
अमरनाथ विद्या आश्रम
मथुरा । अमरनाथ विद्या आश्रम (Amarnath Vidya Ashram) के पूर्व प्रधानाचार्य,कवि,लेखक एवं पत्रकार पं ललित कुमार वाजपेयी (Lalit Kumar Vajpayee) ‘उन्मुक्त’ ने अधिकांश विधाओं का प्रयोग कर हिन्दी को और समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
इसी रविवार को अपने जीवन की अंतिम सांस ले चुके साहित्य जगत में उन्मुक्त नाम से मशहूर हिन्दी के इस सपूत ने हिन्दी की विभिन्न विधाओं पर अमरनाथ विद्या आश्रम में प्रयोग किया। उनके अनूठे कार्य की गाथा तीन दर्जन से अधिक हस्त लिखित ग्रन्थ स्वयं कह रहे हैं जो अमरनाथ विद्या आश्रम (Amarnath Vidya Ashram) के प्रगति कक्ष में सुरक्षित हैं।
प्रदेश के पूर्व शिक्षा निदेशक तथा अम्बेडकर विश्वविद्यालय (Ambedkar University) के कुलपति डॉ श्याम नारायण मेहरोत्रा (Dr. Shyam Narayan Mehrotra) ने इन ग्रंथों को लैमिनेट कर सुरक्षित रखने की सलाह दी थी जब वे अमरनाथ विद्या आश्रम में एक कार्यक्रम में आए थे। उनका कहना था कि स्कूल के विद्यार्थियों के माध्यम से इन ग्रन्थों में जो कुछ कहा गया है उसमें वास्तव में हिन्दी की विभिन्न विधाओं को समृद्ध बनाने का प्रयास है और यह आनेवाले समय में हिन्दी के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए मार्ग दर्शन का काम करेगा। विद्या आश्रम की आर्थिक स्थिति उस समय बहुत दयनीय थी इसलिए इन ग्रन्थों का लैमिनेशन नही हो सका।
वास्तव में उन्मुक्त ने इन ग्रन्थों के माध्यम से विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को उकेरने का काम किया था। ‘ यदि मैं प्रधानाचार्य होता’ ग्रन्थ में विद्यार्थी अपने शिक्षक एवं प्रधानाचार्य से क्या अपेक्षा करते हैं उसे बखूबी दिखाया गया है तो ‘मेरी आत्मकथा’ के माध्यम से एक विद्यार्थी के अन्दर छिपी प्रतिभा को उन्होंने निखारने का प्रयास किया है। मोती ग्रन्थ में विद्यार्थियों की स्वरचित कविताओं का संकलन है तथा जिसके माध्यम से विद्यार्थी की काव्य प्रतिभा को पल्लवित करने का प्रयास किया गया है। उनका हर ग्रन्थ हिन्दी साहित की किसी न किसी विधा को निरूपित करता है।
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प्रधानाचार्य होने के बावजूद उन्मुक्त विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ाते थे। उन्होंने दिवंगत कवियों की रचनायें उन्ही की पोशाक धारण कराकर विद्यार्थियों से करायीं ताकि उनकी काव्य प्रतिभा और निखर सके।
हिन्दी विषय में एमए और साहित्यरत्न की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने एक वर्ष तक चम्पा अग्रवाल इण्टर कालेज में शिक्षक के रूप में कार्य किया मगर अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रारंभ होने के एक वर्ष बाद उन्हें आश्रम की प्रबंध समिति के उस समय के अध्यक्ष बाबू द्वारकानाथ भार्गव ने आश्रम में ही शिक्षक के रूप में कार्य करने के लिए बुला लिया था। उन्होंने भी श्री भार्गव को निराश नही किया तथा विद्या आश्रम के विस्तार में अतुलनीय सहयोग किया। अपने शैशवकाल में जिस समय विद्या आश्रम आर्थिक संकट से जूझ रहा था उस समय उन्होंने अपने अनुज अनन्त स्वरूप वाजपेयी के साथ विद्यालय के लिए एक और दो रूपए की रसीदों के साथ दान लेने का काम किया।
विभिन्न समय पर विद्यालय पर आए संकट में वे विद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य आनन्द मोहन वाजपेयी और अपने अनुज के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे। उन्होंने अपनी कर्तव्य निष्ठा से विद्या आश्रम (Vidya Ashram) को उठाने में सहयोग कर शिक्षकों के सामने यह आदर्श प्रस्तुत किया कि यदि कोई शिक्षक अपने कर्तव्य का सही तरीके से पालन करता है तो समाज उसके योगदान को कभी भूल नही सकता है।