
PM Modi and Rahul Gandhi face off over India's response to terrorism and Pakistan trust issue – Shah Times Report
“आतंकवाद पर भरोसे की राजनीति या राष्ट्रहित का संघर्ष? राहुल बनाम मोदी का राजनीतिक वार”
राहुल गांधी ने पीएम मोदी से तीखे सवाल पूछे—क्या पाकिस्तान पर भरोसा करना भारत के सम्मान से समझौता है? बीकानेर रैली में मोदी के सिंदूर और बदले की भाषा का विश्लेषण।
भारत के राजनीतिक परिदृश्य में जब चुनावी सरगर्मी चरम पर हो, तब हर बयान केवल शब्द नहीं, बल्कि रणनीति और संदेश बन जाता है। गुरुवार शाम कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान पर कड़ा हमला बोला। X (पूर्व ट्विटर) पर साझा किए गए पोस्ट में राहुल ने सीधे तीन तीखे सवाल उठाए: आतंकवाद पर पाकिस्तान की बात पर क्यों भरोसा किया गया? ट्रंप के सामने भारत के हितों की अनदेखी क्यों हुई? और क्या प्रधानमंत्री का ‘गरम ख़ून’ केवल कैमरों के सामने ही सक्रिय होता है?
राहुल गांधी की यह प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री मोदी के बीकानेर भाषण के बाद आई, जहाँ प्रधानमंत्री ने अपने जज़्बाती अंदाज़ में कहा—“मोदी की नसों में गर्म सिंदूर बह रहा है… पाकिस्तान और आतंकियों को 22 मिनट में जवाब मिला।” मोदी का यह बयान भावनात्मक अपील के साथ-साथ राष्ट्रवादी भावना को भी जाग्रत करता है, जो उनकी चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है।
लेकिन जब राहुल गांधी सवाल करते हैं कि “क्या आपने भारत के सम्मान से समझौता किया है?”—तो यह सिर्फ़ एक विपक्षी नेता का हमला नहीं, बल्कि सत्ताधारी सरकार की आतंकवाद नीति पर गंभीर सवाल है। खासकर जब बात हो पाकिस्तान जैसे पड़ोसी की, जिसके साथ भारत के रिश्ते बारूद और भरोसे की महीन रेखा पर टिके रहते हैं।
राजनीतिक विमर्श या भावनात्मक उबाल?
प्रधानमंत्री का यह कहना कि “हमने आतंकियों के नौ ठिकानों को 22 मिनट में तबाह किया”—देश को सुरक्षा बलों की क्षमता पर गर्व करने का अवसर देता है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि विपक्ष की आलोचना को मात्र ‘खोखला’ करार देने के बजाय, उसके पीछे के तथ्यों और प्रश्नों का उत्तर भी सामने लाया जाए।
क्या यह राष्ट्रवाद बनाम जवाबदेही की लड़ाई है?
राहुल गांधी द्वारा पूछे गए प्रश्न सत्ता की जवाबदेही की माँग करते हैं। वहीं प्रधानमंत्री का राष्ट्रवादी उबाल जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ता है। ऐसे में मतदाता के लिए यह तय करना अहम हो जाता है कि उसे भाषणों का ताप अधिक चाहिए या ठोस उत्तरों की तपिश?
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