
India’s mosques, madrasas, and dargahs to benefit from transparent Waqf reforms – Shah Times Report
वक्फ अधिनियम 2025 – सुधार की ज़रूरत या सियासी शोर?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर ‘भारत फर्स्ट’ ने किया समर्थन, इसे पारदर्शिता और समाज-कल्याण के लिए जरूरी बताया। मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा और दरगाह की संपत्तियों के प्रबंधन में बदलाव की विस्तृत समीक्षा।
भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन दशकों से एक विवादास्पद और अव्यवस्थित विषय रहा है। 2025 में पेश वक्फ (संशोधन) अधिनियम इस परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। जहाँ एक ओर कुछ मुस्लिम नेता इस संशोधन को मुस्लिम अधिकारों पर “हमला” बताकर विरोध कर रहे हैं, वहीं संगठन जैसे भारत फर्स्ट इसे पारदर्शिता, जवाबदेही और जनहित की दिशा में एक बहुप्रतीक्षित कदम मानते हैं।
मुख्य बिंदु: क्या कहता है नया अधिनियम?
वक्फ अधिनियम 2025 में डिजिटल पारदर्शिता, कैग ऑडिट, पेशेवर नियुक्ति, और सामाजिक व्यय पर सख्त प्रावधान किए गए हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि धारा 91-ख साफ़ तौर पर कहती है कि वक्फ संपत्ति का अधिग्रहण सिर्फ़ बोर्ड की मंज़ूरी और बाज़ार दर पर भुगतान के बाद ही संभव है। इसका सीधा अर्थ है कि “ज़मीन हड़पने” की आशंका को वैधानिक रूप से खारिज किया गया है।
राजनीतिक विमर्श और गुमराह करने की रणनीति
कुछ संगठनों द्वारा इस कानून को मज़हबी स्वतंत्रता पर हमला बताना या तो अधूरी जानकारी का परिणाम है या राजनीतिक लाभ का हथियार। जबकि उच्चतम न्यायालय ने भी स्पष्ट किया है कि यह सिर्फ़ प्रशासनिक संरचना में बदलाव लाता है, न कि धार्मिक प्रथाओं में।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और तर्क
तुर्की, मलेशिया और सऊदी अरब जैसे देशों के औकाफ़ मॉडल में डिजिटल रजिस्ट्रेशन, सामाजिक कोटा और पब्लिक ऑडिटिंग जैसी व्यवस्थाएं वर्षों से लागू हैं। वहाँ मुसलमानों की पहचान पर कोई संकट नहीं आया, फिर भारत में यह तर्क कैसे प्रासंगिक हो सकता है?
सुधार बनाम सत्ता
नए प्रावधानों के अनुसार अब वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति के लिए UPSC ग्रुप-A स्तर की योग्यता या 15 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव ज़रूरी होगा। इससे वर्षों से अनौपचारिक पकड़ रखने वाले गैर-पेशेवरों की भूमिका समाप्त होगी। यह बदलाव ही विरोध की जड़ है, क्योंकि सत्ता खोने का भय सुधार की राह में सबसे बड़ी बाधा बन रहा है।
वक्फ संपत्ति: मुस्लिम समाज की अमानत
यह कानून वक्फ संपत्तियों को “राज्य की नहीं, समाज की धरोहर” मानते हुए, उनके बेहतर उपयोग और संरक्षण की दिशा में बढ़ता है। 50% आय को शिक्षा, स्वास्थ्य और वज़ीफों पर अनिवार्य रूप से खर्च करने का प्रावधान इस बात का प्रमाण है कि यह विधेयक किसी धर्म के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसके उत्थान की दिशा में एक संरचनात्मक सुधार है।
नई दिल्ली। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन ‘भारत फर्स्ट’ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को एक ऐतिहासिक और समयोचित कदम बताते हुए सोमवार को कहा कि यह अधिनियम भारत की धार्मिक एवं सामाजिक संपत्तियों जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा, दरगाह और जन-कल्याणकारी स्थलों के पारदर्शी प्रबंधन के लिए व्यापक समाधान प्रस्तुत करता है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय संयोजक शीराज़ क़ुरैशी ने स्पष्ट किया कि यह अधिनियम किसी भी प्रकार से मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित नहीं करता, बल्कि वक्फ संपत्तियों के डिजिटल रिकॉर्ड, सीएजी ऑडिट और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा देता है।
