
पंजाब के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा के बेटे अकील अख़्तर की संदिग्ध मौत पर बढ़ते सवाल
अकील अख़्तर की रहस्यमयी मौत: सियासत, साज़िश और इंसाफ़ की तलाश
पंजाब के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा और उनकी पत्नी रज़िया सुल्ताना के बेटे अकील अख़्तर की संदिग्ध मौत ने सत्ता, सियासत और परिवार के रिश्तों की परतें खोल दी हैं। दवा की ओवरडोज़ या पारिवारिक साज़िश? पुलिस जांच अब इन दोनों दावों के बीच सच्चाई तलाश रही है।
📍 पंचकूला🗓️ 21 अक्तूबर 2025 ✍️ असिफ़ ख़ान
पंजाब पुलिस के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा का नाम भारतीय पुलिस सेवा में सख़्त अनुशासन और सियासी नज़दीकियों दोनों के लिए जाना जाता है। उनकी पत्नी रज़िया सुल्ताना, जो पंजाब की पूर्व मंत्री रह चुकी हैं, और उनका बेटा अकील अख़्तर — जो खुद एक वकील थे — अब एक ऐसे मामले के केंद्र में हैं जिसने पूरे उत्तर भारत में कानूनी और राजनीतिक हलचल मचा दी है।
16 अक्तूबर को पंचकूला से मिली अकील अख़्तर की मौत की ख़बर ने सबको चौंका दिया। परिवार ने तुरंत बयान जारी किया कि मौत “दवा की ओवरडोज़” से हुई। लेकिन इतनी जल्दी यह बयान देना, बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट के इंतज़ार किए, कई सवाल खड़े करता है।
क्या यह वाकई ओवरडोज़ था? या किसी ने जल्दी से कहानी सेट कर दी?
कई बार सत्ता और प्रभाव वाले परिवारों में “कहानी पहले और सच्चाई बाद में” आती है। शायद यही वजह है कि अब यह मौत केवल पारिवारिक त्रासदी नहीं बल्कि एक क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन बन चुकी है।
एफआईआर, आरोप और वीडियो साक्ष्य की दिशा
अकील की मौत के बाद, पड़ोसी शमसुद्दीन निवासी मॉडल टाउन, मालेरकोटला ने पंचकूला पुलिस आयुक्त को एक लिखित शिकायत दर्ज कराई — जिसमें उन्होंने साफ़ लिखा कि यह “हत्या” है, कोई ओवरडोज़ नहीं।
इस शिकायत के बाद पंचकूला पुलिस ने मोहम्मद मुस्तफ़ा, उनकी पत्नी रज़िया सुल्ताना, बेटी और बहू के ख़िलाफ़ हत्या और साज़िश के आरोप में एफआईआर दर्ज कर ली।
शिकायत में एक और सनसनीख़ेज़ दावा था — कि अकील की पत्नी और उनके पिता मोहम्मद मुस्तफ़ा के बीच “अवैध रिश्ते” थे। अगर यह सच निकला, तो यह केवल एक पारिवारिक झगड़ा नहीं, बल्कि सम्मान, नियंत्रण और सियासी अस्तित्व की लड़ाई बन जाएगी।
इस केस को और गंभीर बना देता है अकील अख़्तर का वीडियो संदेश, जिसमें उन्होंने अपनी हत्या की आशंका जताई थी। वीडियो में वह बताते हैं कि उन्हें घर में “बंदी” बनाकर रखा गया है।
अगर यह वीडियो असली है, तो कहानी पलट जाती है — क्योंकि बंदी बनाए जाने की स्थिति में ओवरडोज़ “स्वैच्छिक” नहीं मानी जाएगी।
कानून की भाषा में, यह सीधा Section 302 IPC (Murder) और 120B (Criminal Conspiracy) की ज़मीन तैयार करता है


जांच, साक्ष्य और कानूनी पेचीदगियाँ
पंचकूला पुलिस ने अब इस केस को औपचारिक रूप से हत्या के रूप में दर्ज कर लिया है।
लेकिन असली चुनौती साक्ष्यों की है —
पोस्टमार्टम और टॉक्सिकोलॉजी रिपोर्ट इस केस की बुनियाद तय करेगी।
अगर रिपोर्ट में ओवरडोज़ साबित होती है, तो सवाल यह उठेगा कि दवा किसने दी?
