
Indo-Pak Tensions Rise: What Role Will the World Powers Play?
पाकिस्तान की रणनीतिक अस्थिरता और भारत का बढ़ता आत्मविश्वास
पहलगाम हमले के बाद भारत में पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा प्रहार करने की मांग तेज़ है। जानें भारत को कौन-कौन से देश मिलेंगे समर्थन और कौन होंगे विरोधी।
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जब-जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना किया, तब-तब रणनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर ठोस जवाब दिया गया। अब पहलगाम हमले ने एक बार फिर भारत को निर्णायक कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। इस बार सिर्फ एलओसी पार करने की नहीं, बल्कि वैश्विक मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति की चर्चा जोरों पर है।
अमेरिका: भारत का भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार
अमेरिका और भारत की रक्षा साझेदारी पिछले एक दशक में मजबूत हुई है। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस की सदस्य तुलसी गबार्ड और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक ने भारत को आतंकियों के खिलाफ हरसंभव सहायता देने की बात कही है। अमेरिका से मिलने वाली तकनीकी मदद से भारत को आतंकवाद की जड़ तक पहुंचने में बड़ी मदद मिल सकती है। F-16 फाइटर जेट्स की मरम्मत पर रोक लगाने की अमेरिकी मांग पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है।
सऊदी अरब और UAE: तेल पर तगड़ा ‘खेल’
भारत के वेस्ट एशियाई संबंध खासे मजबूत हैं। सऊदी अरब और यूएई ने पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर पहले भी अपनी चिंता जाहिर की है। भारत यदि तेल आपूर्ति और वित्तीय सहयोग को लेकर इन देशों के साथ ठोस रणनीति बनाता है, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त असर पड़ सकता है। सऊदी-यूएई जैसे मुस्लिम देशों की चुप्पी पाकिस्तान के लिए बड़ी कूटनीतिक हार मानी जाएगी।
फ्रांस और इटली: वैश्विक मंचों पर भारत के पक्ष में
फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने फोन पर प्रधानमंत्री मोदी से बात की और हमले की निंदा की। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और FATF जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति और मजबूत होती है। आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव में भारत को वैश्विक सहमति मिलने लगी है।
रूस: पाकिस्तान से दूरी, भारत से निकटता
हालांकि रूस पर चीन के प्रभाव की आशंका रहती है, लेकिन भारत और रूस के पुराने रक्षा संबंध पाकिस्तान पर भारी हैं। रूस ने अभी तक पाकिस्तान को सीधी सैन्य मदद नहीं दी है। ऐसे में भारत यदि ऊर्जा नीति और कूटनीति में संतुलन बनाए रखे, तो रूस को भी अपने पक्ष में रख सकता है।
पाकिस्तान की ‘हजार घाव’ नीति अब उलट सकती है
सेना के रिटायर्ड अधिकारी और रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी मानते हैं कि पाकिस्तान की “हजार घाव देने” की रणनीति अब भारत को लंबे समय तक नहीं रोक सकती। भारत को सामरिक के साथ-साथ कूटनीतिक जवाब देना चाहिए। बलूचिस्तान, सिंध, खैबर और डूरंड रेखा की अस्थिरता भारत के लिए रणनीतिक अवसर बन सकती है।
ISI पर हमला और आतंक नेटवर्क का पर्दाफाश
भारत को ISI के खिलाफ वैश्विक सहयोग के साथ व्यापक ऑपरेशन चलाना चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आधुनिक निगरानी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए भारत आतंकी नेटवर्क को जड़ से खत्म कर सकता है। यह न सिर्फ सैन्य दबाव बनाएगा, बल्कि पाकिस्तान के भीतर राजनीतिक संकट को भी बढ़ाएगा।
साथ कौन हैं?
- अमेरिका: तकनीकी और कूटनीतिक समर्थन
- फ्रांस, इटली: वैश्विक मंचों पर खुला समर्थन
- UAE, सऊदी अरब: चुपचाप भारत के पक्ष में, आतंकवाद के खिलाफ
- रूस: तटस्थ लेकिन भारत की तरफ झुका हुआ
विरोध में कौन?
- चीन: रणनीतिक समर्थन, सीधे हस्तक्षेप की संभावना कम
- तुर्की: हथियार और नैतिक समर्थन, मुस्लिम नेतृत्व की महत्वाकांक्षा
- ईरान: फिलहाल सुलह की कोशिश में, भारत के साथ भी संपर्क में
- बांग्लादेश (नई सत्ता): स्पष्ट रुख नहीं, पर कुछ बयान भारत विरोधी
भारत का कड़ा प्रहार तय, लेकिन रणनीति होगी निर्णायक
पाकिस्तान को सबक सिखाने का वक्त आ चुका है, लेकिन भारत की यह लड़ाई केवल बॉर्डर पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लड़ी जाएगी। इस बार प्रहार केवल गोलियों का नहीं, नीतियों और साझेदारियों का होगा। और इस मोर्चे पर भारत के पास अमेरिका, फ्रांस, सऊदी और रूस जैसे ऐसे दोस्त हैं जो पाकिस्तान को अकेला छोड़ सकते हैं। पहलगाम का बदला अब भारत की नई विदेश और रक्षा नीति का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।