
फर्स्ट एड शिक्षा की क्रांति: हर बच्चा बनेगा ‘लाइफसेवर’।
हर बच्चा बनेगा “लाइफसेवर”: फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया का मिशन
देश के स्वास्थ्य तंत्र की सीमाओं के बीच डॉ. शबाब आलम ने बच्चों से लेकर आम नागरिकों तक को ‘फर्स्ट एड सोल्जर’ बनाने का संकल्प लिया है। यह पहल भारत को नई स्वास्थ्य दिशा देने का दावा करती है।
📍नई दिल्ली | 🗓️ 23 अक्टूबर 2025✍️ आसिफ़ ख़ान
जहाँ से ‘ज़िंदगी की पहली मदद’ की कहानी शुरू हुई
जब किसी सड़क हादसे में घायल इंसान ज़मीन पर तड़पता है और भीड़ सिर्फ़ तमाशा देखती है—तो उस पल में इंसानियत कहीं खो जाती है।
इसी दर्द ने डॉ. शबाब आलम को झकझोरा। उन्होंने महसूस किया कि भारत में लाखों जानें सिर्फ इसलिए चली जाती हैं क्योंकि सही समय पर किसी को प्राथमिक चिकित्सा देना नहीं आता।
यहीं से जन्म हुआ फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया (FACI) का।
डॉ. आलम कहते हैं—
“भारत में एक लाख लोगों पर सिर्फ़ एक डॉक्टर है। ऐसे हालात में अगर हर नागरिक को प्राथमिक उपचार की बुनियादी ट्रेनिंग मिल जाए, तो हम लाखों जिंदगियाँ बचा सकते हैं।”
कोविड की सीख: अस्पताल नहीं, जागरूकता असली हथियार
कोविड-19 महामारी ने हमें दिखा दिया कि केवल डॉक्टर और अस्पताल देश को नहीं बचा सकते।
संकट के वक़्त हर मोहल्ले, हर गली और हर स्कूल में ऐसे लोगों की ज़रूरत होती है जो ‘फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ की भूमिका निभा सकें।
डॉ. आलम कहते हैं –
“कोरोना ने सिखाया कि अब हर नागरिक को खुद भी सैनिक बनना होगा। अगर बच्चों को शुरुआत से सही ट्रेनिंग मिलेगी, तो वे न सिर्फ़ अपना बल्कि दूसरों का भी जीवन बचा पाएँगे।”
12 वर्षीय रोडमैप—‘हर स्कूल, हर बच्चा, एक प्रशिक्षित नागरिक’
फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया ने 12 साल का एक व्यापक राष्ट्रीय रोडमैप तैयार किया है, जिसमें चार मुख्य चरण शामिल हैं:
हर स्कूल में फर्स्ट एड डिपार्टमेंट की स्थापना।
अनसर्टिफाइड झोलाछाप प्रैक्टिस पर रोक।
सस्ती मेडिकल एजुकेशन, ताकि गरीब बच्चे भी डॉक्टर बन सकें।
प्रमाणित फर्स्ट एड ट्रेनिंग आम नागरिकों तक पहुँचाना।
FACI का विज़न साफ़ है — “हर घर से एक हेल्थ गार्डियन निकले।”
इलाज नहीं, बचाव का विज्ञान—प्रिवेंटिव हेल्थ का नया पाठ
डॉ. आलम का मानना है कि स्वास्थ्य सिर्फ़ दवाओं का नहीं, आदतों का भी मामला है।
वे कहते हैं—
“हमारी बीमारी हमारी दिनचर्या से शुरू होती है। देर रात खाना, मोबाइल पर वक़्त बिताना, और तनाव में जीना—यह सब धीरे-धीरे शरीर को बीमार बना देता है।”
उनकी सोच है कि फर्स्ट एड एजुकेशन के साथ-साथ प्रिवेंटिव हेल्थ अवेयरनेस को भी स्कूल पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए।
प्राचीन शास्त्रों का हवाला देते हुए वे याद दिलाते हैं—
“सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। यह छोटा-सा बदलाव आधी बीमारियाँ मिटा सकता है।”
महंगा इलाज: जब हेल्थकेयर व्यापार बन जाए
आज भारत में मेडिकल कॉलेज की फीस करोड़ों तक पहुँच चुकी है।
डॉ. आलम सवाल उठाते हैं—
“जब डॉक्टरी पढ़ाई अमीरों का खेल बन जाए, तो गरीब को सस्ता इलाज कैसे मिलेगा?”
