
नई विश्व व्यवस्था की दस्तक: सोने, तेल और बुद्धि का युग
ट्रंप, पुतिन और बीजिंग का शतरंज — भू-राजनीति का नया खेल
ग़ज़ा से वॉल स्ट्रीट तक, दुनिया की शक्ति-संतुलन की कहानी एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। डॉलर की पकड़ ढीली हो रही है, सोना फिर से शक्ति का प्रतीक बन रहा है, और ट्रंप-पुतिन-शी के बीच चल रहा यह अदृश्य खेल शायद नई विश्व व्यवस्था का जन्म दे रहा है।
📍New Delhi |7 अक्टूबर 2025 | ✍️ वाहिद नसीम
दुनिया की सरहदें कभी ज़मीन पर नहीं बनतीं — वे विचारों के बीच बनती हैं। और जब विचार बदलते हैं, तो साम्राज्य ढहते हैं।
आज वही दृश्य फिर से इतिहास के कैनवास पर उभर रहा है — ग़ज़ा और इसराइल के बीच की जंग अब किसी धार्मिक संघर्ष से आगे निकलकर भू-राजनीतिक पुनर्जन्म का संकेत बन गई है।
कई लोग इस युद्ध को तबाही की निशानी मान रहे हैं, लेकिन शायद यह आने वाले दो-राष्ट्र समाधान की भूमिका है।
ट्रंप, जो एक व्यापारी के रूप में राजनीति में उतरे, अब शतरंज के ऐसे मोहरे चल रहे हैं जिससे इसराइली लॉबी और वैश्विक बैंकिंग सिंडिकेट की नींद उड़ गई है।
वो लॉबी — जिसने डॉलर को ईश्वर और वॉल स्ट्रीट को उसका मंदिर बना दिया था — अब अपनी ही छाया से डरने लगी है।
उधर व्लादिमीर पुतिन, जो दशकों से भू-राजनीति के शतरंज पर चुपचाप चल रहे थे, शायद अब नेतन्याहू को यह भरोसा दे चुके हैं कि ईरान इसराइल के लिए खतरा नहीं, बल्कि नई स्थिरता का आधार बन सकता है।
अगर यह समीकरण सच है, तो मध्य-पूर्व में अस्थायी शांति का वह क्षण आ चुका है जिसे कई पीढ़ियों ने सिर्फ़ किताबों में देखा था।
इसराइल को अब अरब देशों से पूर्ण मान्यता मिलना कोई चमत्कार नहीं, बल्कि एक सुविचारित ऐतिहासिक आवश्यकता लगती है।
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चीन और अमेरिका
दूसरी तरफ, चीन ने अमेरिका में एक ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा के निवेश का प्रस्ताव दिया है।
जबकि सऊदी अरब और क़तर पहले ही लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर के वादे कर चुके हैं।
यह वही क्षण है, जब ट्रंप का नारा “Make America Great Again” अब किसी रैली का नारा नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की धड़कन बन गया है।
इतना बड़ा पूंजी निवेश न केवल करोड़ों अमेरिकी नौकरियों को जन्म देगा, बल्कि पश्चिमी आर्थिक ढांचे को नया जीवन भी देगा।
अब बात करते हैं यूक्रेन की इतनी शांति और आर्थिक पुनर्निर्माण की पृष्ठभूमि में, ट्रंप का NATO से बाहर निकलने का बयान सिर्फ़ धमकी नहीं — एक संकेत है।
संकेत इस बात का कि अमेरिका अब यूरोप की रूस-विरोधी महत्वाकांक्षाओं में दिलचस्पी नहीं रखेगा।
यही कारण है कि यूक्रेन युद्ध के अंत की फुसफुसाहट अब राजनयिक गलियारों में सुनाई देने लगी है।
ताइवान और चीन: बिना लड़े जीती हुई जंग
ट्रंप के झुकाव और यूरोप की थकान के बीच, चीन की “छठी पीढ़ी” की रक्षा प्रणाली ने शायद बिना एक भी गोली चलाए जंग जीत ली है।
ताइवान अब अमेरिका की प्राथमिकता नहीं रहेगा — और यह बीजिंग की सबसे बड़ी रणनीतिक जीत संभव हो चुकी है।
अब आते हैं गोल्ड यानी सोने पुनर्जन्म पर, जब साम्राज्य थकने लगते हैं, तो धरती फिर से सोने की ओर लौटती है।
आज दुनिया के सेंट्रल बैंक और अरबपति तेजी से सोना खरीद रहे हैं — क्योंकि उन्हें पता है कि आने वाला समय “पेपर करेंसी” का नहीं, “गोल्ड-बैक्ड करेंसी” का होगा।
सोने की कीमतों का असामान्य उछाल सिर्फ़ बाजार की प्रतिक्रिया नहीं — यह विश्व मुद्रा प्रणाली के पुनर्लेखन की शुरुआत है।
डॉलर साम्राज्य का दूबता सूरज!
इसराइली लॉबी, बैंकिंग सिंडिकेट और डॉलर के अदृश्य मालिक अब इतिहास के आख़िरी अध्याय में पहुँच चुके हैं।
उनकी पकड़ ढीली हो रही है, और दुनिया नई करेंसी व्यवस्था — स्वर्ण आधारित संतुलन — की ओर बढ़ रही है।
हर देश चाहता है कि उसके नागरिक आने वाले आर्थिक झटकों से सुरक्षित रहें, और यही कारण है कि “गोल्ड” अब फिर से “गॉड” बनने जा रहा है।
“खेल अभी बाकी है…”
इतिहास की घड़ी फिर से टिक-टिक कर रही है।
पुराने साम्राज्य ढह रहे हैं, नई सभ्यताएं जन्म ले रही हैं — और शायद, बहुत जल्द हम देखेंगे कि युद्धों से नहीं, बुद्धि और अर्थव्यवस्था की शांति से नया विश्व बनने की संभवन स्पष्ट होने लगी है।




