
मुज़फ़्फरनगर पुलिस का साइबर जागरूकता कार्यक्रम, छात्र-छात्राओं को डिजिटल सुरक्षा की जानकारी देते अधिकारी।
मुज़फ़्फरनगर पुलिस व प्रशासन का साइबर जागरूकता अभियान: डिजिटल साक्षरता की नई राह
डिजिटल सतर्कता की पहल: मुज़फ़्फरनगर पुलिस का साइबर अभियान
मुज़फ़्फरनगर पुलिस और प्रशासन ने मिलकर साइबर अपराधों के खिलाफ जनजागरूकता बढ़ाने के लिए एक विस्तृत अभियान शुरू किया है। इसमें अधिकारियों, छात्रों और आम नागरिकों को साइबर सुरक्षा के व्यावहारिक उपायों की जानकारी दी गई।
📍मुज़फ़्फरनगर 🗓️18 अक्टूबर 2025 ✍️आसिफ़ ख़ान
Cyber Awareness Drive in Muzaffarnagar – सुरक्षा की नई सोच
मुज़फ़्फरनगर में हाल के महीनों में साइबर अपराधों में तेज़ी आई है — कभी किसी का बैंक अकाउंट हैक, तो किसी का सोशल मीडिया आईडी क्लोन। इसी बढ़ते खतरे को देखते हुए पुलिस और प्रशासन ने तय किया कि अब सिर्फ़ कानून से नहीं, जागरूकता से भी अपराध पर रोक लगानी होगी।
साइबर जागरूकता अभियान में कार्यक्रम में अपर जिलाधिकारी (वित्त) गजेन्द्र सिंह, मुख्य विकास अधिकारी कमल किशोर कंडारकर, और पुलिस अधीक्षक अपराध / मिशन शक्ति नोडल अधिकारी इन्दु सिद्धार्थ ने प्रशासनिक अधिकारियों को साइबर अपराधों के प्रकार और उनसे बचने के तरीके बताए।
उन्होंने कहा कि “आजकल क्रिमिनल्स टेक्नोलॉजी के ज़रिए लोगों के भरोसे का फ़ायदा उठाते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति को अपनी डिजिटल सुरक्षा खुद करनी होगी।”
इस संवाद का लहजा आधिकारिक नहीं, बल्कि बेहद व्यावहारिक था — जैसे कोई सीनियर अफ़सर अपने साथियों को चेतावनी नहीं, सलाह दे रहा हो।
कार्यक्रम में बताया गया कि किसी भी अनजान लिंक, कॉल या मैसेज पर अपनी व्यक्तिगत या बैंक संबंधी जानकारी कभी शेयर न करें। और अगर किसी को शक हो, तो साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 या वेबसाइट www.cybercrime.gov.in पर तुरंत शिकायत करें।
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सामाजिक जिम्मेदारी का विस्तार:
इस पहल की ख़ास बात यह है कि यह सिर्फ़ सरकारी मीटिंग तक सीमित नहीं रही।
इसी क्रम में श्री राम कॉलेज, मुज़फ़्फरनगर में आयोजित दीवाली मेले के दौरान पुलिस ने एक आकर्षक साइबर जागरूकता स्टॉल लगाया। वहां छात्रों और आम लोगों को रोचक ढंग से साइबर सुरक्षा के उपाय समझाए गए।
इस स्टॉल का सबसे दिलचस्प हिस्सा था —
“चाचा चौधरी और साबू” पर आधारित साइबर कॉमिक्स!
इन कॉमिक्स के ज़रिए बच्चों और युवाओं को बताया गया कि कैसे फेक लिंक, ओटीपी फ्रॉड, फिशिंग, और सोशल मीडिया स्कैम से बचा जा सकता है।
इस तरह पुलिस ने टेक्निकल जानकारी को मनोरंजक रूप में पेश किया — क्योंकि अगर संदेश रोचक हो, तो असर गहरा होता है।
समाज में भरोसे और सुरक्षा की बुनियाद:
इस मुहिम का मकसद सिर्फ़ जानकारी देना नहीं, बल्कि एक डिजिटल रूप से सुरक्षित समाज बनाना है।
पुलिस अधीक्षक (अपराध) इन्दु सिद्धार्थ ने कहा,
“जब तक जनता खुद जागरूक नहीं होगी, तब तक कोई भी सिस्टम सौ फ़ीसदी सुरक्षा नहीं दे सकता।”
उनके शब्दों में एक सच्ची प्रशासनिक समझ झलकती है — क्योंकि सॉफ्टवेयर से ज़्यादा मज़बूत होता है सतर्क इंसान।
कॉलेज स्टॉल पर पहुँचे छात्रों ने भी कहा कि ऐसी जानकारी उन्हें किताबों में नहीं मिलती।
एक छात्रा ने मुस्कुराते हुए कहा,
“अब समझ आया कि हर लिंक पर क्लिक करने से पहले दो बार सोचना चाहिए।”
अक्सर लोग सोचते हैं कि डिजिटल दुनिया में धोखा सिर्फ़ बुज़ुर्गों को होता है, मगर आज के नौजवान भी उतने ही असुरक्षित हैं।
इसीलिए ये जागरूकता सिर्फ़ एक सरकारी मुहिम नहीं, बल्कि एक सामाजिक ज़िम्मेदारी बन चुकी है।
मुज़फ़्फरनगर की पुलिस ने इस मुहिम को इंसानी लहजे में पेश किया —
ना तो डराया, ना दिखावा किया, बस सच्चाई बताई।
कहा गया, “साइबर दुनिया में अमन बनाए रखने का रास्ता तालीम और तजुर्बे से होकर जाता है।”
कई अफ़सरों ने माना कि ये मुहिम अगर लगातार चलती रही, तो आने वाले वक्त में डिजिटल अमन व अमान की फ़िज़ा मज़बूत होगी।
शासन के दृष्टिकोण से, यह अभियान एक प्रगतिशील बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है – केवल पुलिसिंग पर निर्भर रहने के बजाय, अधिकारी नागरिकों को डिजिटल जागरूकता और आत्मरक्षा कौशल के साथ सशक्त बना रहे हैं।
कुछ आलोचकों का कहना है कि जागरूकता अभियान तब तक अधूरा रहेगा जब तक डिजिटल फ्रॉड जांच तंत्र तेज़ नहीं होगा।
उनका मानना है कि शिकायतें दर्ज तो होती हैं, मगर कार्रवाई में समय लगता है।
यह एक जायज़ चिंता है — परंतु अगर जागरूकता के साथ शिकायत प्रणाली को भी मज़बूत किया जाए, तो नतीजे निश्चित रूप से बेहतर होंगे।
पुलिस विभाग का यह कदम इस दिशा में पहला सशक्त प्रयास माना जा सकता है।
जैसे-जैसे नागरिक खुद सतर्क होंगे, अपराधी के लिए रास्ते सिमटते जाएंगे।
नज़रिया
मुज़फ़्फरनगर पुलिस व प्रशासन की यह पहल एक समावेशी और संवेदनशील प्रयास है।
यह सिर्फ़ कानून की भाषा नहीं बोलती, बल्कि इंसानियत की आवाज़ भी रखती है।
डिजिटल युग में सुरक्षा का मतलब सिर्फ़ पासवर्ड नहीं — पर्सनल जागरूकता है।
अगर हर नागरिक अपने डेटा का पहरेदार बने, तो साइबर अपराधों की दीवारें खुद गिरने लगेंगी।






