
भारत में चाट पकौड़ी बहुत प्रसिद्ध है। शायद ही ऐसा कोई होगा जो चाट पकौड़ी खाना पसंद नहीं करता। लेकिन क्या कभी आपने गौर किया है कि चाट-पकौड़ी के ठेले पर हमेशा लाल रंग का कपड़ा ही क्यों लगा होता है।
नई दिल्ली (Shah Times): भारत में चाट पकौड़ी बहुत प्रसिद्ध है। शायद ही ऐसा कोई होगा जो चाट पकौड़ी खाना पसंद नहीं करता। लेकिन क्या कभी आपने गौर किया है कि चाट-पकौड़ी के ठेले पर हमेशा लाल रंग का कपड़ा ही क्यों लगा होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह रंगीन कपड़ा सिर्फ सजावट का काम नहीं करता बल्कि इसके पीछे एक दिलचस्प वैज्ञानिक कारण और एक प्राचीन रीति-रिवाज भी जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं क्या है इस लाल कपड़े का रहस्य?
बहुत से लोग खाने के शौकीन होते हैं और खासकर फास्ट फूड या बाहर के चाट-पकौड़े तो समझो इनकी जान ही होते हैं। जब भी बाजार जाने का मौका मिलता है तो ये चाट पकोड़े का स्वाद लेने से खुद को रोक नहीं पाते। आपने भी कभी खाने-पीने की कई ठेले या दुकानों पर एक बात कॉमन होती है, ओर वो है लाल रंग का कपड़ा। चाहे चाट-पापड़ी हो या शिकंजी, इन सभी पर लाल कपड़ा ढका हुआ होता है। ऐसे में क्या कभी आपने सोचा है कि इन दुकानों पर लाल कपड़ा ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है और रंग का कपड़ा क्यों इस्तेमाल नहीं करते। चलिए जानते हैं क्या है इसके पीछे का रहस्य?…
ठेले पर क्यों ढका जाता है लाल कपड़ा?
दरअसल, चाट-पकौड़ी के ठेले पर लाल रंग का कपड़ा लगाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। लाल रंग एक ऐसा रंग है जो दूर से भी आसानी से दिखाई देता है। यह रंग काफी चटकीला होता है और लोगों का ध्यान अपनी ओर बहुत जल्दी खींच लेता है। यही वजह है कि ठेले वाले अपने सामान को लाल रंग के कपड़े से ढकते हैं ताकि लोगों की नजरें उनकी ओर खिंचें और वे उनके पास आकर कुछ खरीदें।
क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण?
बता दें कि सूरज की रोशनी कई रंगों से मिलकर बनी होती है, जैसे इंद्रधनुष में। इन रंगों में से लाल रंग की रोशनी सबसे ज्यादा मजबूत होती है और सबसे दूर तक जा सकती है। इसका कारण यह है कि लाल रंग की रोशनी की तरंगें सबसे बड़ी होती हैं। जब आसपास धुंध या कोहरा होता है, तब भी लाल रंग की रोशनी हमें साफ दिखाई देती है। इसलिए खतरे के निशान लाल रंग के बनाए जाते हैं ताकि वे दूर से ही दिखाई दें और हम खतरे से बच सकें।
मुगल काल से भी जुड़ा है इतिहास
लाल कपड़ा इस्तेमाल करने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण तो है, लेकिन इसके अलावा एक और दिलचस्प कहानी भी है। कहते हैं कि मुगल बादशाह हुमायूं के समय में दरबार में ऐसा रिवाज था कि खाने के बर्तनों को लाल कपड़े से ढका जाता था। यह रिवाज हुमायूं के शासनकाल से शुरू हुआ था और आज भी कई जगहों पर इसे देखा जा सकता है।