
Tragic fire in a sleeper bus from Bihar to Delhi kills 5, including 2 children, in Lucknow. Understand why sleeper buses become moving coffins and when the system will wake up
लखनऊ में बिहार से दिल्ली जा रही स्लीपर बस में आग लगने से दो बच्चों समेत 5 लोगों की दर्दनाक मौत। जानिए क्यों स्लीपर बसें बनती हैं दौड़ता ताबूत और कब जागेगा सिस्टम
लखनऊ (शाह टाइम्स) बिहार से दिल्ली आ रही एक स्लीपर बस गुरुवार तड़के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हादसे का शिकार हो गई। किसान पथ पर चलती बस में अचानक आग लगने से दो बच्चों समेत कुल 5 यात्रियों की मौके पर ही जलकर मौत हो गई। हादसे के समय ज्यादातर यात्री नींद में थे। आग इतनी भयानक थी कि ड्राइवर और कंडक्टर बस से कूदकर भाग निकले, लेकिन बाकी यात्री फंसे रह गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बस जलती हुई लगभग एक किलोमीटर तक दौड़ती रही।
कैसे बनी स्लीपर बस मौत की चिता?
स्लीपर बस में लगी आग के बाद मच गई अफरातफरी। कुछ यात्री दरवाजे की ओर भागे तो कुछ ने खिड़कियां तोड़कर जान बचाने की कोशिश की। लेकिन सबसे चिंता की बात यह रही कि बस का इमरजेंसी डोर नहीं खुला, जिससे कई यात्रियों की जान जाना तय हो गया। यह हादसा एक बार फिर सवाल खड़े करता है कि क्या स्लीपर बसें वास्तव में सुरक्षित हैं?
क्यों स्लीपर बसें बन रही हैं ‘चलती चिताएं’?
- ड्राइवर की झपकी बनी मौत की वजह
सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार, 2022 में ड्राइवरों की लापरवाही या वाहन पर नियंत्रण खोने के कारण दुर्घटनाओं में 5% की वृद्धि हुई। लंबी दूरी की बसों में थके हुए ड्राइवर अक्सर झपकी ले बैठते हैं। यह हादसा भी सुबह के समय हुआ, जब नींद का असर सबसे ज्यादा होता है।
- हाईवे की डिजाइन भी दोषी
सीधे और लंबे हाईवे पर बार-बार एक जैसे दृश्य देखने से ड्राइवर बोरियत महसूस करते हैं और नींद आने की संभावना बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि हाईवे की डिजाइन में बदलाव और गति सीमा पर नियंत्रण से हादसों की संख्या घटाई जा सकती है।
- स्लीपर बसों का डिज़ाइन खुद खतरा
स्लीपर बसों में यात्रियों के लिए जगह बहुत कम होती है। औसतन हर बर्थ 6 फीट लंबी और 2.6 फीट चौड़ी होती है, लेकिन बाहर निकलने के लिए रास्ता बेहद तंग होता है। आग लगने या एक्सीडेंट के समय यात्री फंस जाते हैं।
- इमरजेंसी गेट पहुंच से बाहर
स्लीपर बसों की ऊंचाई 8-9 फीट तक होती है। हादसे में अगर बस झुक जाए या पलट जाए, तो यात्रियों के लिए इमरजेंसी गेट तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है।
- ड्राइवरों की ओवरवर्किंग और टेक्नोलॉजी का अभाव
प्राइवेट स्लीपर बसों में ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम नहीं होता। यह तकनीक ड्राइवर को झपकी आने पर अलर्ट कर सकती है, लेकिन भारतीय बसों में इसका नामोनिशान नहीं है।
चीन में बैन, भारत में बेहिसाब चलन
साल 2012 में चीन ने स्लीपर बसों पर बैन लगा दिया था, जब लगातार हादसों में दर्जनों लोगों की जान गई। लेकिन भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में आज भी इनका खूब चलन है। चीन में बैन से पहले 37 हजार स्लीपर बसें चलती थीं, लेकिन भारत में इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
सिस्टम की नींद गहरी, ड्राइवर सोते जागते
2018 में हुए एक सर्वे के अनुसार, 25% ड्राइवरों ने माना कि वे गाड़ी चलाते समय सो गए थे। रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक का वक्त सबसे खतरनाक होता है। स्लीपर बसों के डिज़ाइन और सुरक्षा मानकों पर आज तक कोई ठोस राष्ट्रीय नीति नहीं बनी है।
कब जागेगा सिस्टम?
हर बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों तक बहस जरूर होती है, लेकिन फिर वही ढर्रा शुरू हो जाता है। विशेषज्ञों की मांग है कि:
स्लीपर बसों के निर्माण के लिए कड़े डिज़ाइन मानक तय किए जाएं
ड्राइवरों के लिए रोटेशन सिस्टम और आराम की व्यवस्था हो
इमरजेंसी रेस्पॉन्स सिस्टम मजबूत किया जाए
टेक्नोलॉजी जैसे ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम अनिवार्य हों
हर सफर मंजिल तक नहीं पहुंचता, कुछ रास्ते जिंदगी खत्म कर देते हैं। लखनऊ में जो हुआ, वह एक दर्दनाक उदाहरण है कि कैसे व्यवस्था की लापरवाही और लचर नियमन चलते-फिरते ताबूत बन जाते हैं। सवाल है – अगली चिता किसकी होगी? और क्या तब भी हम चुप रहेंगे?