
Mokama Election Violence 2025 – Shah Times
मोकामा हिंसा: बिहार चुनाव में लोकतंत्र की असली परीक्षा
दुलारचंद यादव हत्या कांड: अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद JDU में मचा सियासी भूचाल
मोकामा की ज़मीन पर दुलारचंद यादव की मौत ने बिहार की सियासत को झकझोर दिया है। JDU प्रत्याशी अनंत सिंह की गिरफ्तारी से बिहार की सियासत में हलचल तेज़, गोली, पत्थर, गिरफ्तारी और बयानबाज़ी — सब कुछ ऐसा लग रहा है जैसे लोकतंत्र एक बार फिर जात, जुर्म और जनमत के बीच फँस गया हो। सवाल ये नहीं कि किसने गोली चलाई, बल्कि ये है कि किसने माहौल को इतना ज्वलनशील बनने दिया।
📍 पटना 🗓️ 2 Nov 2025✍️ Asif Khan
चुनावी मैदान में बारूद की गंध
मोकामा की गलियों में इन दिनों नारेबाज़ी और पुलिस की सायरन की आवाज़ एक साथ गूंज रही है। एक तरफ प्रशासन “कानून व्यवस्था” का भरोसा दिला रहा है, तो दूसरी तरफ लोग कह रहे हैं — “अब तो डर लगने लगा है वोट डालने में भी।”
दुलारचंद यादव की मौत सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है जो चुनाव के वक्त बार-बार हिंसा में बदल जाती है। बिहार के चुनावों में “बाहुबल” और “जनबल” का ये संगम नया नहीं है — फर्क सिर्फ इतना है कि अब कैमरे चालू हैं और जनता ज़्यादा समझदार।
अपराध और राजनीति: पुराना रिश्ता, नया चेहरा
दुलारचंद यादव का नाम आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़ा रहा है। अनंत सिंह, जो कभी सत्ता के गलियारों में ताक़तवर चेहरा माने जाते थे, अब खुद उसी केस में गिरफ़्तार हैं।
यहाँ सवाल उठता है — क्या चुनावी मंचों पर खड़े वो चेहरे वास्तव में लोकतंत्र के रखवाले हैं या निजी वर्चस्व के लिए खड़ी की गई सेनाएँ?
बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का रिश्ता कोई रहस्य नहीं, लेकिन हर बार एक नया चेहरा और नया बहाना इसे “व्यवस्था” कहकर स्वीकार लिया जाता है। यही सबसे खतरनाक हिस्सा है।
प्रशासन की सख्ती या दिखावटी निष्पक्षता?
पटना एसएसपी कार्तिकेय शर्मा और डीएम दोनों ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि “किसी को बख़्शा नहीं जाएगा।” लेकिन सवाल यह है — क्या ऐसी सख्ती केवल मीडिया को दिखाने के लिए है या वास्तविक सुधार के लिए?
आचार संहिता का उल्लंघन, देर रात गिरफ्तारी और सीआईडी जांच — सब ठीक लगते हैं, लेकिन जनता के मन में भरोसा तभी लौटेगा जब परिणाम निष्पक्ष होंगे।
आख़िरकार, चुनाव सिर्फ वोट नहीं होते — वह भरोसे की परीक्षा भी होते हैं।
जात और जनमत की दो तलवारें
मोकामा की राजनीति जातीय समीकरणों पर टिकी है — यादव, भूमिहार, धनुक, पासवान जैसे वोट बैंक हर चुनाव में अपने हिसाब से पलड़ा बदलते हैं।
दुलारचंद यादव यादव समाज से आते थे, वहीं अनंत सिंह भूमिहार समुदाय के मजबूत नेता हैं। दोनों के बीच पुराना तनाव अब जातीय ध्रुवीकरण का रंग ले चुका है।
यह हिंसा किसी एक व्यक्ति की मौत से ज़्यादा, पूरे समाज की सोच का प्रतिबिंब है — जहाँ पहचान विचार से ज़्यादा असर रखती है।
सोशल मीडिया की सियासत
अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनका पोस्ट “सत्यमेव जयते, मोकामा की जनता अब चुनाव लड़ेगी” वायरल हो गया।
सोशल मीडिया पर समर्थकों और विरोधियों के बीच शब्दों की जंग छिड़ी हुई है।
लोकतंत्र अब सिर्फ मैदान में नहीं, बल्कि मोबाइल स्क्रीन पर भी लड़ा जा रहा है — जहाँ हर ट्वीट, हर वीडियो, एक नया नैरेटिव गढ़ रहा है।
लेकिन असली सवाल वही है: क्या ये ऑनलाइन सियासत जमीनी सच्चाई बदल सकती है?
सीआईडी जांच और न्याय की उम्मीद
सीआईडी की टीम गठित हो चुकी है। पुलिस कहती है — सबूतों, वीडियो फुटेज और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई हो रही है।
लेकिन बिहार के राजनीतिक इतिहास में “जांच” अक्सर लंबी होती है और “न्याय” देर से आता है।
अगर इस बार भी वही हुआ, तो जनता के विश्वास पर सबसे बड़ा प्रहार होगा।
लोकतंत्र की साख का सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा नुकसान लोकतंत्र की साख का हुआ है।
जब चुनाव का मंच हिंसा का अखाड़ा बन जाए, जब नेता जेल से प्रचार करने लगें, और जब जनता डर के साए में वोट दे — तब सवाल उठना ही चाहिए: क्या हम सच में लोकतंत्र की राह पर हैं, या बस उसकी रस्म निभा रहे हैं?
Counter View
कुछ लोग कहेंगे कि पुलिस ने सही किया — सख्ती ज़रूरी थी ताकि माहौल बिगड़े नहीं।
दूसरे कहेंगे कि ये कार्रवाई राजनीतिक दबाव में हुई।
लेकिन असल बात यह है कि अगर व्यवस्था सच में निष्पक्ष होती, तो जनता को यह सवाल पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
नज़रिया
मोकामा की यह घटना बिहार की राजनीति का आईना है। यहाँ विकास, शिक्षा या स्वास्थ्य की बातें पीछे छूट जाती हैं, और आगे आते हैं — गोलियाँ, पोस्ट, और प्रेस कॉन्फ़्रेंस।
लोकतंत्र में सत्ता बदलती है, लेकिन सोच नहीं।
अगर इस सोच को नहीं बदला गया, तो हर चुनाव “त्योहार” नहीं, “तनाव” बन जाएगा।






