
Naushad Ali: The man who redefined Indian film music – Remembering him on his death anniversary | Shah Times
5 मई पुण्यतिथि विशेष: नौशाद अली ने संघर्षों से भरे जीवन में ‘बैजू बावरा’ और ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी फिल्मों में संगीत देकर भारतीय सिनेमा को अमर कर दिया। जानिए उनके जीवन के अनसुने किस्से और योगदान।
पुण्यतिथि विशेष रिपोर्ट
मुंबई,(शाह टाइम्स) | ।भारतीय सिनेमा को सुरों की अमर सौगात देने वाले संगीत सम्राट नौशाद अली आज भी संगीतप्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं। 5 मई 2006 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके द्वारा रचित धुनें आज भी पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध करती हैं।
वर्ष 1960 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के गीतों को आज भी सुना और सराहा जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस फिल्म का संगीत देने से पहले नौशाद ने इंकार कर दिया था। प्रसिद्ध निर्देशक के. आसिफ ने जब हारमोनियम पर 50 हजार रुपये का बंडल फेंका, तो नौशाद ने उसे मुंह पर मारते हुए यह कह दिया—”मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा!” लेकिन बाद में आसिफ के आग्रह पर नौशाद ने बिना एक पैसा लिए यह फिल्म की और अमर धुनों की रचना की।
लखनऊ के एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में 25 दिसंबर 1919 को जन्मे नौशाद को बचपन से ही संगीत से लगाव था। संगीत के लिए उन्होंने घर तक छोड़ दिया और एक नाटक मंडली के साथ शहर-शहर घूमते रहे। वाद्य यंत्रों की दुकान में काम मांगकर उन्होंने रियाज के लिए अवसर जुटाए। यहीं से शुरू हुआ उनका संगीत सफर।
मुंबई पहुंचने पर उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्हें फिल्मों में पियानो बजाने का मौका मिला और फिर 1940 में फिल्म ‘प्रेमनगर’ से स्वतंत्र संगीतकार के तौर पर करियर की शुरुआत की। 1944 में ‘रतन’ के गीतों ने उन्हें लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।
नौशाद ने अपने करियर में लगभग 70 फिल्मों में संगीत दिया और ज्यादातर गीतकार शकील बदायूंनी के साथ काम किया। उनके प्रिय गायक मोहम्मद रफी रहे, जबकि लता मंगेशकर, सुरैया, टुनटुन और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे कलाकारों को भी उन्होंने मंच दिया।
वे पहले संगीतकार थे जिन्होंने फिल्म संगीत में साउंड मिक्सिंग, रिकॉर्डिंग से अलग रखी और एकॉर्डियन का प्रयोग शुरू किया। 1953 में ‘बैजू बावरा’ के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह उनका एकमात्र फिल्मफेयर पुरस्कार रहा। बाद में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नौशाद अली एक ऐसे कलाकार थे जिनका संगीत भावनाओं को शब्दों में पिरोता था। 5 मई को उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें याद करते हैं—उनके सुरों की उस दुनिया के लिए, जिसने हमारी भावनाओं को गहराई दी और हमारी आत्मा को छू लिया।