प्रचंड सरकार के बहाने नेपाल में भारत का विरोध

प्रचंड सरकार के बहाने नेपाल में भारत का विरोध

यशोदा श्रीवास्तव

लेखक, स्तंभकार

तीसरी बार प्रधानमंत्री बने प्रचंड ने अपने विदेशी दौरों में भारत को पहली प्राथमिकता देकर एक बार फिर भारत और नेपाल के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता पर बल दिया है। प्रचंड की भारत की यह दूसरी यात्रा है जब उन्होंने विदेश यात्रा के क्रम में भारत को प्राथमिकता दी है। इसके पहले जब वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे तब भी अपनी पहली विदेश यात्रा में भारत  ही आए थे। प्रचंड का भारत आना नेपाल के प्रमुख विपक्षी दल एमाले को रास नहीं आया। उसने तमाम गैर जरूरी मुद्दों को लेकर नेपाल भर में विरोध प्रदर्शन तो किया ही, यहां तक कहा कि प्रचंड नेपाल को भारत के हाथ बेच आए। दरअसल एमाले का प्रचंड के बहाने यह भारत का विरोध है।

प्रचंड की इस बार की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण रही। भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों के बीच दोनों देशों के रिश्तों और विकास के कई योजनाओं पर चर्चा हुई तो कई पर तत्काल काम शुरू होने पर सहमति हुई। बड़ी बात यह थी कि भारत ने नेपाल से भारी मात्रा में बिजली खरीदने की सहमति जताई। भारत और नेपाल के सहयोग से बिजली परियोजनाओं के शुरू होने से नेपाल में उत्पादित बिजली की भारी खरीद वाला भारत पहला देश होगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह वादा कि नेपाल के विकास में सरहद कोई बाधा नहीं बन सकता, नेपाल के लिए बड़ी बात है। 

नेपाल का जब कोई राष्ट्राध्यक्ष भारत आए और चीन टकटकी न लगाए,यह कैसे हो सकता है। प्रचंड की भारत यात्रा पर चीन टकटकी लगाए हुए था। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच क्या चल रहा है,चीन यह सब जानने को उतावला था। चीन नहीं चाहता कि नेपाल में उसके अलावा अन्य किसी का दखल हो जबकि नेपाल सिर्फ चीन पर नहीं निर्भर रहना चाहता। उसकी नीति अपने पड़ोसी देशों के साथ समानांतर व्यवहार की है।

इधर प्रचंड के भारत दौरे के समय नेपाल में गैर जरूरी मुद्दे को लेकर  नेपाली नागरिकों को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश हुई। विपक्षी दल एमाले के  विरोध प्रदर्शन के पीछे प्रचंड सरकार को अस्थिर और परेशान करने की है। प्रचंड एक कट्टर कम्युनिस्ट है।  कम्युनिस्ट लोग पूजा पाठ आदि में विश्वास नहीं करते। प्रचंड के उज्जैन में महाकाल की पूजा और दर्शन को भी मुद्दा बनाकर उनके समर्थकों को  भड़काने की कोशिश की गई। कहा गया कि यह नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने का संकेत है।

नेपाल और भारत के बीच तमाम मुद्दों को लेकर असहमति भी है जिसमें बड़ा मुद्दा लिपिलेख व काला पानी का है जहां से भारत ने मानसरोवर के लिए सड़क मार्ग का निर्माण कर लिया है। नेपाल इस भू-क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है। प्रधानमंत्री रहते हुए चीन समर्थक के पी शर्मा ओली ने इसे लेकर भारत के खिलाफ खूब आग उगला और तब भी नेपालियों को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। प्रचंड जब सरकार में नहीं थे तब उन्होंने इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की बात कही थी। बतौर प्रधानमंत्री जब वे भारत आए तो भारत के प्रधानमंत्री के साथ उनकी जिन तमाम मुद्दों पर बात हुई उसमें लिपुलेख और कालापानी मुद्दा भी था। प्रचंड ने इस विवाद को खत्म करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से उसके बदले सिलीगुड़ी कारीडोर से बांग्लादेश के लिए रास्ते की मांग की।

