
Ashoka University professor Ali Khan Mahmudabad arrested for controversial remarks on Operation Sindoor; debate on free speech and nationalism reignites – Shah Times
राष्ट्र का अपमान नहीं सहा जाएगा – ऑपरेशन सिंदूर और अली खान की गिरफ़्तारी की गूंज
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय महिला सैन्य अधिकारियों को ‘दिखावा’ कहने वाले प्रो. अली खान की गिरफ्तारी पर गहराई से विश्लेषण। जानिए क्यों यह अभिव्यक्ति की सीमा नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी मानसिकता का मामला है।
भारतीय सेना ने आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक और साहसिक कार्रवाई — ‘ऑपरेशन सिंदूर’ — को अंजाम दिया। यह ऑपरेशन न सिर्फ सैन्य शक्ति का परिचायक था, बल्कि भारत की बेटियों की भूमिका ने इसे गौरव का प्रतीक बना दिया। लेकिन जिस तरह से अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने इस ऐतिहासिक ऑपरेशन को “दिखावा” और “पाखंड” कहा, वह चिंता, आक्रोश और राष्ट्रवाद की एक नई बहस का विषय बन गया।
ऑपरेशन सिंदूर: राष्ट्रीय सुरक्षा की निर्णायक कार्रवाई
6 मई की रात भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकियों के ठिकानों पर सटीक हमला किया। यह हमला 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जवाब था। इस कार्रवाई का उद्देश्य था — भारत की संप्रभुता पर हमले का मुँहतोड़ जवाब देना।
इस ऑपरेशन की विशेषता यह रही कि कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी महिला अधिकारी इसमें रणनीतिक रूप से शामिल थीं। यह भारत में नारी शक्ति और सेना में महिला सशक्तिकरण का ऐतिहासिक प्रतीक था।
प्रो. अली खान की टिप्पणी: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या राष्ट्र अपमान?
प्रोफेसर अली खान ने सोशल मीडिया पर जो टिप्पणी की, वह केवल ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार तक सीमित नहीं थी। उन्होंने न सिर्फ ऑपरेशन को “दिखावटी” कहा, बल्कि भारत की महिला सैन्य अधिकारियों के योगदान को भी संदेह के घेरे में ला दिया। उनकी टिप्पणी में प्रयुक्त शब्द – “पाखंड”, “मनमाना नरसंहार”, और “दिखावा” – ये भाषा शुद्ध रूप से निंदनीय और राष्ट्रविरोधी विचारधारा से प्रेरित प्रतीत होती है।
कानूनी और सामाजिक प्रतिक्रियाएं:
- भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी की शिकायत पर अली खान को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया।
- हरियाणा राज्य महिला आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रोफेसर को नोटिस भेजा और उनके शब्दों को भारतीय सेना की महिला अधिकारियों के अपमान के रूप में देखा।
- अशोका विश्वविद्यालय ने एक सतर्क बयान देते हुए कहा कि वह पुलिस के साथ सहयोग करेगा और मामले की जांच कर रहा है।
इतिहास और वैचारिक पृष्ठभूमि: क्या यह सिर्फ संयोग है?
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद एक ऐसे परिवार से आते हैं जिनके पूर्वज राजा महमूदाबाद भारत विभाजन के समय मोहम्मद अली जिन्ना के निकट सहयोगी और मुस्लिम लीग के कोषाध्यक्ष थे। उन्होंने पाकिस्तान बनने के बाद वहां जाकर अपनी संपत्ति तक दान कर दी थी। यह पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रोफेसर के वर्तमान विचारों पर सवाल खड़े करती है — क्या यह सिर्फ वैचारिक मतभेद है या पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही राष्ट्र-विरोधी प्रवृत्ति?
क्या शिक्षक का यह कर्तव्य है?
विश्वविद्यालय और प्रोफेसर राष्ट्र निर्माण की नींव हैं। ऐसे में यदि कोई शिक्षक सेना, महिला अधिकारी और सरकार की निर्णायक कार्यवाही को “ढोंग” बताए, तो यह शिक्षण संस्था की नैतिक और वैचारिक जिम्मेदारी पर सवाल है।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया: जन आक्रोश का विस्फोट
प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
- “पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना के करीबी आज भी भारत के विश्वविद्यालयों में कैसे मौजूद हैं?”
- “नकली विचारधारा के नाम पर देश के गद्दारों को पनाह देना बंद हो!”
- “भारत के अंदर बैठी विचारधारा की लड़ाई अब निर्णायक होनी चाहिए।”
निष्कर्ष: अभिव्यक्ति की नहीं, मानसिकता की सीमा तय होनी चाहिए
भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहाँ असहमति स्वीकार्य है। लेकिन सेना, राष्ट्र की अखंडता और देशभक्ति को अपमानित करने की छूट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में नहीं आती। प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी सिर्फ कानून का पालन नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाने का संकेत है कि राष्ट्र सबसे पहले है।
ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी मामले में प्रो. अली खान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को मंजूरी
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रो. अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की सहमति दी है। प्रो. महमूदाबाद पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर टिप्पणी के चलते देश की अखंडता को खतरे में डालने का आरोप है।
सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है, जिसमें उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सोशल मीडिया टिप्पणी को लेकर हरियाणा पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी को चुनौती दी है। यह सुनवाई 20 या 21 मई को हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा, “उन्हें देशभक्तिपूर्ण बयान के लिए गिरफ्तार किया गया है।” अदालत ने इसे प्राथमिकता पर सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
प्रो. महमूदाबाद, जो अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं, को हरियाणा पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार किया था। उन पर दो अलग-अलग FIR दर्ज होने के बाद दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया। आरोप है कि उनकी टिप्पणियाँ भारत की संप्रभुता, एकता और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका को लेकर अपमानजनक थीं।
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी उनके बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियाँ महिला अधिकारियों, विशेषकर कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के प्रति अपमानजनक हैं और इससे सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ सकता है। आयोग ने 2 मई को उन्हें सम्मन जारी किया था।
प्रो. महमूदाबाद ने अपने बचाव में कहा कि उनके बयानों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा, “मैं खुश हूं कि दक्षिणपंथी लोग कर्नल कुरैशी की प्रशंसा कर रहे हैं, पर उन्हें उतनी ही आवाज़ में मॉब लिंचिंग, बुलडोज़र राजनीति और नफरत का शिकार बने अन्य नागरिकों की भी सुरक्षा की मांग करनी चाहिए।”
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