
GENIUS Act या Self-Benefit? ट्रंप की नई आर्थिक चाल
डोनाल्ड ट्रंप, $80k बिटकॉइन और ‘GENIUS Act’: डिजिटल क्रांति या निजी मुनाफ़े का खेल?
📍Washington DC 🗓️ 20 अक्टूबर 2025
✍️ Asif Khan
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में पास हुआ GENIUS Act स्टेबलकॉइन को सरकारी मान्यता देता है। लेकिन इस क़ानून के पीछे की राजनीतिक सच्चाई, ट्रंप परिवार के निजी हितों से जुड़ाव, और डॉलर की वैश्विक राजनीति पर इसके असर को लेकर सवाल उठने लगे हैं। क्या यह डिजिटल क्रांति है या निजी लाभ का खेल? यही इस संपादकीय विश्लेषण का मूल प्रश्न है।
🌐 अजूबा, उत्साह और $80,000 का ख़्वाब
अमेरिकी सियासत और क्रिप्टोकरेंसी का रिश्ता हमेशा पेचीदा रहा है। लेकिन जब डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने, तो यह रिश्ता और भी दिलचस्प मोड़ पर आ गया।
उनकी जीत की ख़बर आते ही बिटकॉइन की क़ीमत 80 हज़ार डॉलर यानी क़रीब 67 लाख रुपए से ऊपर चली गई। यह सिर्फ़ एक आर्थिक घटना नहीं थी — बल्कि क्रिप्टो जगत का यह ऐलान था कि “अब अमेरिका डिजिटल संपत्तियों को सरकारी वरदान देने वाला है।”
ट्रंप प्रशासन का जवाब आया GENIUS Act के रूप में — Generating Economic New Investment and Unified Stablecoin Act, जिसे जुलाई 2025 में पास किया गया। इसका लक्ष्य था अमेरिका को डिजिटल करेंसी की दुनिया में सुपरपावर बनाना और स्टेबलकॉइन के लिए एक सरकारी ढाँचा तैयार करना।
लेकिन सवाल यह है: क्या यह सब वित्तीय नवाचार है, या एक राजनीतिक व्यापार?
⚖️ GENIUS Act: Regulation या Revolution?
GENIUS Act ने स्टेबलकॉइन को वैधता देने का वादा किया। यह पहली बार था जब अमेरिका ने डिजिटल संपत्तियों के लिए इतना व्यापक कानून पास किया।
इस कानून के तीन बड़े स्तंभ हैं — 100% रिज़र्व, ग्राहक सुरक्षा, और मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक।
💰 100% रिज़र्व का भरोसा
हर स्टेबलकॉइन जारीकर्ता को अपने पास उतना ही डॉलर या अमेरिकी ट्रेजरी बिल रखना होगा जितना मूल्य के टोकन वो जारी कर रहे हैं।
मान लीजिए किसी कंपनी ने 1 अरब डॉलर के स्टेबलकॉइन बनाए, तो उसके पास 1 अरब डॉलर की वैल्यू का रिज़र्व होना अनिवार्य है।
यह नियम डिजिटल अर्थव्यवस्था में वही भरोसा पैदा करता है जो एक आम नागरिक बैंक में पैसा जमा करते समय महसूस करता है।
🛡️ ग्राहक सुरक्षा
अगर कोई कंपनी दिवालिया हो जाए तो पहले स्टेबलकॉइन धारकों का पैसा लौटाया जाएगा।
क़ानून यह भी कहता है कि स्टेबलकॉइन पर ब्याज या यील्ड नहीं दिया जाएगा, ताकि इन्हें निवेश नहीं बल्कि भुगतान माध्यम माना जाए।
यह एक तरह से क्रिप्टो की बेतहाशा सट्टेबाज़ी को रोकने की कोशिश है।
🚨 मनी लॉन्ड्रिंग और नियंत्रण
स्टेबलकॉइन कंपनियों को अब बैंक सीक्रेसी एक्ट के दायरे में लाया गया है। उन्हें KYC करना होगा, AML नियम मानने होंगे, और सरकार के कहने पर डिजिटल संपत्ति को Freeze या Burn करने की क्षमता रखनी होगी।
यानी, अगर ज़रूरत पड़ी तो सरकार आपका डिजिटल पैसा रोक भी सकती है।
यह कदम सुरक्षा के लिहाज़ से ठीक है, मगर यह क्रिप्टो की विकेंद्रीकृत आत्मा के ख़िलाफ़ भी जाता है।
💵 डॉलर की नई सवारी: डिजिटल प्रभुत्व का खेल
GENIUS Act सिर्फ़ वित्तीय नीति नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक रणनीति है।
स्टेबलकॉइन रिज़र्व का ज़्यादातर हिस्सा डॉलर और ट्रेजरी बिलों में रखा जाएगा — इससे डॉलर की वैश्विक माँग और बढ़ेगी।
दुनिया भर के यूज़र्स अब अमेरिकी डॉलर में डिजिटल रूप से लेनदेन कर सकेंगे।
यह कदम डॉलर को एक डेटा और पेमेंट नेटवर्क की तरह सशक्त बनाता है।
लेकिन इसी बीच ट्रंप प्रशासन ने एक और विवादास्पद फ़ैसला लिया — CBDC (Central Bank Digital Currency) पर प्रतिबंध।
ट्रंप का तर्क है कि CBDC से सरकार को नागरिकों की निजी खरीद-फरोख़्त की निगरानी का अधिकार मिल जाएगा।
इसलिए उन्होंने कहा, “Private sector को innovate करने दो।”
पर आलोचक पूछते हैं — क्या यह निजी कंपनियों के हाथ में बहुत ज़्यादा ताक़त नहीं दे देता?
