
Legal debate intensifies in the Supreme Court over the Waqf Amendment Law 2025. Follow Shah Times for in-depth coverage.
वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में तीन दिन की गहन बहस पूरी हो गई है। कानून की धार्मिक स्वतंत्रता, जनजातीय अधिकारों और संवैधानिक अनुच्छेदों पर प्रभाव की विवेचना के साथ कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।
वक्फ संशोधन कानून पर न्यायपालिका की अग्निपरीक्षा
वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया सुनवाई ने एक बार फिर “धार्मिक स्वतंत्रता” और “संवैधानिक समता” के बीच के संतुलन को न्यायिक कसौटी पर ला खड़ा किया है। केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच तीखी वैचारिक टकराहट ने इस विषय को न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का विषय बना दिया है।
1. धार्मिक पहचान बनाम संवैधानिक समता
केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून का समर्थन करते हुए ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ की शर्त को उचित ठहराया। उनके अनुसार, यह शर्त शरिया कानून की तर्ज़ पर धार्मिक निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु है। वहीं याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे असंवैधानिक करार दिया और अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही) का उल्लंघन बताया।
विश्लेषण:
यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या धर्म आधारित शर्तें किसी विशेष समुदाय पर कानूनी प्रतिबंध के रूप में लागू की जा सकती हैं जबकि अन्य धर्मों में ऐसी कोई शर्त नहीं है? यह बहस सीधे तौर पर धर्मनिरपेक्षता बनाम धार्मिक विशेषाधिकार के द्वंद्व से जुड़ती है।
2. जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ की मनाही: संरक्षण या भेदभाव?
सरकार ने जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ को रोकने के प्रावधान को संवैधानिक संरक्षण बताया, वहीं याचिकाकर्ताओं ने इसे भेदभावपूर्ण ठहराया। सीजेआई गवई और जस्टिस एजी मसीह के सवालों ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट भी इस मसले को केवल तर्क के आधार पर नहीं, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में भी देख रही है।
विश्लेषण:
यह मुद्दा वक्फ संपत्ति की अपरिवर्तनीयता बनाम जनजातीय स्वामित्व और परंपरा की रक्षा के बीच टकराव का है। यहां न्यायालय को तय करना होगा कि क्या धार्मिक संस्थानों को भूमि अधिग्रहण के इस दायरे से बाहर रखना चाहिए।
3. वक्फ पंजीकरण की अनिवार्यता और व्यावहारिक विसंगतियां
कपिल सिब्बल और रंजीत कुमार के बीच की बहस ने वक्फ पंजीकरण की ऐतिहासिकता और व्यावहारिक चुनौतियों को उजागर किया। जहां सरकार इसे नियमसंगत मानती है, वहीं याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इतने वर्षों में भी वक्फ की सम्पूर्ण गणना या पंजीकरण नहीं हो पाया है।
विश्लेषण:
यह स्पष्ट है कि नीति और क्रियान्वयन के बीच बड़ा अंतर है। अगर पंजीकरण व्यवस्था पारदर्शी और निष्पक्ष न हो, तो इसका दुरुपयोग संभावित है, खासकर तब जब पूरे गाँव या ऐतिहासिक धरोहरों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाए।
4. ऐतिहासिक धार्मिक संपत्तियों का विवाद
तमिलनाडु के एक याचिकाकर्ता द्वारा पूरे गाँव को वक्फ घोषित किए जाने का मामला नई चिंता पैदा करता है। इससे ‘एडवर्स पजेशन’ और ‘वक्फ बाय यूजर’ जैसे कानूनी प्रावधानों की आलोचना और पुनः परीक्षण की आवश्यकता उजागर हुई है।
वक्फ संशोधन कानून 2025 केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र, अल्पसंख्यक अधिकारों और संपत्ति-संबंधी न्याय का परीक्षण है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह तय होगा कि भारत का संविधान धार्मिक विश्वासों और राज्य की निष्पक्षता के बीच किसे प्राथमिकता देता है।
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