हर महीने 3 हजार से ज्यादा कुत्तों को दफनाना पड़ता है
जयपुर, मुंबई और हैदराबाद में चल रही यह व्यवस्था
शाह टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। यूपी की राजधानी में कुत्तों के लिए शवदाह गृह (crematorium for dogs) बनाए जाएंगे। अभी तक यह व्यवस्था जयपुर (Jaipur), मुम्बई (Mumbai) और हैदराबाद (Hyderabad) में है। यूपी में हर महीन तीन हजार से ज्यादा कुत्तों को दफनाना पड़ता है। लखनऊ (Lucknow) में प्रतिदिन 125 कुत्तों को अब दफनाया नहीं जाएगा। नगर विकास विभाग (Urban Development Department) उसके लिए शवदाह बना रहा है। इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। करीब 3 करोड़ 50 लाख रुपए की लागत से इसको तैयार किया जाएगा। इसमें कुत्तों के अलावा, बंदर, घोड़ा, गधा समेत बाकी जानवरों का भी अंतिम संस्कार किया जाएगा।
अपर नगर आयुक्त डाक्टर एके राव (AK Rao) ने जानकारी देते हुए बताया कि लखनऊ (Lucknow) में हर महीने करीब 3500 से 4000 कुत्तों का अंतिम संस्कार किया जाता है। अभी उनको दफनाया जाता है। लेकिन पर्यावरण को देखते हुए अब उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। दफनाने के लिए जगह की कमी पड़ रही थी। ऐसे में उनको जलाने के लिए शहदाह गृह बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जल्द ही इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। दिसंबर तक यह प्रोजेक्ट तैयार हो जाएगा।
दैनिक शाह टाइम्स अपने शहर के ई-पेपर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें
लखनऊ (Lucknow) में मौजूदा समय करीब एक लाख स्ट्रीट डाॅग (street dog) है। उसके अलावा 8 हजार लोगों के पास पालतू कुत्ते है। हालांकि यह संख्या इससे ज्यादा है। लोग रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं। अभी तक इसके लिए शिवरी प्लांट (Shivari Plant) के पास जगह देखी जा रही है।
हालांकि अगर शहर के अंदर कहीं जगह मिलती है तो उसको वहां भी बनाया जा सकता है। प्लांट सीएनजी से चलेगा। इसमें कुल 5 भट्टी लगेंगी। एक घंटे के अंदर इसमें अंतिम संस्कार हो जाएगा। इसमें एक बार करीब 10 कुत्तों का अंतिम संस्कार होगा। पालतू जानवरों के लिए भी बैकुंठ धाम के पास एक शवदाह गृह बनाने का प्रस्ताव है। हालांकि इसकी लागत महज 6 से 8 लाख रुपए तक आएगी। इसमें जिन कुत्तों का अंतिम संस्कार होगा उसका पैसा लिया जाएगा।
हालांकि वह राशि कितनी होगी यह नगर निगम सदन से तय होगा। अक्सर यह देखने को मिलता है कि सड़क पर आवारा कुत्ते पड़े रहते है। कुत्तों के शव भी इधर-उधर पड़े रहते थे। जिससे गंदगी फैलने के साथ ही शवों के सड़ने पर संक्रमण फैलने का भी खतरा रहता था। लखनऊ में काफी समय से इसकी मांग हो रही थी।