
पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 336, 224, 225, 332, 307 एवं डॉ का क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट की धारा 7 के अंतर्गत मामला दर्ज किया।
मुजफ्फरनगर,(Shah Times) । फास्ट ट्रैक कोर्ट नंबर 3 के पीठासीन अपर सत्र न्यायाधीश कमलापति ( II) ने कोतवाली क्षेत्र के ग्राम सुजुडू में करीब साढ़े 9 वर्ष पूर्व हमला कर पथराव व फायरिंग करते हुए पुलिस द्वारा कस्टडी में लिए गए वारंटी अभियुक्त को जबरन छुड़ा लेने के आरोप में सात अभियुक्तों को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया। इस मामले में बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान कुमार ने पुलिस द्वारा विवेचना में की गई खामियों को कोर्ट के समक्ष अपनी पैरवी के दौरान रखा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार कोतवाली क्षेत्र के ग्राम सुजुडू निवासी दिलशाद उर्फ दिल्लू के खिलाफ कोर्ट से जारी वारंट को तमिल करने के लिए 10 फरवरी 2015 को दरोगा राजेश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ सुजुडू गांव गए थे। पूछताछ में उन्हें पता लगा कि सुजुडू के सामने की ओर आईटीआई मैदान में दिलशाद उर्फ दिल्लू अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद है। दरोगा ने वहां जाकर दिलशाद उर्फ दिल्लू को अपनी कस्टडी में ले लिया। इसका विरोध करते हुए दिलशाद के साथी चिन्नी पुत्र मिन्नू, सलीम पुत्र तस्लीम, शौकीन पुत्र शौकत, जुबैर पुत्र भूरा, आबाद पुत्र कलवा, वाजिद पुत्र हनीफ आदि 15-20 लोगों ने पुलिस का विरोध करते हुए पथराव फायरिंग कर पुलिस कस्टडी से दिलशाद उर्फ दिल्लू को छुड़ा लिया।
पुलिस ने इस मामले में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 336, 224, 225, 332, 307 एवं डॉ का क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट की धारा 7 के अंतर्गत मामला दर्ज किया। विवेचना के बाद पुलिस ने इस मामले की चार्जशीट कोर्ट में पेश की। मामला सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट नंबर 3 के पीठासीन अपर सत्र न्यायाधीश कमलापति (II) के समक्ष प्रस्तुत हुआ। बचाव पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान कुमार ने कोर्ट में तर्क दिया कि वारंट तामील करने के लिए जाते समय दरोगा और पुलिस कर्मियों ने थाने की जीडी में रवानगी का कोई अभिलेख विवेचक ने पत्रावली पर दाखिल नहीं किया है।
जहां पर पुलिस ने अभियुक्त को छुड़ाने और अभियुक्त द्वारा पथराव में फायरिंग करने का उल्लेख किया है वह घटनास्थल सिविल लाइंस थाने के अंतर्गत आता है जबकि कोतवाली पुलिस ने बिना क्षेत्राधिकार के ही यह मामला अपने यहां दर्ज किया और अपने थाने से ही विवेचना कर आरोप पत्र प्रेषित कर दिया जबकि घटनास्थल सिविल लाइंस थाने के क्षेत्राधिकार में आता है। पुलिस द्वारा घटनास्थल से कोई बरामदगी नहीं की गई और किसी भी पुलिसकर्मी द्वारा चोटिल होने पर न्यायालय में डाक्टरी उपचार नहीं कराया गया। पत्रावली पर किसी भी पुलिसकर्मी का डॉक्टरी मुआयना नही है। किस वारंट को तामील कराने के लिए पुलिस गई थी वह भी पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान कुमार ने कोर्ट में तर्क दिया कि सुजुडू गांव की आबादी हजारों की है पुलिस ने अभियुक्त को किस आधार पर पहचान कर नामजद किया। मामला दिन में 4:30 का है इसके बावजूद पुलिस ने किसी पब्लिक के गवाह का बयान नहीं लिया ना ही घटनास्थल के निकट रहने वाले लोगों से कोई पूछताछ की गई। आरोपियों की शिनाख्त भी नहीं कराई गई।
गवाहों के बयान एव॔ दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की और से प्रस्तुत किए गए तर्क एवं बहस सुनने के बाद एफटीसी कोर्ट नंबर 3 के पीठासीन अपर सत्र न्यायाधीश कमलापति (II) ने सभी सात अभियुक्तों दिलशाद उर्फ दिल्लू, चिन्नी, सलीम, शौकीन, जुबैर, आबाद व वाजिद को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया।