
ज्योतिष ज्ञान: "त्योहार दो-दिनी क्यों हो जाते हैं?"
“पंचांग (Almanac) में तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण होते हैं, लेकिन तिथि उत्सवों और व्रतों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, तिथि का निर्धारण सूर्योदय से होता है और इसमें कमी या बढ़ोतरी रात के समय में हो सकती है। अगर तीन सूर्योदयों के बीच तीन तिथियाँ आ जाएं, तो एक तिथि कम हो जाती है, जबकि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक ही तिथि रहती है, तो वह तिथि बढ़ती है। इन तिथियों का सीधा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर होता है, जो व्रत और त्यौहारों के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य और जीवन में सुधार कर सकता है।”
तिथियां बढ़ती- घटती क्यों है?
आइए ज्योतिषी रजत सिंगल (Rajat Single) द्वारा जाने तिथियों का बढ़ना और घटना। चंद्रमा और सूर्य की गति में बहुत अंतर होता है, जहां सूर्य 30 दिन में एक राशि चक्र पूरा करता है, वहीं चंद्रमा को एक राशि का चक्र पूरा करने में सवा 2 दिन का समय लगता है। ज्योतिष शास्त्र (Astrology) अनुसार तिथि का पता सूर्य और चंद्रमा की स्तिथि से होता है। सूर्य और चन्द्रमा एक साथ एक ही अंश पर होना अमावस्या कहलाता है और सूर्य का चंद्रमा से 180 अंश पर होना कुंडली में पूर्णिमा कहलाता हैं। चन्द्रमा का सूर्य से 12 डिग्री आगे निकल जाना एक तिथि का निर्माण करता है और इसी प्रकार प्रतिपदा, द्वितीया क्रमश: तिथियों का निर्माण होता जाता है। अब अगर बात करे तिथियों की घटने बढ़ने की तो यह पंचांग और सूर्योदय के समय अनुसार निर्धारित होता हैं। तिथि, सूर्योदय से पहले शुरू हो गई है और अगले सूर्योदय के बाद तक रहती है तो उस स्थिति को तिथि की वृद्धि कहा जाता है।
यदि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच में तीन तिथियाँ आ जाएँ तो उसमें एक तिथि क्षय अर्थात कम हो जाती है। इसी प्रकार अगर दो सूर्योदयों तक एक ही तिथि चलती रहे तो वह तिथि वृद्धि अर्थात बढ़ना कहलाती है।
चन्द्रमा का सूर्य से 12 डिग्री आगे निकल जाना एक तिथि का निर्माण करता है और इसी प्रकार प्रतिपदा, द्वितीया क्रमश: तिथियों का निर्माण होता जाता है। उदाहरण के लिए – रविवार के दिन सूर्योदय प्रातः 06:32 मिनिट पर हुआ और इस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय के पहले प्रातः 6:15 मिनिट पर आरंभ होती है और अगले दिन सोमवार को सूर्योदय प्रातः 06:31 मिनिट के बाद प्रातः 7ः53 मिनिट तक रही तथा उसके बाद षष्ठी तिथि प्रारंभ होती है।
इस तरह रविवार और सोमवार दोनों दिन सूर्योदय के समय पंचमी तिथि होने से तिथि की वृद्धि मानी जाती है। पंचमी तिथि का कुल मान 25 घंटे 36 मि0 आया जो कि औसत मान 60 घटी या 24 घंटे से अधिक है। इस कारण के होने से तिथि वृद्धि होती है।
इसकी दूसरी स्थिति में जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद से शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है तो इसे क्षय होन आर्थात कम होना कहा जाता है जो हम तिथि क्षय कहते हैं। कैसी होती है क्षय तिथि उदाहरण – शुक्रवार को सूर्योदय प्रातः 07:12 पर हुआ और इस दिन एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद प्रातः 07:36 पर समाप्त हो गई एवं द्वादशी तिथि शुरू हो जाए और द्वादशी तिथि 30:26 मिनट अर्थात प्रात: 06:26 तक ही रही और उसके बाद त्रयोदशी तिथि शुरु हो गई हो। सूर्योदय 07:13 पर हुआ ऎसे में द्वादशी तिथि में एक भी बार सूर्योदय नहीं हुआ। ऎसे में शुक्रवार को सूर्योदय के समय एकादशी और शनिवार को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि रही, जिस कारण द्वादशी तिथि का क्षय हो गया।
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ज्योतिषी रजत सिंगल के अनुसार तिथियों का लाभ कैसे उठाए?
अगर आप तिथियों का लाभ उठा कर अपने कुंडली (Horoscope) के दोषो को कम करना चाहते हैं तो यह बहुत जरुरी हो जाता हैं कि आप तिथि अनुसार अपने कार्यो को निर्धारित करते हैं तो उनमे सफलता के अवसर बड़ जाते हैं। सभी तिथियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। किसी भी हिंदी मास की शुक्त पक्ष और कृष्ण पक्ष की 1-6-11 तिथि को नन्दा तिथि कहते हैं, 2-7-12 तिथि को भद्रा कहा जाता है, 3-8-13 जया तिथि कही जाती हैं, 4-9-14 रिक्ता तिथि होती हैं और 5-10-15 पूर्णा तिथियों में आती हैं। इन तिथियों के नाम के आधार पर ही इनके प्रभाव भी मिलते हैं।
नंदा तिथि- इस तिथि में अंतिम चौबीस मिनट को छोड़कर सभी तरह के शुभ- मांगलिक कार्य, भवन निर्माण और व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए यह तिथि विशेष शुभ है।
भद्रा तिथि- इसमें पूजा, व्रत-जाप, दान आदि कार्य सहित अनाज लाना, पशुधन और वाहन खरीदना शुभ होता है। इसके अलावा अदालती कार्य, शल्य चिकित्सा, चुनाव संबंधी कार्य करना शुभ होता है। इसमें शुभ- मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए।
जया तिथि- सेना संबंधी कार्य, मुकदमेबाजी – जैसे अदालती कार्य निबटाना, वाहन खरीदना, कलात्मक कार्यों जैसे- विद्या, गायन-वादन, नृत्य आदि के लिए विशेष शुभ होती हैं।
रिक्ता तिथि- इन तिथियों में तंत्र-मंत्र की सिद्धि, तीर्थयात्रा शुभ मानी जाती है। इस तिथि में किसी भी तरह के शुभ- मांगलिक कार्य, गृहप्रवेश और नया काम आरंभ करने से बचना चाहिए ।
पूर्णा तिथि- इसमें अमावस्या को छोड़कर शेष तिथियों में सभी प्रकार के शुभ- मांगलिक कार्य करना शुभ होता है।
ज्योतिषी रजत सिंगल (Astrologer Rajat Single) अनुसार यदि इसी तरह अगर आपको कोई रत्न धारण करना हैं, अपने इष्ट देव की पूजा करनी हैं, कोई दान करना हैं या मन्त्र का जाप करना हैं और यहा तक की आपको कोई पुण्य स्नान करना हैं तो आपको तिथियों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।