उनका मानना है कि स्वास्थ्य सेवा को जन-सेवा बनाना तभी संभव है जब मेडिकल शिक्षा सस्ती और सुलभ हो।
यह बात कटु है, मगर सच्चाई यही है—भारत में इलाज कम, इलाज का व्यापार ज़्यादा है।
एक इंसान, एक जान—जहाँ फर्स्ट एड ने बदली तक़दीर
डॉ. आलम बताते हैं, “जब पहली बार मैंने अपनी आंखों के सामने एक इंसान की जान फर्स्ट एड से बचाई, वहीं से मेरा जीवन बदल गया।”
उन्होंने समझा कि एक छोटा-सा स्किल — जैसे सीपीआर (Cardio Pulmonary Resuscitation) — किसी की पूरी दुनिया बचा सकता है।
भारत में हर साल हज़ारों सड़क हादसे होते हैं।
रिपोर्ट कहती है — प्राथमिक उपचार न मिलने से भारत में हर 23 सेकेंड में एक मौत होती है।
सोचिए — अगर हर नागरिक को बेसिक फर्स्ट एड आती हो, तो ये आंकड़े आधे रह जाएँ।
डर और कानून: क्यों लोग मदद करने से कतराते हैं
भारत में सबसे बड़ी बाधा है “कानूनी डर।”
लोग सोचते हैं कि अगर किसी घायल को छू लिया, तो पुलिस झंझट में फँसा देगी।
डॉ. आलम का कहना है —
“इसी डर ने इंसानियत को कमजोर कर दिया है। जब तक नागरिक खुद को ‘गुड समैरिटन’ नहीं समझेंगे, तब तक बदलाव संभव नहीं।”
इसी सोच को बदलने के लिए FACI का सपना है — “हर नागरिक बने प्रमाणित फर्स्ट एडर।”
केरल का मॉडल—जहाँ से बदलाव की शुरुआत हुई
केरल इस दिशा में भारत का पहला राज्य बन चुका है।
10 जुलाई को तिरुवनंतपुरम में आयोजित “निरामया केरलम” कार्यक्रम में राज्य सरकार ने घोषणा की कि सभी स्कूलों और कॉलेजों में प्राथमिक चिकित्सा शिक्षा अनिवार्य होगी।
राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर और शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी की मौजूदगी में यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
सरकार ने फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया को इस प्रशिक्षण का आधिकारिक भागीदार बनाया है।
डॉ. आलम ने कहा —
“अब अगली लड़ाई हथियारों से नहीं, बल्कि जागरूकता और तैयारी से लड़ी जाएगी। हर छात्र, शिक्षक और नागरिक बनेगा लाइफसेवर।”
फर्स्ट एड मैन ऑफ इंडिया—एक नाम, एक आंदोलन
डॉ. शबाब आलम को आज “फर्स्ट एड मैन ऑफ इंडिया” कहा जाता है।
2019 में जब उन्होंने FACI की नींव रखी, तो उनके पास संसाधन नहीं, केवल इरादा था।
आज उनकी ट्रेनिंग से हज़ारों लोग जीवन बचा चुके हैं — कहीं एक्सीडेंट पीड़ित, कहीं दिल का दौरा पड़ा मरीज़, कहीं गर्भवती महिला।
उनका कहना है—
“जहाँ भी कोई इंसान साँस ले रहा है, वहाँ फर्स्ट एड की ज़रूरत है।”
समाज और शिक्षा: नई पीढ़ी को नई दिशा
स्कूल और कॉलेजों में जब बच्चे फर्स्ट एड सीखेंगे, तो समाज में “मदद करना” एक संस्कृति बन जाएगी।
जैसे NCC या Scout में अनुशासन सिखाया जाता है, वैसे ही First Aid Education में सिखाया जाएगा—
किसी को गिरते देख भागना नहीं, बल्कि मदद करना।
यह वही इंसानियत है जिसकी भारत को आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
आर्थिक दृष्टि से लाभ: रोजगार के नए अवसर
डॉ. आलम बताते हैं कि भारत में लाखों हेल्थ वर्कर ऐसे हैं जिनके पास अनुभव तो है, मगर सर्टिफिकेट नहीं।
FACI के कोर्स पूरा करने के बाद वे सर्टिफाइड फर्स्ट एडर बन सकते हैं, जिससे उन्हें नौकरी, प्रमोशन और इज़्ज़त — सब कुछ मिलता है।
यह केवल स्वास्थ्य आंदोलन नहीं, बल्कि रोज़गार सशक्तिकरण अभियान भी है।
स्वास्थ्य की असली क्रांति
फर्स्ट एड काउंसिल ऑफ इंडिया की पहल सिर्फ़ एक नीति नहीं, बल्कि एक सोच का पुनर्जागरण है।
डॉ. आलम का यह सपना कि “हर घर में एक हेल्थ गार्डियन हो” अब धीरे-धीरे हकीकत बन रहा है।
यह आंदोलन हमें याद दिलाता है कि
“डॉक्टरों की कमी को ज्ञान से पूरा किया जा सकता है, बशर्ते हर नागरिक जागरूक हो।”




