
RLD Shah Times
मुस्लिमों को लेकर जयंत चौधरी ने बदली रणनीति
पश्चिमी यूपी में ना हो रालोद को नुकसान
शामली/नसीम सैफ़ी (Shah Times)। उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सियासी गलियारों में हल चल बढ़ गयी है इस बार रालोद की रणनीति बदली हुई नजर आ रही है हाल ही में आरएलडी में किए बदलाव से साफ जाहिर होता है कि जयंत चौधरी मुस्लिम नेताओं को लेकर फ़्रंट पर नही दिख रहे है मुस्लिम नेताओं की जगह पर दलित, गुर्जर और दूसरे अन्य समाज के नेताओं को तवज्जो देकर जातिगत वोट बढ़ाने के जुगाड़ में है।
रालोद पार्टी में मुस्लिम नेताओ के बड़े बड़े नाम तो है शायद अब उन का कोई काम नही है
राष्ट्रीय लोकदल में मुस्लिम नेताओ व कार्यकर्ताओं व उनके वोटरों जैसी रालोद से उम्मीद थी उस उम्मीद पर जंयत चौधरी खरे नहीं उतर पाये क्षेत्र में यह चर्चा का विषय बना हुआ है, कि रालोद मुखिया जंयत चौधरी ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में नही उतारा हैं, ओर ना ही किसी मुस्लिम नेता को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया।
अगर बात जनपद शामली की की जाये तो यह रालोद में बड़े नेताओं के नाम सामने आते है जिसमे थानाभवन सीट से मौजूद रालोद विधायक अशरफ़ अली खान, पूर्व सांसद अमीर व उनके पुत्र पूर्व विधायक नवाजिश आलम, और पूर्व विधायक राव अब्दुल वारिस जैसे चेहरे रालोद में लंबे समय से जुड़े है, जिसके बावजूद भी रालोद ने किसी नेता पर ध्यान नहीं दिया। इसी कारण क्षेत्र के मुस्लिम समुदाय के लोगो का आरोप है कि रालोद के मुखिया जंयत चौधरी ने उन्हें दरकिनार किया है। क्योंकि बीजेपी से रालोद के साथ गठबंधन होने के बाद बीजेपी ने कैराना लोकसभा सीट से प्रदीप चौधरी को दोबारा प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है। जिसके बाद राव अब्दुल वारिश व अमीर आलम जैसे नेताओं का सपना टूटा और समर्थक भी खुद को ठगा महसूस कर रहे है इस फैसले से समर्थकों में मायूसी सी छाई हुई है।
रालोद ने मुस्लिमों पर बदली रणनीति
2022 के विधानसभा चुनाव में जाट-मुस्लिम कंबिनेशन के दम पर जयंत चौधरी ने 9 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी। जयंत चौधरी की रणनीति से एक बात साफ है कि वो 2024 के लिए दलित-गुर्जर समुदाय को जोड़ने पर काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जाट और मुस्लिम उनका स्वाभाविक वोट है वो तो उन्हें मिल ही जायेगा। ऐसे में जाट-मुस्लिमों के साथ अगर गुर्जर-दलित जुड़ जाता है तो पश्चिमी यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन करने का फायदा मिलेगा।
मुस्लिम नाराज़ होने से कहि पश्चिमी यूपी में बिगड़ ना जाए गणित
पश्चिमी यूपी की सियासत जाट, मुस्लिम और दलित समुदाय के जाटव जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. यूपी में भले ही 20 फीसदी मुसलमान हैं, लेकिन पश्चिमी यूपी में 30 फीसदी से 40 फीसदी के करीब हैं. आरएलडी का मुस्लिमों को नजर अंदाज करना राजनीतिक रूप से महंगा भी पड़ सकता हैं, क्योंकि पश्चिमी यूपी का मुस्लिम सिर्फ वोट ही नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व के लिए भी जद्दोजहद करता है।
पश्चिमी यूपी के कई जिलों में मुसलमान वोटों निर्णायक हैं. मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, अलीगढ़, संभल, बिजनौर, मुरादाबाद और बरेली में ये उस 30 प्रतिशत के जादुई आंकड़े से ज्यादा वोट करते हैं. अगर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशियों को दे दिया मौका तो बिगड़ जाएगा समीकरण बसपा दलित-मुस्लिम कंबिनेशन पर काम कर रही है। ऐसे में आरएलडी का मुस्लिमों पर बदली रणनीति महंगी न पड़ जाए?