भारत के लिए प्रचंड का यह प्रस्ताव मान लेना आसान नहीं है क्योंकि यहां चीन भी नजर गड़ाए हुए है। लेकिन प्रचंड की इस मामले में सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने विवादित जमीन को मुद्दा बनाए जाने के बजाय भूमि के बदले भूमि की नीति के तहत भारतीय प्रधानमंत्री के समक्ष यह मुद्दा रखा जिसके समाधान की गुंजाइश है। वहीं प्रमुख विपक्षी दल के व्हिप चीफ पद्म गिरी का कहना है कि उनकी पार्टी प्रचंड से जमीन के अदला बदली के प्रस्ताव पर जवाब मांगेगी। पद्म गिरी ने यह भी कहा कि भारत दौरे पर प्रचंड नेपाल के राष्ट्रीय हित से जुड़ा कोई विषय नहीं उठाया उल्टे नेपाल को भारत के साथ बेच आए।

प्रचंड सरकार को परेशान और अस्थिर करने की प्रमुख विपक्षी दल एमाले की हद यह है कि उसने भारत के नए संसद भवन में लगे भारत के मानचित्र पर ही सवाल खड़ा कर दिया ‌। बताने की जरूरत नहीं कि विशाल और अखंड भारत में तमाम देश शामिल रहे हैं ऐसे में नेपाल कैसे अछूता रह जाता। भारत के नक्शे में नेपाल के लुंबिनी, कपिलवस्तु और विराटनगर शामिल है। नेपाल का विपक्षी दल इसे लेकर नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनाने की कोशिश में लग गया है। नेपाल में नागरिकता संबंधी विवाद भी बड़ा मुद्दा था। यहां दूसरे देशों से शादी करके लाई महिलाओं को नागरिकता के लिए सात साल प्रतीक्षा करनी होती है। तिब्बत और भारत की लाखों व्याहता महिलाएं नागरिकता से वंचित हैं।

नेपाल के मधेशी दल इस मुद्दे को बार बार उठाते रहे हैं और इसके समाधान के आश्वासन पर वे अपने विरोधी सरकारों का भी समर्थन करते रहे। नेपाल की पिछली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने दो बार इस विधेयक को पारित करने से मना कर दिया था। नेपाल के मौजूदा राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने पिछले दिनों नागरिकता संबंधी इस विधेयक को मंजूरी दे दी। इस विधेयक से नेपाल में करीब दो लाख भारत की विवाहित महिलाओं को नागरिकता हासिल करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। नेपाल में चीनी और तिब्बती महिला विवाहिताओं की संख्या भी अधिक है, इन्हें भी अब नेपाल की नागरिकता मिल जायेगी। नागरिकता संबंधी विधेयक के खिलाफ विपक्षी दलों ने नेपाल में जगह-जगह राष्ट्र पति और प्रधानमंत्री के पुतले फूंककर विरोध जताया। विधेयक के खिलाफ विपक्षी दल एमाले का यूथ फेडरेशन ने संसद मार्च किया

 विपक्षी दल एमाले के मुखिया ओली चीन के पक्के समर्थक हैं।खाटी कम्युनिस्ट रहे प्रचंड भी कभी चीन के समर्थक रहे हैं। प्रचंड का नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लेना और भारत से नजदीकियां बढ़ाना विपक्षी दल को अच्छा नहीं लग रहा, ऐसे में उसने प्रचंड सरकार को अस्थिर करने का षड्यंत्र शुरू कर दिया है। विपक्ष जिन तीन मुद्दों के खिलाफ प्रचंड सरकार को घेरने की कोशिश में है,वह सब भारत से संबंधित है। नेपाल में एमाले के प्रचंड विरोध पर गौर करें तो साफ दिखेगा कि यह प्रचंड सरकार के बहाने नेपाल में भारत का विरोध है। 

for more articles visit to http://www.shahtimesnews.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here