अगर रिपोर्ट में दम घुटने, बाहरी चोट या ज़हर के निशान मिलते हैं, तो यह साफ़ हत्या होगी।
फिलहाल रिपोर्ट का इंतज़ार है, और पुलिस दबाव में है — क्योंकि आरोपी वही लोग हैं जिनके हाथों में कभी राज्य की कानून व्यवस्था थी।
Digital Evidence — जैसे अकील अख्तर का वीडियो, मोबाइल रिकॉर्ड, ईमेल और CCTV फुटेज — अब जांच का केंद्र हैं।
अकील का दावा था कि उन्हें अपने पिता से जुड़े पुराने कानूनी मामले (FIR 17/2022) के समन मिले थे।
यह दिखाता है कि वह न सिर्फ़ घरेलू बल्कि कानूनी दबावों में भी घिरे थे।
पंचकूला डीसीपी सृष्टि गुप्ता ने बताया कि “पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा और पूर्व मंत्री रज़िया सुल्ताना के बेटे आक़िल अख़्तर की संदिग्ध परिस्थितियों में पंचकूला के एमडीसी स्थित उनके निवास पर मौत हो गई। हमें इस संबंध में एक शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर हत्या और साज़िश की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। यह एफआईआर मृतक के पिता, मां, बहन और पत्नी सहित परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई है। शिकायतकर्ता ने कुछ गंभीर आरोप लगाते हुए साज़िश की आशंका जताई है। मृतक द्वारा सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया गया था जिसमें उसने कहा था कि यदि उसकी मौत हो जाती है, तो उसकी डायरी में एक ‘डाइंग डिक्लेरेशन’ (मृत्यु पूर्व बयान) लिखा हुआ है और यह भी कि उसे ज़हर दिया गया हो सकता है। हमने इस वीडियो और सभी संबंधित तथ्यों को जांच में शामिल किया है ताकि पूरे मामले में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे। इस मामले में तुरंत एसीपी रैंक के अधिकारी की अगुवाई में एक एसआईटी गठित की गई है, जो वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर जांच कर रही है। फिलहाल विसरा सैंपल की जांच जारी है, और रिपोर्ट आने के बाद मौत का वास्तविक कारण स्पष्ट हो जाएगा।”
आक़िल अख़्तर की एक नई वीडियो सामने आई
पूर्व डीजीपी मुहम्मद मुस्तफ़ा और पूर्व मंत्री रज़िया सुल्ताना के इकलौते बेटे आक़िल अख़्तर की मौत से ठीक पहले की एक नई वीडियो सामने आई है, जिसने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया है। इस वीडियो में आक़िल अपने माता-पिता से माफ़ी मांगते हुए और उनके प्रति कृतज्ञता ज़ाहिर करते हुए दिखाई दे रहा है।
दुखद बात यह है कि कुछ लोग अब भी उसकी पुरानी वीडियो वायरल कर उसके परिवार की चरित्र हत्या और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि आक़िल पिछले करीब दो दशकों से मानसिक बीमारी से जूझ रहा था। उसके माता-पिता ने उसका इलाज पीजीआई चंडीगढ़ से लेकर कई नामी निजी अस्पतालों में करवाया था, लेकिन मानसिक अस्थिरता और कुछ गलत आदतों ने उसकी हालत और बिगाड़ दी थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, आक़िल “साइकोटिक डिसऑर्डर” से पीड़ित था, यानी वह वास्तविकता से बार-बार कट जाता था और कई बार बिना वजह आरोप लगाने या भ्रम में रहने लगता था।
नई वीडियो, जो उसने 8 अक्तूबर को रिकॉर्ड की थी, में वह अपने परिवार—मां, पिता, बहन और पत्नी—की तारीफ़ करता है। वह कहता है कि अगर कोई और परिवार होता तो शायद कब का उसे घर से निकाल चुका होता, लेकिन उसका परिवार हमेशा उसके साथ खड़ा रहा।
