कोई भी धर्म हिंसा, नफरत फैलाने की अनुमति नहीं देता है:मदनी

हम आशा करते हैं कि राहुल गांधी का अनुसरण करते हुए अब विपक्ष के अन्य नेता भी संसद में इसी तरह निडर होकर हिंसा, नफरत और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएंगे।:मौलाना अरशद मदनी

मुस्लमानों की लड़ाई लड़ने को अब धर्मनिरपेक्ष पार्टीयों को आगे आना होगा:मदनी

नई दिल्ली,(Shah Times)। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हजरत मौलाना अरशद मदनी ने कल विपक्ष के नेता रूप में संसद में होने वाले राहुल गांधी के भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने जो अन्य बातें की हम उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, परन्तु हिंसा और नफरत के सम्बंध में उन्होंने जो कुछ कहा हम उसका समर्थन करते हैं।

इसलिए कि दुनिया का कोई धर्म हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति नहीं देता है, धर्म तो मानवता, सहिष्णुता, प्रेम और एकता का संदेश देता है। जो लोग इसका प्रयोग नफरत और हिंसा के लिए करते हैं वो अपने धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते, समझदार लोगों को हर स्तर पर ऐसे लोगों की निंदा और विरोध करना चाहिए। मौलाना मदनी ने कहा कि दुखद तथ्य यह है कि आज दुनिया में जहां-जहां हिंसा होती है उनमें से अधिकतर मामलों का आधार धार्मिक होता है और इससे हमारा देश भी ग्रस्त है।

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने जो बात कही है वो जमीयत उलमा-ए-हिंद और इसके बुजुर्गों का पहले दिन से पक्ष रहा है। उन्होंने हमेशा यह कहा है कि धर्म प्रेम, सहिष्णुता और एकता सिखाता है। हिंसा चाहे किसी भी रूप में हो कोई भी धर्म उसकी अनुमति नहीं देता। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि माॅबलंचिंग हिंसा ही का एक क्रूर रूप है। हमारे पास क़ानून का एक संग्रह मौजूद है, मगर यह कितने दुख की बात है कि माॅबलंचिंग का दुष्चक्र रुक नहीं रहा है। हम लम्बे समय से इस पर अंकुश लगाने के लिए एक कठोर कानून बनाने की मांग करते आए हैं, सुप्रीमकोर्ट भी इस पर अपना क्रोध प्रकट कर चुकी है और केंद्र को इसे रोकने के लिए कड़े आदेश भी दे चुकी है। लेकिन धर्म के आधार पर होने वाली हिंसा के इस भयावह सिलसिले को रोकने का कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ। हाल ही में जब उड़ीसा और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में माॅबलंचिंग हुई उस समय मीडीया से बात करते हुए नेता विपक्ष से हमने अनुरोध किया था कि इस प्रकार की हिंसा की रोकथाम के लिए एक कठोर कानून लाने के लिए सरकार पर दबाव डालें।

हमें इस बात की खुशी है कि राहुल गांधी ने नेता विपक्ष के रूप में संसद में अपने पहले ही भाषण में हिंसा और नफरत के खिलाफ निडर होकर आवाज़ उठाई। हम आशा करते हैं कि राहुल गांधी का अनुसरण करते हुए अब विपक्ष के अन्य नेता भी संसद में इसी तरह निडर होकर हिंसा, नफरत और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएंगे।

