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कांग्रेस को आशा है कि यूपी की लड़ाई में इंडिया गठबंधन के साथ होगी बसपा !
नई दिल्ली। जैसे व्यक्तिगत जिंदगी आमतौर पर एक जैसी नहीं रहती वैसे ही सियासत भी आमतौर पर एक जैसी नहीं रहती एक दौर था जब भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस विरोधी फ्रंट का एक छोटा हिस्सा हुआ करती थी और आज भारतीय जनता पार्टी सियासत के अपने उस मुकाम पर है जहां पहुंचने के बाद उस स्थान पर ठहर पाना काफी मुश्किल होता है जैसा की भारतीय जनता पार्टी के साथ हो भी रहा है ।
भारतीय जनता पार्टी आज सियासत की उस बुलंद सीढ़ी के उस आखिरी पायदान पर मौजूद है जहां पहुंचने के लिए हर सियासी पार्टी जद्दोजहद करती है लेकिन पहुंचाना मुश्किल होता है और अगर पहुंच जाए तो उसके बाद उस पायदान पर लंबे समय तक ठहर पाना और भी मुश्किल होता है ।
गठबंधन की राजनीति के चलते ही भाजपा यहां तक पहुंची है कभी कांग्रेस पार्टी के विरोध में गठबंधन बना करते थे आज वही कांग्रेस पार्टी खुद गठबंधन की राजनीति करने के लिए मजबूर है हालांकि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है क्योंकि जब कभी कांग्रेस पार्टी के विरोध में गठबंधन बना करते थे तो उन गठबंधनों को कभी भारतीय जनता पार्टी ने लीड नहीं किया और आज जो भारतीय जनता पार्टी के विरोध में गठबंधन बन रहे हैं उनको कांग्रेस पार्टी ही लीड कर रही है भाजपा ने देश में सांप्रदायिकता के रथ पर सवार होकर सियासत में ये मुकाम प्राप्त किया है ।
इसी नफरत की सियासत के विरोध में कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले साल लगभग 4000 किलोमीटर पैदल यात्रा कर कन्याकुमारी से कश्मीर तक गए इसके बाद देश में नफरत की सियासत के खिलाफ एक आवाज बुलंद हुई इस आवाज को और शक्ति प्रदान करने के लिए कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आदि नेताओं का यह प्रयास है कि भाजपा के विरोध में बने इंडिया गठबंधन में बसपा भी शामिल हो जाए लेकिन बसपा अभी इंडिया गठबंधन या एनडीए गठबंधन में शामिल होने को लेकर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पा रही है बल्कि वह किसी गठबंधन में शामिल होने से ही इंकार कर रही है जिसकी वजह से इंडिया गठबंधन सहित एनडीए गठबंधन भी भयभीत है ।
दोनों गठबंधनों के शीर्ष नेताओं का मानना है कि अगर बसपा प्रमुख मायावती ने दोनों गठबंधनों में से किसी भी एक गठबंधन में शामिल होने की अपनी रजामंदी दे दी तो उत्तर भारत में उस गठबंधन को और मजबूती मिल जाएगी कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का प्रयास है कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाएं राहुल गांधी के इस प्रयास को और अधिक मजबूती देने के लिए कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गांधी भी प्रयास कर रही है मायावती द्वारा बार-बार इनकार करने को कांग्रेस इकरार क्यों मान रही है यही सवाल राजनीतिक गलियारों में बड़ी तेजी से किया जा रहा है ।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बसपा अगर इंडिया गठबंधन में शामिल होती है तो यूपी में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति और जटिल हो जाएगी। बसपा के इंकार को इक़रार मान रही कांग्रेस। कांग्रेस को आशा है कि यूपी की लड़ाई में इंडिया गठबंधन के साथ होगी बसपा ! सार्वजनिक रूप से तो बहुजन समाज पार्टी इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन दोनों ही गठबंधनों से समान दूरी बनाने की बात कह रही है ।
लेकिन बसपा के सूत्र यह बता रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल होंगी लेकिन पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद बसपा प्रमुख इंडिया गठबंधन में शामिल होने पर फैसला करेंगी बहुजन समाज पार्टी के कॉर्डिनेटरों द्वारा और संगठनों के अन्य पदाधिकारियों द्वारा बसपा प्रमुख मायावती से पार्टी की मीटिंग में यह बात साफ तौर पर कह दी हैं कि पार्टी का इंडिया गठबंधन में शामिल होना जरूरी है अगर बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं होती जिसकी संभावना ना के बराबर है तो बहुजन समाज पार्टी को 2022 जैसे परिणाम देखने को मिलेंगे यह बात बसपा प्रमुख मायावती भी समझ रही है लेकिन वह भी पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम आ जाने के बाद ही इस नतीजे पर पहुंचेंगी ऐसा पार्टी के सूत्र बता रहे हैं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि किसी भी परिस्थितियों में बसपा प्रमुख को इंडिया गठबंधन में शामिल किया जाना अत्यंत जरूरी है चाहे इसके लिए कोई भी कुर्बानी देनी पड़े कोई भी कुर्बानी से मुराद यह है कि अगर इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी को बाहर भी करना पड़े तो कांग्रेस इसके लिए भी तैयार हो जाएगी क्योंकि समाजवादी पार्टी का जो आधार वोट है मुसलमान वह पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ खड़ा नजर आ रहा है तो अगर इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी बाहर भी जाती है तो इससे गठबंधन की सियासत पर कोई खास प्रभाव पड़ने की संभावनाएं बहुत कम समझी जा रही है सियासत में कोई किसी का बहुत लंबा दोस्त नहीं होता और ना ही कोई बहुत लंबा दुश्मन होता वक्त पर जो सही बैठ रहा होता है सियासत में उसको अपने साथ लेने में या भगाने में तनिक भी देर नहीं की जाती है।