
A heritage exchange fading into history, lit by its last Diwali lamps.
सीएसई का बंद होना: भारतीय वित्तीय इतिहास का नया मोड़
सेबी की मंज़ूरी के बाद इतिहास बना सीएसई, सवाल बाक़ी हैं
📍कोलकाता
🗓️ तारीख़: 19 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
117 साल पुराने Calcutta Stock Exchange (CSE) का सफ़र अपने अंतिम पड़ाव पर है। यह न सिर्फ़ एक संस्थान का बंद होना है, बल्कि भारत के वित्तीय सुधारों और नियामक ईमानदारी की कहानी भी है — जहाँ परम्परा, तकनीक और पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाना ही असली चुनौती बन गया।
कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज का आख़िरी दीया: एक युग का अंत या नयी शुरुआत?
कलकत्ता की शामें कभी शेयर-बाज़ार की घंटियों से गूंजती थीं। लालबाज़ार की गलियों में ट्रेडिंग-फ़्लोर की आवाज़ें, टेलीफ़ोन पर सौदे और पान की महक — यही था उस दौर का वित्तीय रंग। 1908 में जब Calcutta Stock Exchange की नींव रखी गयी, तब यह सिर्फ़ एक ट्रेडिंग-प्लेटफ़ॉर्म नहीं बल्कि पूर्वी भारत के आर्थिक आत्मविश्वास का प्रतीक था। पर अब वही इमारत अपनी आख़िरी काली पूजा और दिवाली की तैयारियों में है — शायद आख़िरी बार।
एक गौरवशाली शुरुआत
ब्रिटिश दौर में व्यापार का केंद्र रहा कोलकाता उस समय भारत का आर्थिक दिल था। CSE ने औद्योगिक घरानों, जूट-मिल मालिकों और बैंकरों को जोड़ने का मंच दिया। BSE और Bombay cotton exchange से टक्कर लेते हुए यह पूर्वी भारत का गर्व बन गया। 60 और 70 के दशक में ट्रेडिंग वॉल्यूम इतना तेज़ बढ़ा कि कई कंपनियाँ पहले कोलकाता में लिस्ट होतीं और फिर मुंबई।
घोटालों का साया
फिर आया 2001 का Ketan Parekh Scam। लगभग ₹120 करोड़ का यह घोटाला देश के कई एक्सचेंजों को हिलाकर रख गया। CSE में पेमेंट क्राइसिस पैदा हुआ, ब्रोकर्स सेटलमेंट पूरा नहीं कर पाए, और मार्केट से भरोसा उठने लगा। यहीं से शुरू हुआ पतन का सिलसिला।
“भरोसा टूटा तो निवेश ठहरा” — यह पंक्ति उस दौर की असली तस्वीर थी।
नियमों का उल्लंघन और SEBI की सख़्ती
अप्रैल 2013 में SEBI ने नियमों का पालन न करने पर CSE में ट्रेडिंग निलंबित की। एक्सचेंज ने अदालतों में चुनौती दी, पर क़ानूनी प्रक्रिया लंबी चलती रही। दस साल बाद, थके हुए चेहरों ने तय किया — अब सम्मानजनक निकास ही रास्ता है। अप्रैल 2025 में हुई असाधारण आमसभा (EGM) में शेयरधारकों ने voluntary exit को मंज़ूरी दी।
अब CSE एक Holding Company के रूप में काम करेगा, जबकि उसकी सहायक CSE Capital Markets Pvt Ltd. (NSE और BSE की सदस्य) ब्रोकिंग जारी रखेगी।
वित्तीय पुनर्गठन और संपत्ति विक्रय
ईएम बाईपास स्थित तीन एकड़ ज़मीन Srijan Group को ₹253 करोड़ में बेचने का प्रस्ताव SEBI ने मंज़ूर किया है। यह डील CSE के लिए एक प्रतीकात्मक exit स्ट्रेटेजी भी है — आर्थिक तरलता बनाए रखने के लिए विरासत का एक हिस्सा बेचना पड़ा।
क्या यह अंत है या परिवर्तन?
