
India-US Tension: ट्रंप के बयानों से रिश्तों में बढ़ी तल्ख़ी
रूस-चीन समीकरण पर ट्रंप की नाराज़गी, भारत पर अमेरिका का दबाव
क्या भारत वाक़ई चीन के करीब? ट्रंप के बयान से उठे नए सवाल
ट्रंप के बयानों और टैरिफ़ विवाद ने भारत-अमेरिका रिश्तों में नई खटास ला दी है। पीएम मोदी संग दोस्ती का दावा, लेकिन व्यापारिक तनाव बरकरार।
भारत और अमेरिका के रिश्ते बीते दो दशकों में “रणनीतिक साझेदारी” से “ग्लोबल पार्टनरशिप” तक का सफ़र तय कर चुके हैं। मगर हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और टैरिफ़ विवाद ने इन संबंधों पर नई परतें चढ़ा दी हैं। ट्रंप का यह कहना कि “लगता है हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है” सिर्फ़ एक ट्वीट या पोस्ट नहीं था, बल्कि उस गहरी असुरक्षा का इज़हार था, जो अमेरिकी विदेश नीति में झलक रही है।
भारत-अमेरिका तनाव: रणनीतिक साझेदारी पर क्या पड़ेगा असर?
ट्रंप प्रशासन की नज़र में भारत का रूस से तेल ख़रीदना और चीन के साथ कूटनीतिक बैठकों में शामिल होना अमेरिका के लिए अप्रत्याशित झटका है। व्हाइट हाउस की आर्थिक टीम भारत पर लगातार यह आरोप लगाती रही है कि रूस-यूक्रेन जंग के दौरान भारत रूस से तेल लेकर आर्थिक लाभ कमा रहा है। इस पर अमेरिका ने 50% टैरिफ़ तक बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश की।
भारत को “ग्लोबल रिस्पॉन्सिबिलिटी” निभानी चाहिए।
ट्रंप के बयान से यह साफ़ है कि वॉशिंगटन भारत की “स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी” को लेकर असहज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन और रूस दोनों नेताओं से मुलाक़ात की, जिससे संकेत गया कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति जारी रखेगा। यही स्वतंत्रता अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान के लिए असुविधा का कारण है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते पर भी लगातार गतिरोध है। कृषि और डेयरी सेक्टर में मतभेद, आयात शुल्क और संरक्षणवाद की नीति ने दोनों देशों को डील से दूर रखा है। भारत मानता है कि अमेरिका का व्यवहार अनुचित और अविवेकपूर्ण है, जबकि अमेरिका सोचता है कि भारत को “ग्लोबल रिस्पॉन्सिबिलिटी” निभानी चाहिए।
क्या भारत वाक़ई चीन के करीब? ट्रंप के बयान से उठे नए सवाल
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सचमुच भारत अमेरिका से दूर जा रहा है? वास्तविकता यह है कि भारत अभी भी अमेरिका का अहम साझेदार है— रक्षा, टेक्नोलॉजी, क्वाड और इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटेजी में दोनों की गहरी भागीदारी बनी हुई है। ट्रंप का बयान शायद घरेलू राजनीति और चुनावी दबाव से प्रेरित हो सकता है।
आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
क्या कहता है अमेरिकी मीडिया और थिंक टैंक्स
अमेरिकी मीडिया और थिंक टैंक्स भी मानते हैं कि भारत पर सार्वजनिक दबाव डालना अक्सर उलटा असर करता है। ब्रुकिंग्स की सीनियर फ़ेलो तन्वी मदान ने लिखा कि भारत को “सॉरी बोलने” की उम्मीद करना हक़ीक़त से परे है। भारत की विदेश नीति हमेशा बहुस्तरीय रही है— न तो पूरी तरह वॉशिंगटन पर निर्भर और न ही बीजिंग या मॉस्को के साथ एकतरफ़ा।
ट्रंप की राजनीति में व्यक्तिगत रिश्तों को ज़्यादा महत्व मिलता है। वह कहते हैं कि पीएम मोदी “ग्रेट” हैं और उनके दोस्त हैं। मगर व्यापार और सुरक्षा के सवाल पर वही ट्रंप टैरिफ़ और दबाव की भाषा अपनाते हैं। यही विरोधाभास ट्रंप की डिप्लोमैसी का हिस्सा है।
भारत-अमेरिका रिश्ते अहम मोड़ पर
भारत-अमेरिका रिश्ते आज एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। ट्रंप के हालिया बयान से यह साफ़ है कि वॉशिंगटन नई दिल्ली पर भरोसा करने से पहले उसे अपनी शर्तों पर परखना चाहता है। मगर भारत का रुख़ भी स्पष्ट है— वह अपनी रणनीतिक आज़ादी से समझौता नहीं करेगा।
अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत सिर्फ़ “एक और एलायंस पार्टनर” नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति है। दोनों देशों के रिश्ते तनाव और उतार-चढ़ाव से गुज़रते हुए भी दीर्घकाल में स्थिर रहेंगे, क्योंकि लोकतंत्र, टेक्नोलॉजी और सुरक्षा हितों में उनका सहयोग अनिवार्य है।