
आज बसपा के मुस्लिम कंडिडेटों को भाजपा की जीत की गारन्टी बताया जा रहा है या ये कहें कि आपसे आसुरी शक्तियों के द्वारा कहलवाया जा रहा है, कल यानी 2019 में जीत की गारंटी थी बसपा आज क्यों नहीं जीत की गारंटी है।
यह आपकी सोच को कैपचरिंग किया हुआ है तभी तो आप ऐसा सोचते हो जैसा मनुवादी सोच आपको सोचने को कहती है जब 2019 के आम चुनाव में बसपा जीत की गारंटी थी तो आज भी है यहाँ के सियासी हालात दलितों, पिछड़ों को अपने साथ या उनके साथ मिलकर ही साम्प्रदायिक शक्तियों को मात दी जा सकती है मैं यह नहीं कहता कि बसपा ही जीत की गारंटी है मेरा कहना है कि जहाँ भी साम्प्रदायिकता के विरुद्ध जिस भी दल का कंडिडेट अपने साथ मजबूत वोटबैंक लिए हो उसकी सियासी नाव में खामोशी के साथ बैठकर साम्प्रदायिक शक्तियों को सियासी सबक सिखाने का सबूत दें हमारा काम सही दिशा आमजन को बताना है बाकी आप तय करेगें कि आपको जीना कैसे है क्या आप यही चाहते है कि इसी तरह के माहौल में जीए या एक अच्छे माहौल में जीना पसंद करते हैं।
खैर साम्प्रदायिकता का खेल खेलकर राज करने वाले दल को जो भी हरा रहा है उसके पाले में जाकर खड़ा हो जाना चाहिए यही सियासी तकाज़ा है और अगर आप किसी दल या व्यक्ति की गुलामी करके वोटिंग करोगे तो आप भी साम्प्रदायिकता को बढाने वाले दल को जीताने में भागीदार बन रहे हो टेक्टिकल वोटिंग की जरूरत है अगर आपने टेक्टिकल वोटिंग की तो परिणाम ऐसे आएगें जैसा आप चाहते है और देश के लिए बेहतर है और अगर आपने किसी की मोहब्बत में आकर वोटिंग की तो परिणाम ऐसे आएगे जैसे RSS और साम्प्रदायिक दल या सोच चाहती है ये आपको तय करना है कि आप क्या चाहते है।
ऐसे बहुत से बुद्धिजीवी है जो इस बात को लेकर फिक्रमंद है कि साम्प्रदायिकता के खिलाफ वोटिंग करने वाला वोट क्या कर रहा है और उसे क्या करना चाहिए उनका भी यही कहना है कि साम्प्रदायिकता के विरोधी वोटर को टेक्टिकल वोटिंग करनी चाहिए तभी जाकर देश से साम्प्रदायिकता के जहर वाली सोच रखने का दिखावा करने वाली सरकार को हटाकर सेकुलरिज्म सरकार बना सकते है।
आपको अगर याद नहीं तो हम याद दिलाते हैं कि जब साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ सेकुलरिज्म के हामी टेक्टिकल वोटिंग करते थे और साम्प्रदायिकता के सबसे बडे़ हामी लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सेकुलरिज्म के हामी वोटरों ने हमें टेक्टिकल वोटिंग करके हरा दिया है इसका हमारे पास कोई इलाज नहीं है यह होती हैं टेक्टिकल वोटिंग की ताकत इसे पहचाना बहुत जरूरी है भविष्य की बात दिमाग से निकाल दीजिये कि यह जीतकर साम्प्रदायिक दलों से मिल जाएगें मिलेगें तो बाद में देखेंगे पहले साम्प्रदायिकता के हामियों को हरा कर उसे कमज़ोर कर दीजिए अगर वह कमज़ोर हो जाएगें तो इनसे जिन्हें हम उनके विरुद्ध जिता रहे है उनसे निपटना आसान है इस हालात के मुकाबले। बाकी आप जाने की क्या बेहतर है और क्या नहीं है।साम्प्रदायिकता को हराना जरुरी है ना कि भविष्य की लड़ाई लड़ने की जो हुईं ही नहीं उसकी लड़ाई लड़ने की बात करना उचित नहीं है।
जहाँ जो साम्प्रदायिकता को हरा रहा है उसके पीछे चुपचाप खड़े हो जाओ और फिर देखो कितने सुगंध परिणाम आते हैं।बुद्धिजीवियों भी सड़क पर आकर सेकुलरिज्म के हामी वोटरों को घर घर जाकर यह बात समझाएं कि आपको क्या करना है और क्या नही करना है व्यक्ति या दल जरुरी नहीं है देश में साम्प्रदायिक शक्तियों को कमज़ोर करना जरूरी है अगर यह सब हुआ तो अच्छे परिणाम आने की उम्मीद की जा सकती हैं और अगर हम व्यक्ति और दल को मोह में लीन रहे तो कुछ बदलने वाला नहीं है।