🕵️ नफ़ा, नुकसान और नक़ाब के पीछे का सच
अब आता है वह हिस्सा जो इस कहानी को नैतिक और राजनीतिक बना देता है।
GENIUS Act के पास होते ही ट्रंप परिवार से जुड़ी कंपनियों के नाम सामने आने लगे।
🪙 World Liberty Financial (USD1–)
राष्ट्रपति ट्रंप के परिवार से जुड़ी इस फर्म ने USD1- नाम से अपना स्टेबलकॉइन लॉन्च किया।
UAE के एक निवेश फ़ंड ने इसमें $2 बिलियन का निवेश किया — ठीक उसी वक़्त जब GENIUS Act को राष्ट्रपति ने साइन किया।
क्या यह महज़ संयोग है?
कानूनी तौर पर हाँ, मगर नैतिक रूप से नहीं।
क्योंकि वही क़ानून जिसने स्टेबलकॉइन को वैध बनाया, अब राष्ट्रपति के परिवार के कारोबार को अरबों डॉलर का फ़ायदा पहुँचा रहा है।
💎 $TRUMP Memecoin
डोनाल्ड ट्रंप ने खुद भी डिजिटल संपत्तियों को प्रमोट किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पास मौजूद $TRUMP Memecoin से उन्हें $350 मिलियन का निजी लाभ हुआ।
एक सिटिंग प्रेसीडेंट द्वारा बाजार को प्रभावित करने वाली संपत्ति का प्रचार करना — यह हितों के टकराव का क्लासिक उदाहरण है।
🇨🇳 चीन की Bitmain और “Sweetheart Deal”
एरिक ट्रंप, जो American Bitcoin Corporation के सह-संस्थापक हैं, ने चीनी कंपनी Bitmain के साथ एक विशेष अनुबंध किया है।
यह डील उन्हें “preferential terms” देती है — यानी ऐसे फायदे जो सामान्य कंपनियों को नहीं मिलते।
Bitmain, जिस पर पहले ही अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों की नज़र रही है, अब ट्रंप परिवार की फर्म को करोड़ों डॉलर के माइनिंग उपकरण बेहद आसान शर्तों पर दे रही है।
क्या यह व्यापार है या प्रभाव का खेल?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह “Sweetheart Deal” संभवतः अमेरिकी नीति पर चीन के अप्रत्यक्ष प्रभाव का रास्ता खोल सकती है।
💣 वित्तीय जोखिम और दोहरी प्रणाली का डर
GENIUS Act से अमेरिकी ट्रेजरी मार्केट को नया प्रोत्साहन मिला, लेकिन साथ ही अस्थिरता का ख़तरा भी।
अगर लोग बड़े पैमाने पर अपने स्टेबलकॉइन डॉलर में बदलने लगें, तो कंपनियाँ अपनी ट्रेजरी बिल बेचने को मजबूर होंगी।
इससे अमेरिकी ट्रेजरी मार्केट में झटके लग सकते हैं — जैसा कि 2008 की मंदी में देखा गया था।
साथ ही, यह क़ानून स्टेबलकॉइन जारीकर्ताओं को बैंकों जैसी पूंजी आवश्यकताओं से कुछ हद तक मुक्त रखता है।
फ़ेडरल रिज़र्व के कुछ अधिकारियों का कहना है कि यह “दोहरी विनियामक प्रणाली” बना देगा — जहाँ कंपनियाँ कम नियमों के साथ ज़्यादा जोखिम लेंगी।
🏛️ सियासी संघर्ष और पारदर्शिता की माँग
डेमोक्रेट्स ने इस कानून पर खुलकर सवाल उठाए।
उनका कहना था कि यह बिल राष्ट्रपति को निजी लाभ पहुंचाने के लिए जल्दबाज़ी में पास किया गया।
इसके जवाब में उन्होंने COIN Act (Curbing Officials’ Income and Nondisclosure) पेश किया, जो सार्वजनिक अधिकारियों और उनके परिवार को डिजिटल संपत्ति से जुड़े प्रचार और निवेश से रोकता है।
यह बहस अब अमेरिका की वित्तीय नीति से आगे बढ़कर राजनीतिक नैतिकता की लड़ाई बन चुकी है।
🔍 निष्कर्ष: नवाचार बनाम नैतिकता
GENIUS Act को एक तकनीकी मील का पत्थर कहा जा सकता है —
यह ग्राहकों को सुरक्षा देता है, डिजिटल अर्थव्यवस्था को स्थिरता देता है, और डॉलर के प्रभुत्व को नया आधार।
मगर साथ ही यह सवाल भी छोड़ता है कि क्या सत्ता में बैठे लोग इस तकनीकी क्रांति का इस्तेमाल जनहित के लिए करेंगे या निजी लाभ के लिए?
डोनाल्ड ट्रंप की डिजिटल नीतियाँ आधुनिक अमेरिका की दिशा तय करेंगी —
लेकिन जब तक पारदर्शिता और जवाबदेही की गारंटी नहीं होगी, तब तक हर ‘क्रांति’ में शक की गंध बनी रहेगी।
यह वक़्त नवाचार का है, पर यह वक़्त नैतिक ईमानदारी का भी है।
क्रिप्टो की चमक के पीछे का सच यही सिखाता है —
“Technology can’t fix morality; leadership must.”






