
तो उसका जवाब ना में ही मिलता है मगर क्यों?
इजराइल (Israel) को बहुत फायदा है जब तक फिलिस्तीन (Palestine) मुद्दा गरम रहता है,वो अरबों डॉलर ले रहा है हर साल इस नाम के वेस्ट से, आर्मी इक्विपमेंट से लेकर हर तरह की सुविधा,फिर पूरी दुनिया के यहूदी उनको फण्ड करते हैं,अगर ये मुद्दा ख़त्म हुआ तो इजराइल (Israel) फिर नार्मल देश जैसा हो जाएगा दुनिया के लिए। जैसे स्पेन हो गया।
इजराइल (Israel) में एक से एक खोपड़ी इंसान पड़े हैं जो वर्ल्ड पॉलिटिक्स को चलाते हैं,इजराइल में दोहरी नागरिकता लिए अमेरिका के भी लोग हैं और रूस के भी और ये दोनों ही देशों में काफी influential हैं, इसीलिए इजराइल (Israel) वाले आपको पुतिन से भी मुलाक़ात करते मिल जाएंगे, और नेतन्याहू की पुतिन से मुलाक़ात करवाते भी,फिर इजराइल (Israel) धीरे-धीरे पूरे मुस्लिम वर्ल्ड को भी अपने हिसाब से चलाता है,आप भी सोचते होंगे के इजराइल हमेशा ईरान ईरान क्यों करता रहता है,ये क्यों नहीं कहता के egypt का हाथ है या सऊदी का या किसी और पड़ोसी देश का ?
ऐसे ही गज़ा में अगर इजराइल दाखिल होता है तो सब ये क्यों डर रहे हैं के हेज़बोल्लाह (Hezbollah) हमला कर देगा या सीरिया या ईरान (Syria And Iran), कोई सऊदी तुर्की वगैरह से क्यों नहीं डरता के वो भी हमला कर सकते हैं इजराइल पर ?
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तो उसका जवाब ये है के इजराइल (Israel) की मिडिल ईस्ट को लेकर सीधी सी नीति है के यहां शिया सुन्नी पॉलिटिक्स करते रहो, इजराइल सुन्नी देशों को हमेशा शिया देशों की ताकतों का डर दिखाता रहता है, और उसी बिनाह पर उनके साथ डिप्लोमेटिक सम्बन्ध भी बनाता जा रहा है,
शिया ताकतें आज मिडिल ईस्ट की एक डोमिनेटिंग हकीकत है सद्दाम के मरने के बाद से ही, और अरब सागर से ईरान से ये शुरू होती है और इराक होती हुई सीरिया (Syria)और लेबनान (lebanon) पहुँचती है, और इनकी ताकत का सबसे बड़ा आधार ये है कि ये एक contiguous एरिया है, यानी यहां आर्मी की मूवमेंट आसानी से हो सकती है, ये ब्लॉकेड कर सकते हैं कैसा भी,
जबकि ताकतवर सुन्नी मुस्लिम देश geographically बंटे हुए हैं।
इजराइल (Israel) ने कई सुन्नी देशों के साथ डिप्लोमेटिक रिलेशन्स बना लिए हैं और ताजा अभी सऊदी उसके टारगेट पर था जिनके साथ प्रक्रिया काफी आगे तक पहुँच चुकी थी, बाकायदा कागज़ों पर शर्तें थी के किन शर्तों पर डिप्लोमेटिक रिलेशन्स बनेंगे, इस हमले से ये प्रक्रिया थोड़े समय के लिए हाल्ट जरूरी हुई है लेकिन ये डिप्लोमेटिक रिलेशन्स बनके रहेंगे आज नहीं तो कल।
इजराइल (Israel) इस तरह से ना केवल वर्ल्ड पॉलिटिक्स में बना रहेगा, बल्कि एक ताकत के तौर पर, एक ऐसी ताकत जो मिडिल ईस्ट को खुद या इसके जरिये कोई कण्ट्रोल कर सकता है,
और आप ये देखो के फिलिस्तीन वाले बेचारे क्या ही नुक्सान कर पाते हैं इजराइल का इस सब फायदे के मुकाबले ? कुछ नहीं।
इसलिए इजराइल (Israel) ये मुद्दा ऐसे ही खड़ा रखेगा, ना वो फिलिस्तीन (Palestine) को ख़त्म करेगा और ना ही उन्हें उनका हक़ देगा, जब तक कि अमेरिका एक सुपरपावर रहेगी। अमेरिका का अंत भी अब बहुत ही क़रीब है रुस की बढ़ती ताकत इस ओर इशारा कर रही है।