यह प्रश्न हर वित्तीय पत्रकार, निवेशक और नियामक के मन में है। क्या यह closure भारत के पूँजी बाज़ार के विकास की कीमत है, या पुराने ढाँचे की स्वाभाविक evolution?
नया भारत अब algorithmic trading, AI monitoring और real-time reporting की दुनिया में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में CSE जैसे legacy institutions का धीरे-धीरे अलविदा कहना शायद अपरिहार्य था।
लेकिन सवाल यह भी उठता है — क्या हमने विरासत को संभाला या सिर्फ़ गति के लिए इतिहास भुला दिया?
उद्योग-नियमन और विश्वास की कमी
भारत में वित्तीय संस्थाओं का सबसे बड़ा मुद्दा सिर्फ़ नियम नहीं, बल्कि execution of regulation है। SEBI ने अक्सर बड़ी संकट स्थितियों में निर्णायक कदम लिए हैं, पर उसके बाद संरचनात्मक सुधारों की गति धीमी रही।
CSE का केस यही दिखाता है कि जब नियामक सिस्टम में लचीलापन न हो तो विरासत संस्थाएँ ठहर जाती हैं।
दूसरी तरफ़: एक नया पाठ
CSE का बंद होना सिर्फ़ हानि नहीं, सीख भी है। भारत का पूँजी बाज़ार अब विश्वस्तरीय मानकों की तरफ़ बढ़ रहा है, जहाँ पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी मुख्य भूमिका निभा रही हैं। यदि हम CSE के इतिहास से सीखें तो हर छोटा एक्सचेंज भी अपने governance framework को मज़बूत बना सकता है।
सांस्कृतिक पहलू
कोलकाता के लिए CSE सिर्फ़ एक बिल्डिंग नहीं था। यहाँ के लोगों की रगों में थी वित्तीय बातें, सांस्कृतिक संवाद, और उस ‘बंगाली बुद्धिजीवी’ भावना की खुशबू जो हर सौदे को विचार में बदल देती थी। अब जब यह बाज़ार बंद हो रहा है, तो शहर के लोग उसे एक ‘सांस्कृतिक संस्थान’ की तरह याद कर रहे हैं — जैसे कोई पुराना थिएटर या कॉफ़ी हाउस।
Alternative View: Reform versus Respect
एक मत यह भी है कि CSE जैसे संस्थानों को सरकार को ‘Heritage Financial Museum’ के रूप में संरक्षित करना चाहिए। जब हम रेलवे की पुरानी इंजनें संभाल सकते हैं, तो वित्तीय इतिहास के ऐसे प्रतीक क्यों नहीं?
दूसरा मत कहता है — प्रगति को भावनाओं से नहीं रोक सकते। बाज़ार वो जगह है जहाँ भावनाएँ नहीं, संतुलन चलता है। और अगर नया भारत वर्ल्ड-क्लास एक्सचेंज बनाना चाहता है, तो पुराने ढाँचे को सम्मान से विदा देना ही सही होगा।
दीपावली का अर्थ
इस साल जब CSE के गलियारे में आख़िरी दीपक जलेगा, तो वो सिर्फ़ रौशनी नहीं बल्कि यादों का दीया होगा। वित्तीय इतिहास के इस अध्याय का अंत हो रहा है, लेकिन इसके पन्नों में सीख लिखी है — कि किसी भी बाज़ार की जान उसका विश्वास है। और जब वो विश्वास टूटता है, तो सबसे मजबूत इमारत भी ढह जाती है।
CSE का बंद होना एक ‘क्लोज़र’ नहीं बल्कि ‘ट्रांज़िशन’ है — एक पुरानी आर्थिक सोच से नई डिजिटल वित्तीय दुनिया की तरफ़।




