
सवाल यह नहीं कि किसे कितना इलेक्टोरल बॉन्ड मिला। सवाल व्यवस्था का है कि कैसे कंपनियों ने अपनी आय और टर्नओवर से भी कई गुना अधिक इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और सरकारी एजेंसियां आंख पर पट्टी बांधे रहीं।आप बिना फाइनेंस कराए एक कार खरीद लीजिए, बिना फाइनेंस कराए एक फ्लैट या ज़मीन की रजिस्ट्री करा लीजिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस कुछ हफ्तों में ही आपको मिल जाएगा।
दरअसल आधार से पैन कार्ड को लिंक कराना, आधार से बैंक एकाउंट को लिंक कराना आपके वित्तीय ट्रांजेक्शन पर सरकार और इनकम टैक्स की नजर रखने के लिए ही था। बैंक में एक हैवी राशि का ट्रांजेक्शन कर दीजिए, इसकी सूचना इनकम टैक्स विभाग तक पहुंच जाएगी। आपके पास इनकम टैक्स का नोटिस भी आ जाएगा फिर आप जवाब देते फिरते रहिए कि यह पैसा कहां से आया। मगर यह सब नियम कानून सामान्य जनता के लिए है। चंदा देने वाली कंपनियों के लिए कोई नियम कानून नहीं है। फ़र्ज़ी कंपनियों द्वारा दिए गए कुल 543 करोड़ में से 16 शेल कंपनियों ने बीजेपी को 419 करोड़ का चंदा दिया। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग के लिए वित्त मंत्रालय की उच्च जोखिम वाली निगरानी सूची में शामिल कंपनियां और अपने गठन के कुछ महीनों के भीतर करोड़ों का दान देने वाली कंपनियां शामिल थीं।
ना कोई इनकम टैक्स, ना ईडी,ना मनी लांड्रिंग कोई सवाल पूछ रही है। ऐसी ही सैकड़ों कंपनियों के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की राशि और उनके बैलेंस शीट की तुलना की जाए तो सामान्य नागरिक यदि ऐसी स्थिति में कितनी पैनाल्टी देगा सोच कर सिरहन सी दौड़ जाती है।इन कंपनियों में कई कई कंपनियां एक ही ऐड्रेस पर हैं,अंदेशा है कि काफी अडानी अंबानी की फर्जी अथवा शेल कंपनियां हैं जिनके पास पूंजी ही नहीं मगर चंदा सैकड़ों करोड़ रुपए में दिया।
कहने का अर्थ बस इतना है कि हज़ारों हज़ार करोड़ का फर्जीवाड़ा करती , बिना कैपिटल के सैकड़ों करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदती इन कंपनियों के लिए आधार , पैन और बैंक खाते का लिंक होने से कोई फर्क नहीं पड़ता और इनका सैकड़ों करोड़ का फ्रॉड इन्हीं इनकम टैक्स और ईडी के लिए सब लीगल है। यह भी नहीं पूछा जाता कि आपके पास जब कैपिटल ही नहीं तो हजारों करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने के लिए पैसे कहां से आए।
हकीकत यह है कि सारी व्यवस्था और निगरानी के बाद भी मोदी सरकार कंपनियों के साथ हज़ारों करोड़ के इस फ्रॉड में शामिल है और जनता बैलेंस शीट में ₹2000/- रूपए की भूल-चूक पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिस पर नोटिस प्राप्त करती रहे।सवाल इसी व्यवस्था पर है, सवाल इस व्यवस्था को बनाने वाले से है।