
Moroccan King enforces Qurbani ban on Eid al-Adha amid drought crisis — Shah Times Exclusive
मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक: धार्मिक स्वतंत्रता बनाम पर्यावरणीय संकट
मोरक्को सरकार ने इस साल बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाई है। सूखे, पर्यावरणीय संकट और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच यह फैसला क्या दर्शाता है? पढ़ें विश्लेषणात्मक संपादकीय।
🕌 बकरीद का पर्व और कुर्बानी का महत्व
इस्लाम धर्म के सबसे अहम त्योहारों में से एक ईद-उल-अजहा या बकरीद केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस दिन मुसलमान हज़रत इब्राहीम की कुर्बानी की परंपरा को याद करते हैं, जिन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। इस्लामी मान्यता के अनुसार, उस घटना की याद में जानवर की कुर्बानी देना एक धार्मिक कर्तव्य है।
लेकिन इस बार उत्तर अफ्रीका के प्रमुख मुस्लिम देश मोरक्को में इस परंपरा पर एक अभूतपूर्व रोक लगाई गई है, जो न केवल देश में बल्कि समूचे मुस्लिम जगत में बहस का कारण बन गई है।
🇲🇦 मोरक्को सरकार का आदेश: कुर्बानी पर रोक
राजा मोहम्मद VI के निर्देशानुसार मोरक्को सरकार ने भीषण सूखे और गिरते पशुधन की स्थिति को देखते हुए 2025 की बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार ने आदेश जारी किया कि कोई भी नागरिक कुर्बानी नहीं देगा, और इसके लिए बकरों, भेड़ों और अन्य जानवरों की बिक्री या छिपाकर रखने पर कार्रवाई की जाएगी।
पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा घरों में घुसकर जानवरों को जब्त करने के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिससे जनता के बीच गुस्सा और असंतोष फैल गया है।
🧭 धार्मिक स्वतंत्रता बनाम पर्यावरणीय विवेक
मोरक्को सरकार के इस निर्णय ने एक मूलभूत सवाल खड़ा कर दिया है: क्या किसी लोकतांत्रिक सरकार को धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक लगाने का अधिकार है?
सरकार का कहना है कि यह फैसला देश के पर्यावरण और पशुधन की रक्षा के लिए आवश्यक था। 6 साल से लगातार जारी सूखे ने मोरक्को की कृषि और पशुपालन अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचाया है। चारे की भारी कमी और पशुओं की गिरती संख्या को देखते हुए सरकार का कहना है कि कुर्बानी की अनुमति देना पर्यावरण के लिए आत्मघाती हो सकता था।
लेकिन आलोचकों का मानना है कि धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला, एक खतरनाक उदाहरण पेश करता है। यह निर्णय धार्मिक भावनाओं को आहत करने के साथ-साथ सरकारी अति-हस्तक्षेप की मिसाल बन गया है।
📣 जनता का विरोध और वैश्विक प्रतिक्रिया
मोरक्को की सड़कों पर लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जनता का कहना है कि यह फैसला उनकी धार्मिक मान्यताओं के अपमान के बराबर है। इसके अलावा कई मुस्लिम देशों के मौलवियों और धार्मिक संगठनों ने भी राजा मोहम्मद VI से फैसला वापस लेने की अपील की है।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला केवल धार्मिक या पर्यावरणीय कारणों से नहीं, बल्कि सरकार की अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए लिया गया है।
🐾 दोहरे मानदंड? जानवरों की रक्षा या राजनीतिक छवि चमकाना
एक और विवाद इस फैसले के साथ जुड़ गया है। कुछ महीने पहले ही मोरक्को सरकार ने 2030 फीफा वर्ल्ड कप की तैयारियों के तहत 30 लाख आवारा कुत्तों को मारने की योजना बनाई थी। इस कदम की अंतरराष्ट्रीय आलोचना हुई थी, और अब जब कुर्बानी पर रोक का हवाला देकर सरकार “पशु प्रेम” दर्शा रही है, तो इसे पाखंड और राजनीतिक नौटंकी कहा जा रहा है।
🌐 अंतरराष्ट्रीय मंच पर मोरक्को की छवि
मोरक्को हमेशा से मॉडरेट इस्लामिक स्टेट के रूप में अपनी छवि को प्रोजेक्ट करता आया है। लेकिन यह कदम उसकी धार्मिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण पर सवाल खड़े कर रहा है। जब एक सरकार धार्मिक परंपराओं पर आदेशात्मक रूप से रोक लगाती है, तो वह केवल आंतरिक असंतोष ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आलोचना का भी शिकार बन जाती है।
✍️ निष्कर्ष: रास्ता संतुलन का है, टकराव का नहीं
मोरक्को में कुर्बानी पर रोक एक जटिल बहस को जन्म देता है — धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक ज़िम्मेदारी। पर्यावरणीय संकट निश्चित रूप से चिंता का विषय है, लेकिन इसका हल धार्मिक परंपराओं को रौंदकर नहीं, बल्कि जन संवाद, संवेदनशील नीति निर्माण और वैकल्पिक समाधानों के जरिए निकाला जाना चाहिए।
राजा मोहम्मद VI और उनकी सरकार को यह समझना होगा कि धार्मिक आस्था के साथ संवाद, केवल आदेश से कहीं अधिक प्रभावी और सम्मानजनक तरीका है।
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