
Supreme Court
नई दिल्ली (Shah Times): Supreme Court ने सोमवार को आशंका व्यक्त की कि उस पर विधायी और कार्यकारी डोमेन में “अतिक्रमण” करने के आरोप लग रहे हैं। न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही, जिसमें ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्मों को स्पष्ट सामग्री की स्ट्रीमिंग से रोकने के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि इस मामले में अदालत का अधिकार क्षेत्र सीमित हो सकता है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “यह या तो विधायिका के लिए है या कार्यपालिका के लिए। वैसे भी, हम विधायिका (और) कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। वैसे भी, हम नोटिस जारी करेंगे।” न्यायमूर्ति गवई को भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई जाएगी, क्योंकि वर्तमान शीर्ष न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को समाप्त हो रहा है।
न्यायपालिका बनाम केंद्र
तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ राज्य की डीएमके सरकार द्वारा लाए गए एक मामले में उनके खिलाफ़ फ़ैसला सुनाए जाने के बाद अदालत को आरोपों का सामना करने की चिंता है। शीर्ष अदालत ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को मंज़ूरी देने में अत्यधिक देरी के लिए आरएन रवि के खिलाफ़ अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया।
अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल की “असंवैधानिक” कार्रवाइयों के लिए कड़ी आलोचना की और कहा कि सभी राज्य विधेयकों को मंजूरी दे दी गई है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके ने सभी 10 विधेयकों को सरकारी राजपत्र के तहत कानून के रूप में अधिसूचित किया। यह मामला भारत के संघीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम था, जिसमें राज्य के विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बिना कानून बन गए।
इस घटनाक्रम से शीर्ष अदालत और कार्यपालिका के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल को “परमाणु मिसाइल” के रूप में बताया। राज्यसभा के सभापति ने भी अदालत की आलोचना करते हुए कहा कि वह “सुपर संसद” की तरह काम कर रही है।
धनखड़ के जवाब में विपक्षी नेताओं ने तीखी आलोचना की। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), डीएमके और प्रमुख कानूनी हस्तियों समेत कई दलों ने उपराष्ट्रपति पर न्यायपालिका को कमजोर करने और “अवमानना की हद तक” पहुंचने का आरोप लगाया।
ओटीटी पर याचिका
याचिकाकर्ताओं ने ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यौन रूप से स्पष्ट सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रीय सामग्री नियंत्रण प्राधिकरण के गठन के लिए दिशा-निर्देश मांगे थे।
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार को याचिका में उठाए गए मुद्दे पर कार्रवाई करनी चाहिए। मेहता ने अदालत को बताया कि इस संबंध में कुछ नियमन मौजूद हैं, जबकि अन्य पर विचार किया जा रहा है।
अदालत द्वारा केंद्र, ओटीटी प्लेटफॉर्म और एक्स कॉर्प, नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन, उल्लू डिजिटल, एएलटीबालाजी, एमयूबीआई, गूगल, ऐप्पल और मेटा सहित सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी करने का निर्देश देने के बाद याचिका को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया।