
बिना कानूनी प्रक्रिया के मकान ध्वस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, न्यायिक प्रक्रिया की अनदेखी पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में मकान गिराने के यूपी सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की। अदालत ने इस कदम को “चौंकाने वाला” बताते हुए कानूनी प्रक्रिया के पालन पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में अवैध रूप से मकान गिराने पर यूपी सरकार को लगाई फटकार
नई दिल्ली,(Shah Times)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रयागराज में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के मकान गिराने के कदम पर कड़ी असहमति जताई। अदालत ने इसे “चौंकाने वाला” और शासन व न्याय के लिए “गलत संकेत” करार दिया। जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सरकार की इस कठोर कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि राज्य को अपने विध्वंस संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और नागरिकों के आश्रय के अधिकार का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार से सख्त सवाल पूछे। अदालत ने कहा,
“आप बिना किसी उचित कानूनी प्रक्रिया के घरों को गिरा रहे हैं। क्या आपको पता है कि यह मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है?”
न्यायालय ने इस मामले में विध्वंसित मकानों के पुनर्निर्माण की संभावना पर विचार करने को कहा और राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए कि वह भविष्य में ऐसी किसी भी कार्रवाई से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए।
राज्य सरकार का बचाव
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दलील पेश करते हुए कहा कि प्रभावित पक्षों को विध्वंस से पहले उचित नोटिस दिया गया था और उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करने का पर्याप्त समय दिया गया था। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले पर हाई कोर्ट द्वारा पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं के दावे
हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकील जुल्फिकार हैदर और प्रोफेसर अली अहमद ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने इस गलतफहमी में काम किया कि यह संपत्ति दिवंगत गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की है, जो 2023 में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। उन्होंने दावा किया कि सरकार के इस भ्रम के चलते निर्दोष लोगों के घर अवैध रूप से गिरा दिए गए।
अचानक विध्वंस और कानूनी चूक
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रभावित परिवारों को सिर्फ 6 मार्च 2021 (शनिवार) की रात को विध्वंस के बारे में जानकारी दी गई थी और अगले ही दिन रविवार को उनके घर गिरा दिए गए। इस अल्प सूचना के कारण वे कोई कानूनी सहारा भी नहीं ले सके।
यह मामला तब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रभावित लोगों की याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस कदम को कानून और नागरिक अधिकारों की उपेक्षा बताया और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए उचित दिशानिर्देशों की आवश्यकता पर बल दिया।
सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा और कानून के उचित पालन की आवश्यकता को दर्शाती है। यह मामला उत्तर प्रदेश सरकार के शहरी प्रशासन और कानून प्रवर्तन की नीति पर एक महत्वपूर्ण प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि राज्य सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और भविष्य में ऐसे मामलों से निपटने के लिए क्या कदम उठाती है।