक दिन उन्हें खबर मिली कि मेजर आचार्य शहीद हो गए हैं चारु लता पूरी तरह से टूट चुकी थी वह कई हफ्तों तक रोती रही उन्हें यह बात तोड़ देती थी कि मेजर अब कभी वापस नहीं आएंगे मेजर की शहादत के 3 महीने बाद चारुलता ने एक बच्ची को जन्म दिया जोकि हूबहू अपने पिता की तरह थी चारु लता ने उसका नाम अपराजिता रखा चारुलता ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि अपराजिता जब भी हंसती है तो ऐसा लगता है कि मेरे मेजर मेरे सामने खड़े हैं।
मेजर की शहादत के बाद परिवार वालों ने दोस्तों ने सब ने मुझसे कहा कि मेरे सामने भी पूरी जिंदगी पड़ी है मैं दूसरी शादी कर लूं लेकिन मेरा मन कभी नहीं माना मैंने मेजर के साथ बिताए पल और अपनी बेटी के सहारे जिंदगी बिताने का फैसला किया जब भी मैं अपनी बेटी को देखती हूं तो मुझे एहसास होता है कि मेजर यही हमारे साथ हैं।
ऐसी बहुत सी प्रेम कहानियां है जो कारगिल युद्ध के वक्त अधूरी तो रह गई मगर आज भी उस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की पत्नियां और प्रेमिका उनके प्यार को अपने अंदर ज़िंदा रखे हुए है।