
Israeli embassy staff killed near Jewish museum in Washington D.C. amid rising tensions - Image by Shah Times
मोसाद की विफलता या वैश्विक यहूदी विरोध की नई साजिश?
अमेरिका की राजधानी में दो इजरायली अधिकारियों की हत्या ने मोसाद की सुरक्षा रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह इजरायल की खुफिया एजेंसी की नाकामी है या फिलिस्तीन समर्थक उग्रवाद का संकेत? जानिए पूरी रिपोर्ट।
“जब खुफिया एजेंसियां चूक जाएं, तो खून की कीमत वैश्विक राजनीति को बदल सकती है”
वॉशिंगटन डीसी की घटना न केवल अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि मोसाद जैसी प्रतिष्ठित खुफिया एजेंसी की साख पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। दो इजरायली दूतावासी कर्मचारियों की सरेआम हत्या एक सुनियोजित संदेश है—”फ्री फिलिस्तीन” केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक उग्र चेतावनी बन चुका है।
वॉशिंगटन डीसी में यहूदी संग्रहालय के पास हुई गोलीबारी ने वैश्विक खुफिया समुदाय को हिला कर रख दिया है। इस हमले में इजरायली दूतावास के दो कर्मचारियों की मौत हो गई, जिसके बाद इजरायल ने इसे आतंकवादी हमला करार दिया है।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “खून का बदला खून से लिया जाएगा,” और दुनियाभर में मौजूद इजरायली दूतावासों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की।
नेतन्याहू का बयान “खून का बदला खून से” मोसाद के आगामी ऑपरेशनों की दिशा और तीव्रता की ओर संकेत करता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब मोसाद पर हमला हुआ है, उसने वैश्विक स्तर पर जवाबी कार्रवाई की है। ऑपरेशन “Wrath of God” हो या याहया अयाश की सर्जिकल हत्या—मोसाद का तरीका स्पष्ट है: माफ नहीं करता।
राजनीतिक संदेश: इजरायल के लिए वैश्विक चुनौती
नेतन्याहू ने अमेरिकी प्रशासन से घटना की पूरी जानकारी मांगी है। अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी और राष्ट्रपति ट्रंप ने हमले की निंदा की और हमलावर को सख्त सजा दिलाने का आश्वासन दिया।
मगर आज सवाल यह है कि क्या मोसाद अपनी तकनीकी और रणनीतिक श्रेष्ठता के बावजूद फिलिस्तीन समर्थक उग्रवाद को समय रहते पहचान पाने में असफल हो रही है? क्या अब रॉ या ISI जैसी एजेंसियों ने मोसाद को मात देना शुरू कर दिया है?
भारत की खुफिया एजेंसी RAW, जिसे अक्सर मोसाद की रणनीतिक साझेदार माना जाता है, अपने क्षेत्रीय उद्देश्यों में सफल रही है, लेकिन वैश्विक परिदृश्य में उसका प्रभाव सीमित है। वहीं ISI की गैर-राजनीतिक कार्यशैली और उग्र संगठनों से संबंध इसे विवादास्पद बनाते हैं। मोसाद अब AI, माइक्रो रोबोट्स और साइबर स्पेस तक में सक्रिय है, लेकिन जब सुरक्षा के घेरे में सेंध लगती है, तो उसकी तकनीक सवालों के घेरे में आ जाती है।
इस घटना से एक बात स्पष्ट है: 21वीं सदी की खुफिया जंग में बुलेट से ज़्यादा अहमियत अब डेटा की है, और उस डेटा की समयबद्ध व्याख्या ही असली ताकत है।
मोसाद की नाकामी या रणनीतिक चूक?
मोसाद को दुनिया की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसियों में गिना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी कई कार्रवाइयां विवादों और विफलताओं के घेरे में आई हैं।
1997 में खालिद मिशाल की हत्या की असफल कोशिश ने जॉर्डन-इजरायल संबंधों को बिगाड़ा।
2003 में गाजा में किए गए हवाई हमले में अल-जहार बच निकले लेकिन उनकी पत्नी और बेटा मारे गए।
2010 और 2011 में ईरानी वैज्ञानिकों की हत्याएं सीधे मोसाद से जोड़ी गईं, जिससे अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा।
मोसाद बनाम रॉ बनाम आईएसआई: कौन ज्यादा ताकतवर?
भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) को मोसाद की तरह टॉप स्पाई एजेंसियों में गिना जाता है।
RAW: विदेश नीति और आतंकी खतरों पर पैनी निगरानी रखती है। इसके मिशन अधिकतर गुप्त रहते हैं लेकिन प्रभावशाली माने जाते हैं।
ISI: अफगानिस्तान और कश्मीर मामलों में इसकी भूमिकाएं विवादास्पद लेकिन रणनीतिक रूप से प्रभावशाली रही हैं।
मोसाद: तकनीक, माइक्रो रोबोट, AI और रिमोट-एक्सप्लोसिव्स में माहिर, लेकिन हालिया घटनाएं इसकी विश्वसनीयता पर असर डाल रही हैं।
क्या मोसाद को नए सिरे से सोचना होगा?
यह हमला मोसाद की एजेंसीगत खामियों की ओर इशारा करता है। ऐसे समय में जब तकनीक, AI और साइबर इंटेलिजेंस का युग है, क्लासिक जासूसी के पुराने मॉडल को अपग्रेड करने की जरूरत है। साथ ही यह भारत की RAW के लिए भी एक चेतावनी है कि अंतरराष्ट्रीय मिशनों में सुरक्षा की परतें और मजबूत करनी होंगी।
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