धारा 91-ख: अधिग्रहण नहीं, संरक्षित निवेश
कुरैशी ने कहा कि धारा 91-ख में स्पष्ट प्रावधान है कि बिना वक्फ बोर्ड की स्वीकृति और बाजार मूल्य के भुगतान के किसी भी वक्फ संपत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। उन्होंने उन राजनीतिक एवं धार्मिक नेताओं की आलोचना की, जो मुसलमानों को इस विधेयक को लेकर गुमराह कर रहे हैं।
ऑडिट, डिजिटलीकरण और प्रशासनिक सुधार
विधेयक में वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण हेतु राष्ट्रीय वक्फ सूचना प्रणाली (NWIS) के तहत जीआईएस-आधारित प्लेटफ़ॉर्म पर संपत्ति की डिटेल्स अपलोड करने की बाध्यता है। साथ ही 100 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले वक्फ की कैग से ऑडिट कराने का प्रावधान पारदर्शिता को नया आयाम देगा।
छोटे वक्फों के लिए भी डिजिटल खाता प्रणाली लागू होगी। मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) की नियुक्ति हेतु अब कम से कम 15 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव या सिविल सेवा का ग्रुप-A अधिकारी होना अनिवार्य होगा, जिससे राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना कम होगी।
न्यायिक सुधार: त्वरित निपटान और उच्च न्यायालय तक अपील
वक्फ विवादों के निपटान के लिए विशेष वक्फ न्यायाधिकरण को अब 12 माह में निर्णय देना होगा। अपीलें सीधे उच्च न्यायालय में जाएंगी, जिससे वर्षों से लंबित विवादों का समाधान शीघ्र होगा।
सामुदायिक कल्याण और सामाजिक समावेश
विधेयक के अनुसार, वक्फ की कुल आय का 50% शिक्षा, स्वास्थ्य, वजीफा और महिला सशक्तिकरण जैसे कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करना अनिवार्य कर दिया गया है। उल्लंघन पर दोगुना जुर्माना लगेगा।
नई धारा 14-क के तहत प्रत्येक राज्य में वक्फ बोर्ड में एक गैर-मुस्लिम विधिक विशेषज्ञ और एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति अनिवार्य की गई है, जिससे लैंगिक संतुलन और बहु-धार्मिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
धार्मिक पहचान को खतरा नहीं
क़ुरैशी ने कहा कि तुर्किये, मलेशिया और खाड़ी देशों में पहले से डिजिटल पारदर्शी वक्फ मॉडल लागू हैं और वहां की मुस्लिम पहचान पर कोई खतरा नहीं हुआ। उन्होंने इसे “फलाह-ए-इंसानियत” यानी मानव कल्याण की भावना को पुनर्जीवित करने वाला अधिनियम बताया।
SC में 12 याचिकाएं विधेयक के समर्थन में दाखिल
प्रेस वार्ता में बताया गया कि मुस्लिम समाज ने 12 इंटरविनर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की हैं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि पूरा मुस्लिम समाज वक्फ संशोधन का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि बड़े वर्ग द्वारा इसका समर्थन किया जा रहा है।
सम्मेलन में शामिल बुद्धिजीवी
सम्मेलन में सैयद राशिद अली, फ़ैज़ान रहीस क़ुरैशी, अधिवक्ता जावेद ख़ान सैफ़, ताहिर ख़ान, सैफ़ राणा, शालिनी अली, मौलाना कोकब मुज़तबा, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, इरफ़ान पीरज़ादा समेत 20 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ उपस्थित थे।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 कोई मजहबी साजिश नहीं, बल्कि एक पारदर्शी और भविष्य-उन्मुख प्रशासनिक सुधार है। इसे राजनीति की भेंट चढ़ाना मुस्लिम समाज के सामूहिक हितों के साथ अन्याय होगा। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इस पर खुली और तथ्यपूर्ण चर्चा करनी चाहिए, न कि भावनाओं की आड़ में समाज को बांटने वालों का औज़ार बनना चाहिए।
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