
खबरों और सोशल मीडिया पर नौकरी और गरीबी के तमाम मुद्दे मिल जाएँगे, लेकिन कोई भी व्यक्ति या खबर सरकार द्वारा गरीबों के हित में चलाई जाने वाली योजनाओं के बारे में कभी जिक्र नहीं करती है। लोग गरीबों को अन्न उपलब्ध कराने और उन्हें महँगाई की मार से बचाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का भरपूर लाभ ले रहे हैं, जिनमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, अंत्योदय अन्न योजना और उज्जवला योजना जैसे कई नाम शामिल हैं। इसके बावजूद, ये लोग सरकार की कमियों का पुलिंदा लिए चौराहों, नुक्क्ड़ों और चाय की गुमटियों पर बात करते मिल जाएँगे।
सरकार तो पर्याप्त नौकरियाँ दे रही है, लेकिन आज के युवा उन नौकरियों को पाने के लिए बनाए गए मापदंडों को पार कर पाने में सक्षम ही नहीं हैं।
बेरोजगारी एक ऐसा विषय बन गया है, जिसकी चर्चा बरसों से ज्यों की त्यों बनी रहती है, कम होने के बजाए उल्टा यह दिन-ब-दिन बढ़ती ही चली जा रही है। आज के समय में हर दूसरा व्यक्ति गरीबी और बेरोजगारी का रोना रोता रहता है, जिसे देखो वह सरकार को ही कोसता रहता है। देश में गरीबी खत्म करने के कई माध्यम भी हैं और ढेरों नौकरियाँ भी हैं। सरकार पर ऊँगली उठाने से लोगों का ध्यान हटे, तो इन पर नज़र जाए।
खबरों और सोशल मीडिया पर नौकरी और गरीबी के तमाम मुद्दे मिल जाएँगे, लेकिन कोई भी व्यक्ति या खबर सरकार द्वारा गरीबों के हित में चलाई जाने वाली योजनाओं के बारे में कभी जिक्र नहीं करती है। लोग गरीबों को अन्न उपलब्ध कराने और उन्हें महँगाई की मार से बचाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का भरपूर लाभ ले रहे हैं, जिनमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, अंत्योदय अन्न योजना और उज्जवला योजना जैसे कई नाम शामिल हैं। इसके बावजूद, ये लोग सरकार की कमियों का पुलिंदा लिए चौराहों, नुक्क्ड़ों और चाय की गुमटियों पर बात करते मिल जाएँगे।
यहाँ ‘जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं’ जैसी कहावत आज की जनता के लिए सटीक उदाहरण लग रही है। लोग बेरोजगारी को हथियार बनाकर सरकार पर वार करने में भी कहाँ पीछे रहते हैं? मैं सरकार को कोसने वाले इन लोगों से पूछना चाहता हूँ कि यदि देश में इतनी ही बेरोजगारी है, तो पिछले सात सालों में 7 लाख सरकारी नौकरियाँ किसे दी गई हैं? कौन हैं वे लोग? ये लोग वास्तव में चाहते क्या हैं, जो सरकार द्वारा प्रदान की गई नौकरियों को लेकर भी बेरोजगारी-बेरोजगारी का शोर मचाते हुए कभी थकते नहीं हैं।
बीते दिनों इंस्टाग्राम चला रहा था। उसमें क्या देखता हूँ कि एक मीडिया रिपोर्टर एक युवा लड़के का इंटरव्यू ले रही है। और वह लड़का बेरोजगारी के तमाम मुद्दे चिल्ला-चिल्ला कर बता रहा है, जिसकी वजह से उसके आस-पास खूब भीड़ इकठ्ठा हो रही है। पिता का पैसा पढ़ाई में बर्बाद हो गया, सरकार युवाओं के लिए कुछ नहीं कर रही है, हमारे लिए देश में कोई नौकरी नहीं है, देश में युवाओं का कोई स्थान नहीं है और भी न जाने क्या-क्या.. इतने में ही रिपोर्टर तेज आवाज़ में उससे लड़के से पूछती है कि आपने क्या पढ़ाई की है, जिसके जवाब में वह बड़े रुआब में कहता है कि एमबीए किया है मैंने, फिर भी बेरोजगार हूँ। वह फिर से अपनी गाथा गाना शुरू करे, उससे पहले ही वह रिपोर्टर उससे पूछ बैठती है कि एमबीए का फुल फॉर्म क्या है? आप यकीन नहीं मानेंगे कि चंद सेकंड पहले जिसके मुँह से भर-भरकर सरकार के लिए शिकायतें बरसे जा रही थीं, उस मुँह पर एकाएक ही ताला लग चुका था। उसने जिस विषय की पढ़ाई की थी, उसे उसका ही फुल फॉर्म नहीं पता था। अब आप देख लीजिए हालात.. इन युवाओं के सपने सरकारी दफ्तर में बैठने के हैं।
यदि मैं आँकड़ों की बात करू, तो देश में लगभग सभी राज्यों में लोकसभा चुनाव के पहले कई सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ की गई हैं। उत्तरप्रदेश इसका हालिया उदाहरण है, जहाँ 7720 युवाओं को लेखपाल पद पर, 8755 एएनएम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, 1442 स्टाफ नर्सों, 510 कनिष्क सहायकों, 278 सहायक आचार्यों, 242 सहायक बोरिंग टेक्नीशियंस, 199 समीक्षा अधिकारियों, 39 एसडीएम, 41 पुलिस उपाधीक्षकों और 16 कोषाधिकारियों आदि कई पदों पर नियुक्तियाँ की गई हैं।
ये आँकड़े उन लोगों के मुँह पर तमाचा है, जो यह कहते फिरते हैं कि सरकार युवाओं को नौकरियों के अवसर नहीं दे रही है। मुझे लगता है, यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार तो पर्याप्त नौकरियाँ दे रही है, लेकिन आज के युवा उन नौकरियों को पाने के लिए बनाए गए मापदंडों को पार कर पाने में सक्षम ही नहीं हैं। लेकिन लोगों को ये बात कहाँ समझ आती है, अपनी गलतियाँ भला किसे दिखती हैं? वे तो बस सरकार पर उँगलियाँ उठाना जानते हैं, और अपनी असफलताओं का दोष सरकार के माथे मढ़ देते हैं।
हकीकत में देखा जाए तो सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के कई अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन युवाओं को उन नौकरियों के लिए आवश्यक कौशल और योग्यता को प्राप्त करने के लिए मेहनत करने की जरूरत है। सरकार और विभिन्न संगठन द्वारा युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण देने जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बेरोजगार घूम रहे युवाओं को इन कार्यक्रमों का लाभ उठाकर नए कौशल सीखने का प्रयास करना चाहिए।
सरकार को दोष देने के बजाए, युवाओं को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए और उन मापदंडों को पूरा करने के लिए मेहनत करना चाहिए, जो सरकारी नौकरियों के लिए आवश्यक हैं। यह युवाओं पर निर्भर करता है कि वे सरकार द्वारा दिए जाने वाले अवसरों का लाभ कैसे उठाते हैं और किस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित करते हैं या फिर खुद की कमियों को नज़रअंदाज करके उल्टा सरकार को ही कोसते रहते हैं।
- -अतुल मलिकराम (लेखक एवं राजनीतिक रणनीतिकार)