इस वीडियो में आक़िल अपनी पुरानी वीडियो में लगाए गए आरोपों को “अपने पागलपन की हालत में कही गई बातें” बताते हुए माफ़ी मांगता है। उसकी मानसिक स्थिति का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 8 अक्तूबर को बनाई गई इस नई वीडियो में वह 27 अगस्त की वीडियो को “एक साल पुरानी” बता रहा है।
यह पूरा मामला अब जांच एजेंसियों के लिए और भी संवेदनशील हो गया है, क्योंकि वीडियो की टाइमलाइन और बयान दोनों ही उसकी मानसिक स्थिति और घटनाक्रम के क्रम पर कई अहम सवाल उठाते हैं।
मुस्तफ़ा परिवार का इतिहास और विवादों का सिलसिला
डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा का करियर हमेशा विवादों से जुड़ा रहा है।
कभी नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए, तो कभी सियासी बयानों पर एफआईआर झेली।
उनकी पत्नी रज़िया सुल्ताना कांग्रेस में प्रभावशाली नेता रहीं, लेकिन अब वही राजनीति उनके लिए अभिशाप बनती दिख रही है।
विक्रम मजीठिया ने उन पर पहले भी “हनी-मनी-सनी” स्कैंडल के आरोप लगाए थे —
जहाँ रेत खनन माफिया और राजनीतिक फंडिंग से जुड़े मामले सामने आए थे।
अब जब परिवार का बेटा रहस्यमयी हालात में मरा मिला,
तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है —
क्या यह मौत किसी पुराने सियासी या निजी रहस्य का नतीजा थी?
साज़िश या सच्चाई — सवाल और जवाब के दरमियान की जंग
हर मौत के पीछे एक कहानी होती है, पर हर कहानी सच्चाई नहीं होती।
यहां एक तरफ़ परिवार का दावा है कि अकील ने खुद दवा ली,
दूसरी तरफ़ वीडियो और एफआईआर है जो कहती है — “यह मर्डर है।”
अगर पुलिस निष्पक्ष जांच करती है, तो यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक टेस्ट केस बन जाएगा।
क्योंकि जब आरोपी खुद कानून के रखवाले रहे हों, तो न्याय का तराजू सीधा रखना सबसे मुश्किल होता है।
कानूनी सुझाव और निष्पक्षता की सिफ़ारिशें
इस केस में निष्पक्ष जांच के लिए ज़रूरी है कि:
CBI या SIT जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में हो।
फोरेंसिक रिपोर्ट की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि कोई राजनीतिक हस्तक्षेप न हो।
डिजिटल और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
मीडिया को भी “सेंसिटिव रिपोर्टिंग” करनी चाहिए, ताकि न्याय प्रभावित न हो।
इंसाफ़ सिर्फ़ कानून नहीं, नीयत से भी आता है
यह केस सिर्फ़ एक बेटे की मौत की कहानी नहीं है।
यह एक आईना है — जो दिखाता है कि ताक़त और सत्ता के नीचे दबी सच्चाइयाँ कितनी गहरी और खतरनाक हो सकती हैं।
अगर सच में अकील की मौत एक साज़िश थी, तो यह साबित करेगा कि इंसाफ़ से बड़ा कोई नहीं।
लेकिन अगर जांच बिना दबाव के नहीं हो पाई,
तो यह देश की न्यायिक व्यवस्था पर सवाल छोड़ जाएगी —
कि “कानून सबके लिए बराबर है” का दावा सिर्फ़ किताबों तक सीमित तो नहीं?
अहम नतीजा:
परिवार का “ओवरडोज़” बयान संदेहास्पद है
एफआईआर में हत्या और साज़िश के गंभीर आरोप
वीडियो साक्ष्य ने केस की दिशा बदली
पुलिस जांच पर राजनीतिक दबाव संभव
फोरेंसिक रिपोर्ट और डिजिटल प्रूफ से तय होगा इंसाफ़






