कमाल के निकले यूपी के शहजादे

राहुल गांधी अखिलेश यादव शाह टाइम्स
Rahul Gandhi Akhilesh Yadav Shah Times

उत्तर प्रदेश में भाजपा को क्यों झेलनी पड़ी शर्मनाक हार? वह भी तब जब मोदी के चार सौ पार के ऐलान में यूपी की 80 की 80 सीट भी शामिल थी।

~ यशोदा श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश में भाजपा को क्यों झेलनी पड़ी शर्मनाक हार? वह भी तब जब मोदी के चार सौ पार के ऐलान में यूपी की 80 की 80 सीट भी शामिल थी। यहां अयोध्या भी है,काशी,मथुरा भी है और ये सबके सब चुनावी प्लेटफार्म पर भी थे। बुलडोजर और चर्बी ढील करने से लेकर गर्मी उतार देने जैसे शब्द बाण भी खूब चले। कभी कभी शरिया,मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की भी इंट्री होती रही है। इस चुनाव को राम भक्त और राम द्रोहियों के बीच होने की घोषणा भी की जा चुकी थी फिर भी?


तो क्या यह मान लिया जाय कि लोकसभा के इस चुनाव में यूपी में राम द्रोहियों की विजय हुई? क्या इस पर चर्चा की गुंजाइश तनिक भी नहीं की 80 की 80 सीटें जीत लेने का दम भरने वाले आखिर 33 पर ही क्यों सिमट गए? वाराणसी से दस लाख वोटों से जीत का मोदी का सपना क्यों चूर हुआ और लखनऊ की सीट से राजनाथ सिंह की जैसे तैसे जीत का संदेश आखिर क्या है?

लखनऊ से सड़क मार्ग से आते समय आपको जगह जगह बड़े बड़े गेट बनाकर लिखा मिलेगा “अयोध्या तीर्थ क्षेत्र”! यह कई जिलों के भू-क्षेत्र को जोड़कर चिन्हांकित किया गया है जिसमें अयोध्या,बस्ती,अंबेडकर नगर जिले के भू क्षेत्र भी आते हैं। आखिर इस तीर्थ क्षेत्र में भाजपा क्यों हारी? भाजपा के लोग यदि सचमुच राम भक्त हैं तो उन्हें राम के इस संदेश को समझना होगा। चुनावी लाभ की खातिर जिस अयोध्या में आनन फानन अधूरे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई,शंकराचार्यों की उपेक्षा हुई,आर एस एस प्रमुख तक के सम्मान की अनदेखी हुई बावजूद इसके अयोध्या सहित इससे जुड़े तीर्थ क्षेत्र तक भाजपा हार गई। नरेंद्र मोदी वेशक तीसरी बार प्रधान मंत्री बन रहे हों लेकिन अयोध्या की हार और बनारस में जैसे तैसे अपनी जीत को ताउम्र शायद ही भुला पाएं क्योंकि ये दोनों ही क्षेत्र भारत ही नहीं विश्व भर में धर्म नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। भाजपा स्वयं को सबसे बड़ी राम भक्त व धर्मवादी पार्टी मानती है।


यूपी भारत का एक मात्र प्रदेश है जहां वोटों को अपनी ओर आकर्षित कर लेने वाले धार्मिक स्थल मौजूद हैं। वह चाहे अयोध्या हो या काशी मथुरा। भाजपा द्वारा इस चुनाव में इन धर्म स्थलों का भर पूर इस्तेमाल किया गया,यह अलग बात है कि इस बार यूपी में ही भाजपा को इसका फायदा नहीं मिला।


यूपी में लोकसभा सीटों की भारी हार पर पार्टी के भीतर समीक्षा होगी ही। हो सकता है कि इसके लिए प्रदेश के एकाध या केवल एक बड़े ओहदेदार के सिर ठीकरा फोड़ने की भी कोशिश हो लेकिन ऐसा हुआ तो प्रदेश भाजपा में भारी खड मंडल रोक पाना संभव नहीं होगा। ठीक है यूपी में भरोसा किए गए 51 पुराने चेहरों में से कुछ भले ही जीत गए लेकिन उनके जीत के अंतर पर भी गौर किया जाना चाहिए।


इस चुनाव में यूपी के लड़कों का खूब उपहास भी उड़ाया गया। किसी को नानी के घर भेजा जा रहा था तो किसीको सैफई! इन्हें शहजादा भी कहा गया। ये दोनों शहजादे अपने अपने क्षेत्रों में मोदी से कहीं ज्यादे वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं। कहना न होगा कि यूपी के इन शहजादों ने तो कमाल किया ही,इनकी पार्टी के बच्चों ने भी भाजपा के सूरमाओं को धूल चटा दी। वह चाहे प्रिया सरोज रही हों या इकरा हसन। गोंडा की श्रेया वर्मा करीब 40 हजार वोटों से चुनाव भले हार गई वरना इस बच्ची ने भी भाजपा के धुरंधर नेता कीर्ति वर्धन को नाकों चने चबवा दिया था।


यूपी में सपा ने तो भाजपा को धूल चटाया ही,कांग्रेस ने भी गजब का कमाल दिखाया। कांग्रेस यहां सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें उसे 6 सीटों पर विजय हासिल हुई और इतनी ही सीटों पर उसे मामूली वोटों से हार जाना पड़ा। गोरखपुर जिले के बांसगांव सुरक्षित सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद की मात्र 31 सौ वोटों से हार की चर्चा दिल्ली तक है। महराजगंज में कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र चौधरी और देवरिया में कांग्रेस के ही अखिलेश प्रताप सिंह के भी क्रमश: 34 और 35 हजार वोटों से हार चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने बांसगांव से सदल प्रसाद की हार पर संदेह व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग से शिकायत भी दर्ज कराई थी। कानपुर,फतेहपुर और अमरोहा सीट पर भी कांग्रेस उम्मीदवार मामूली वोटों के अंतर से हारे हैं। अमरोहा से कुंवर दानिश अली की हार से निश्चय ही मायावती को अपनी पार्टी की जीत जैसा एहसास हुआ होगा। कांग्रेस शेष पांच लोकसभा क्षेत्रों से भारी अंतर से जरूर हारी लेकिन यहां भी इसके लिए वोटों का सूखा पड़ने जैसी स्थिति नहीं रही।

मथुरा,वाराणसी,गाजियाबाद,झांसी,बुलंदशहर में कांग्रेस प्रत्याशियों की झोली में भी खूब वोट बरसे। वाराणसी में हार कर भी जीत गए कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय की चर्चा चारों ओर है। लोकसभा के इस चुनाव में सपा और कांग्रेस की युगल जोड़ी का संदेश स्पष्ट है कि अहंकार और जुमलों के खिलाफ लड़ना और पराजित करना उन्हें बखूबी आता है। दुआ करिए कि आगे से भी आगे तक यह जोड़ी बरकरार रहे ताकि लोकतंत्र जिंदा रहे।

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