सिविल सर्विसेज जैसी बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर बड़ी-बड़ी संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं में, क्या उनका शोषण तो नहीं हो रहा है?

मो राशिद अल्वी (सोशल एक्टिविस्ट)
जब हिंदी दिवस (Hindi day) आता है बहुत से बुद्धिजीवी ,नेता, शासन-प्रशासन के लोग हिंदी को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बाते करते हैं,उसके प्रचार-प्रसार की बाते की जाती हैं, उसके प्रोत्साहन की बाते की जाती हैं। किंतु हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले गरीब,मजदूर और किसानों के बच्चो पर किसी की नज़र नहीं जाती है,जो सीमित संसाधनों के साथ सरकारी विधालयो में पढ़ते हैं या किसी कम फीस वाले निजी हिंदी माध्यम के विधालयो में उनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठायी जाती है।
कभी उन्होंने सोचा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों के साथ कितना इंसाफ हो रहा है? सिविल सर्विसेज जैसी बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर बड़ी-बड़ी संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं में, क्या उनका शोषण तो नहीं हो रहा है? उनके साथ भेदभाव तो नहीं क्या जा रहा?कभी किसी ने सोचा है, नहीं! हमारे देश की आधिकारिक भाषा हिंदी होने के बाद भी अंग्रेज़ी को हिंदी पर हावी कर दिया गया है। मैं समझता हूं,अंग्रेज़ी को हिंदी पर ही नहीं वल्कि इसकी आड़ में अमीरों को गरीबों पर हावी कर दिया गया है।
हिंदी माध्यम के बच्चो का हक़ मारा जा रहा है। क्योंकि हिंदी माध्यम से गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं,अमीरों के बच्चे तो टॉप अंग्रेज़ी माध्यम के विधालयो में पढ़ते हैं ओर वही अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े अमीरों के बच्चे सिविल सर्विसेज,ज्यूडिशियरी जैसी बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षा और बड़े-बड़े संस्थानों की प्रवेश परीक्षा पास करते हैं और हिंदी माध्यम से पढ़ा गरीब का बच्चा मुंह ताकता रह जाता है। नाम मात्र के लिए कुछ ही हिंदी माध्यम के बच्चे बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षा और प्रवेश परीक्षा पास कर पाते हैं।
अब बहुत से लोगों के दिमाग में यह सवाल आता होगा की हिंदी माध्यम के बच्चे पढ़ते ही नहीं होंगे, तभी वह यह बड़ी परीक्षाएं पास नहीं कर पाते हैं,असल में ऐसा विल्कुल नहीं है,वह अंग्रेजी माध्यम के बच्चो से ज़्यादा मेहनत करते हैं, सीमित संसाधनों के साथ बहुत मेहनत से पढ़ते हैं,वो अंग्रेज़ी माध्यम के बच्चो से भी ज़्यादा प्रतिभावान होते हैं,वो अपने हिंदी माध्यम के इंटरमीडिएट बोर्ड में टॉप करते हैं,अच्छे नम्बर लाते हैं, जैसे एक अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले अमीरों के बच्चे अपने बोर्ड से टॉप करते हैं, अच्छे नम्बर लाते हैं।लेकिन आखिर समस्या कहां है,हिंदी माध्यम का बच्चा बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं में क्यों पिछड़ जाता है, तो मैं बताता हूं, क्यों पिछड़ता है?उसके सामने जो इंटरमीडिएट के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने में बाधा आती है,वो है अंग्रेज़ी।
जब हिंदी माध्यमिक बोर्डो (Hindi Secondary Board) से अच्छे नम्बरों से पास हुए बच्चे बड़ी-बड़ी उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने की सोचते हैं तो उनके सामने आड़े आती है अंग्रेजी में प्रवेश परीक्षा। क्योंकि अधिकतर बड़ी बड़ी उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं अंग्रेज़ी में आयोजित कराई जाती हैं।अब बताएं एक हिंदी माध्यम से पढ़ा हुआ बच्चा अंग्रेजी भाषा में आयोजित कराई जाने वाली प्रवेश परीक्षा कैसे पास कर सकता है?अब यदि अंग्रेजी माध्यम के बच्चे को हिंदी में प्रवेश परीक्षा का पेपर सौंप दिया जाए क्या वो कर पायेगा? कुछ उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यम में आयोजित होती हैं, उनमें हिंदी माध्यम का बच्चा प्रवेश परीक्षा पास करके प्रवेश पा भी जाता है, तो उसके सामने समस्या खड़ी हो जाती है उस संस्थान का पाठ्यक्रम,जो अंग्रेज़ी माध्यम में होता है, कुछ इस समस्या के कारण पहले ही साल में यूनिवर्सिटी छोड़ देते हैं या कुछ जैसे-तैसे टूटी-फूटी अंग्रेजी में पढ़कर पास कर भी जाते हैं तो वह इतने नम्बर अंक तालिका में अर्जित नहीं कर पाते जिससे उन्हें एक अच्छी नौकरी मिल सके।
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अब मैं बताता चलूं कि हिंदी माध्यम के बच्चो का शोषण किस प्रकार से बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी हो रहा है।पिछले कुछ सालों के सिविल सर्विसेज और ज्यूडिशियरी की प्रतियोगी परीक्षाओं पर नज़र डालें तो मुश्किल से लगभग तीन या चार प्रतिशत बच्चे ही हिंदी माध्यम से इन प्रतियोगी परीक्षाओं में पास हुए होंगे।और जो नाम मात्र हिंदी माध्यम के बच्चे पास हुए भी हैं तो उनकी रेंक इतनी अच्छी नहीं रही होगी, अधिकतर अंग्रेज़ी माध्यम के बच्चे ही पास हो रहे हैं और वही टॉप कर रहे हैं।ऐसा क्यों है, क्योंकि अंग्रेज़ी माध्यम की तुलना में हिंदी माध्यम के बच्चो को मुख्य परीक्षा में कम नम्बर दिए जाते हैं। यदि परीक्षा की कॉपी अंग्रेज़ी परीक्षक के पास पहुंच जाए तो वो हिंदी को किस नज़रिए से चैक करते होंगे यह मैं नहीं बता सकता आप खुद समझ सकते हैं। जैसे-तैसे बहुत अच्छा लिखकर वो मुख्य परीक्षा पास कर भी जाते हैं तो साक्षात्कार में उनको अंग्रेज़ी माध्यम के मुकाबले कम आंका जाता है।
हमारे देश में सबको समान शिक्षा की बात की जाती है असल में ऐसा नहीं है,गरीबो की शिक्षा अलग है और अमीरों की अलग।कब देश में एक समान शिक्षा पर बात की जायेगी?कब हिंदी माध्यम के बच्चो के साथ भेदभाव बंद होगा?जब इंटरमीडिएट तक हिंदी माध्यम और अंग्रेजी माध्यम के बोर्ड अलग-अलग हैं तो बड़ी-बड़ी शिक्षण संस्थानों में हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों माध्यम से पढ़ाई क्यों नहीं कराई जाती है?
पूरे देश में, चाहे गरीब का बच्चा हो या अमीर का, प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक एक समान शिक्षा होना चाहिए। यह समानता तभी आयेगी और तभी हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले गरीब बच्चों के साथ इंसाफ हो पायेगा जब-(1)- सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में अंग्रेज़ी और हिंदी माध्यम से प्रवेश परीक्षा करायी जाए और पचास-पचास प्रतिशत हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से सीटों का निर्धारण किया जाए। हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यम से पढ़ाई करायी जाए।(2)-सिविल सर्विसेज और ज्यूडिशियरी जैसी परीक्षाएं जिनमें मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार है उनमें पचास-पचास प्रतिशत हिंदी माध्यम और अंग्रेजी माध्यम के पद रखें जाएं। पचास प्रतिशत हिंदी माध्यम के बच्चो का सिलेक्शन किया जाए और पचास प्रतिशत अंग्रेज़ी माध्यम के। हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के बच्चो की अलग-अलग मेरिट बनाई जाए।