
Security personnel patrol Murshidabad after violent protests against Waqf Law Amendment
मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर हुई हिंसा में 3 की मौत, 150 गिरफ्तार। BJP सांसद ने केंद्र से AFSPA की मांग की। जानिए पूरी घटना और इसके राजनीतिक मायने।
भूमिका: कानून के विरोध में हिंसा या राजनीति की नई चिंगारी?
पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला इन दिनों वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर भड़की हिंसा के चलते चर्चा में है। बीते दिनों की घटनाएं न सिर्फ राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच बढ़ते टकराव का संकेत भी देती हैं। इस मुद्दे ने न केवल सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी गहरा कर दिया है।
क्या है वक्फ (संशोधन) अधिनियम और क्यों भड़की हिंसा?
वक्फ अधिनियम में हालिया संशोधनों को लेकर मुस्लिम बहुल इलाकों में व्यापक असंतोष देखा गया। लोगों का आरोप है कि यह संशोधन समुदाय की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान पर चोट है। शुक्रवार को इसी असंतोष ने हिंसक रूप ले लिया जब मुर्शिदाबाद समेत कई जिलों में विरोध प्रदर्शन उग्र हो गया।
हिंसा के दौरान पुलिस वैन को आग के हवाले किया गया, सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी की गई और सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया। सबसे चौंकाने वाली घटना शमशेरगंज के जाफराबाद की रही, जहां हरगोबिंदो दास और उनके बेटे चंदन दास की निर्मम हत्या कर दी गई। पुलिस के अनुसार, यह सुनियोजित हमला प्रतीत होता है।
BJP का गंभीर आरोप और केंद्र से AFSPA की मांग
भारतीय जनता पार्टी के पुरुलिया से सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर मुर्शिदाबाद, मालदा, नदिया और दक्षिण 24 परगना जैसे सीमावर्ती जिलों में AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) लागू करने की मांग की है।
उनका दावा है कि इन इलाकों में हिन्दू समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है और राज्य सरकार तुष्टिकरण की नीति के तहत आंखें मूंदे बैठी है। उन्होंने आरोप लगाया कि झाउबोना गांव में पान के बागानों को आग के हवाले किया गया और हिंदुओं के मकान व दुकानें जलाकर तबाह कर दी गईं।
मुर्शिदाबाद में पुलिस फायरिंग: 15 साल में पहली बार
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने 15 साल बाद पहली बार भीड़ पर गोलियां चलाईं। ADG जावेद शमीम ने खुद स्वीकार किया कि भीड़ हिंसक हो चुकी थी, पुलिस बलों पर हमले हो रहे थे और लाठीचार्ज व आंसू गैस भी विफल हो चुके थे। इसके चलते पुलिस को चार राउंड फायरिंग करनी पड़ी।
इससे पहले 2011 और 2012 में भी पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई थीं, लेकिन उन मामलों में पुलिस अधिकारियों को सजा और तबादले का सामना करना पड़ा था। इस बार सरकार खुलकर पुलिस के साथ खड़ी नजर आ रही है।
स्थिति नियंत्रण में, लेकिन चिंता बरकरार
पुलिस का दावा है कि वर्तमान में स्थिति नियंत्रण में है। सुती, धुलियान, शमशेरगंज और जंगीपुर जैसे संवेदनशील इलाकों में गश्त तेज कर दी गई है। अब तक कुल 150 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और BNSS की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू है। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं ताकि अफवाहों पर अंकुश लगाया जा सके।
हालांकि तनाव अभी भी बना हुआ है और लोगों में भय का माहौल व्याप्त है। खासकर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी होती नजर आ रही है।
राजनीतिक विश्लेषण: क्या बंगाल में भी ‘कश्मीरी पलायन’ की आशंका?
BJP सांसद की ओर से 1990 में हुए कश्मीरी पंडितों के पलायन की तुलना मुर्शिदाबाद की स्थिति से करना न सिर्फ गंभीर चिंता का विषय है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि राजनीतिक विमर्श अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अगर राज्य सरकार और केंद्र सरकार साथ मिलकर इस मसले का हल नहीं निकालती, तो आने वाले दिनों में स्थिति और विकराल हो सकती है।
कानून व्यवस्था और सामाजिक संतुलन—दोनों की अग्निपरीक्षा
वक्फ कानून को लेकर भड़की हिंसा ने साफ कर दिया है कि सरकारों को कानून बनाते समय संवेदनशीलता और संवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए। केवल पुलिस फोर्स और गिरफ्तारियों से असंतोष का हल नहीं निकलता। जरूरत है एक ऐसे बहुपक्षीय संवाद की, जहां राज्य, केंद्र, धार्मिक संगठनों और नागरिक समाज की जिम्मेदारी समान हो।
मुर्शिदाबाद की घटना हमें यह याद दिलाती है कि जब कानून लोगों को समझाया नहीं जाता, तो उसकी प्रतिक्रिया सड़कों पर हिंसा बनकर उतरती है।