इसी के साथ-साथ उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद मुसलमानों ने अपनी सुरक्षा की लड़ाई अकेले लड़ी और अब वह संविधान, लोकतंत्र की सुरक्षा और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव के परिणामों ने सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है और यह अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की सूझबूझ के साथ की गई वोटिंग के कारण संभव हुआ। इसे स्वीकार किया जाना चाहिए कि अगर मतदाताओं ने सूझबूझ से वोटिंग न की होती तो शायद परिणाम किसी हद तक उसके विपरीत होते। देश के अल्पसंख्यकों, दलितों, दबे कुचले वर्गों और विशेष रूप से मुसलमानों ने संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए इंडिया गठबंधन को वोट दिया, इसलिए अब यह उन पार्टीयों विशेषकर कांग्रेस का यह नैतिक कर्तव्य है कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने के साथ-साथ वो मतदाताओं विशेषकर मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई के लिए भी आगे आएं ताकि उन उत्पीड़कों का जो भरोसा इन दलों पर पुनः बहाल हुआ है वो बाकी रह सके। उन्होंने यह भी कहा कि हालिया संसदीय चुनाव के दौरान गठबंधन के लोग विशेष रूप से राहुल गांधी और अखिलेश यादव अपनी धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा पर मज़बूती के साथ खड़े रहे और यही कारण है कि धर्मनिरपेक्ष विचारों वाले मतदाताओं ने उन पर विश्वास किया और खुल कर उनका समर्थन किया।

2014 के बाद से मुस्लिम वोट को निष्प्रभावी करने और मुसलमानों को स्थितिहीन कर देने के योजनाबद्ध प्रयास होते रहे हैं, और जानबूझकर पैदा की जाने वाली सांप्रदायिक लामबंदी ने सांप्रदायिक तत्वों को इस भ्रम में डाल दिया था कि अब मुस्लिम वोटों का कोई महत्व नहीं रह गया है। शायद यही कारण है कि राजनीतिक परिदृश्य पर भी मुसलमान कहीं नज़र नहीं आरहा था लेकिन भारत के पुराने इतिहास को जीवित करने के लिए इस चुनाव में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों ने एकजुट होकर धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संविधान को ज़िंदा रखने के लिए मतदान किया। इसलिए संप्रदायिक मीडीया और विश्लेषक भी अब यह कहने पर विवश हो गए कि मुसलमानों ने एन.डी.ए. को हरा दिया।


मौलाना मदनी ने कहा कि धार्मिक हिंसा को जिस तरह बढ़ावा मिला और जिस तरह के सांप्रदायिक लामबंदी की गई इसमें मुसलमानों को अपने पास बिठाना तो दूर की बात है उनका नाम लेने से भी वह राजनीतिक दल बच रही थे जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं। मगर उसके बावजूद सांप्रदायिक राजनीति द्वारा समाज और राजनीति में मुसलमानों को अछूत बना देने के लिए शासकों द्वारा हर वह प्रयास किया गया जो किया जा सकता था। इन सब के बावजूद हालिया चुनाव में संविधान को बचाने, नफरत को मिटाने और मुहब्बत को बढ़ावा देने के लिए सांप्रदायिकता और नफरत के खिलाफ वोट देकर मुसलमानों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो एक देशभक्त नागरिक हैं और देश की एकता और सुरक्षा उन्हें अपनी जान से अधिक प्रिय है। संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों के कम होते प्रतिनिधित्व पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इसके पीछे जहां अन्य कारण हैं वहीं एक बड़ा कारण मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों का सुरक्षित किया जाना भी है।

उन्होंने कहा कि एक बड़ी साजिश के तहत जब भी निर्वाचन क्षेत्रों का नया परिसीमन होता है तो मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को ढूंढकर उन्हें एससी, एसटी के लिए सुरक्षित कर दिया जाता है, यह शुरू से हो रहा और 2006 मैं डाक्टर रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने अपनी सिफारिशों में इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया है। कमीशन ने इन क्षेत्रों पर पुनःविचार का मशवरा भी दिया था ताकि संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जा सके मगर अन्य सिफारिशों की तरह उसे भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया। मौलाना मदनी ने एक बार फिर कहा कि अब समय आगया है कि धर्मनिरपेक्ष पार्टीयां मुसलमानों के अधिकारों को लेकर संसद के अंदर और संसद के बाहर लड़ाई लड़ें। इस के बगैर संविधान और लोकतंत्र की सर्वोच्चता स्थापित नहीं की जा सकती बल्कि संविधान के सिद्धांतों पर अमल करके और इसके दिशानिर्देशों को ईमानदारी के साथ लागू करके ही लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष को सुरक्षित रखा जा है।

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